फलों की चिंता किए बिना कृष्ण ने कर्म करने के दिए आदेश ! देखिए श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के पाँचवे अध्याय के महत्वपूर्ण संदेश

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श्रीमद् भगवद् गीता के पांचवे अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को तत्त्वज्ञान के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाया है। पांचवे अध्याय में कई महत्वपूर्ण संदेश हैं। जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन उपयोग में लाकर एक सुखी जीवन जी सकता है। भगवद गीता को विश्व की सबसे ज्ञानपूर्ण किताब का दर्जा भी प्राप्त है। गीता के पांचवे अध्याय में कुछ महत्वपूर्ण सन्देश इस प्रकार है …..

1. कर्म और समर्पण: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म की महत्वपूर्णता को बताया है। उन्होंने अर्जुन से कर्म की निष्कामता और निष्कलंक भावना में कार्य करने का संदेश दिया। कर्म को फल की चिंता किए बिना केवल ईश्वर के लिए करने की भावना से यह सिद्ध होता है कि हम आत्मा को मुक्ति की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।

2. कर्मयोग और भगवद् भक्ति: इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग और भगवद् भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्ग दिखाया है। यहां व्यक्त किया गया है कि कर्मयोगी को अपने कर्मों को समर्पित करने का तत्त्वज्ञान होना चाहिए और भगवद् भक्ति से जुड़कर ही हम आत्मा को परमात्मा में समर्पित कर सकते हैं।

3. आत्मा का स्वरूप: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के स्वरूप की महत्वपूर्ण बातें बताई हैं। वे यह सिखाते हैं कि आत्मा अविनाशी और अजर है, और यह शरीर के परिप्रेक्ष्य में स्थित होता है। आत्मा का अनन्तत्व और अविनाशित्व समझकर हमें आत्मा में समर्पण करने की प्रेरणा मिलती है।

4. ईश्वर और आत्मा का संबंध: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा और ईश्वर के संबंध को स्पष्ट किया है। वे बताते हैं कि सभी जीवात्माएँ अंशरूप से परमात्मा से संबंधित हैं और इस परमात्मा की उपासना करने के माध्यम से ही हम मुक्ति की प्राप्ति कर सकते हैं।

5. भक्ति की महत्वपूर्णता: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने भक्ति की महत्वपूर्णता को बताया है। वे यह सिखाते हैं कि भक्ति एक प्रेम भावना है जिसमें आत्मा पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ भगवान के प्रति आत्मिक समर्पण का अभिवादन करती है।

इन संदेशों के माध्यम से श्रीमद् भगवद् गीता के पांचवे अध्याय में मानव जीवन के मूल सिद्धांतों का अद्भुत और प्रासंगिक उपदेश दिया गया है।