दिनेश निगम ‘त्यागी’
विधानसभा के स्पीकर पहली बार चुनकर आए विधायकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं लेकिन उन्हें कौन प्रशिक्षित करेगा, जो कई बार चुने जा चुके हैं लेकिन बे-सिर-पैर के मुद्दे सदन के अंदर उठाते हैं, आसंदी की व्यवस्था का भी सम्मान नहीं करते। बजट सत्र के दौरान ही ऐसा एक वाकया देखने को मिला, जब कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने कांग्रेस सदस्यों के साथ वाक आउट किया लेकिन तत्काल वापस आकर स्पीकर गिरीश गौतम से अपना प्रश्न पूछने की अनुमति मांगी। उन्होंने कहा जब उनका नाम पुकारा गया तब वे सदन के अंदर आ चुके थे। स्पीकर ने सहजता से अनुमति भी दे दी। सत्तापक्ष के दो सदस्यों विश्वास सारंग एवं अरविंद भदौरिया को यह नागवार गुजरा।
उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि रिकार्ड में दर्ज किया जाए कि कुणाल ने वाक आउट में हिस्सा नहीं लिया। इतना ही नहीं असत्य बोलने के लिए वे सदन से माफी मांगें क्योंकि जब उनका नाम पुकारा गया तब वे विपक्ष के अन्य सदस्यों के साथ सदन से वॉकआउट कर गए थे। इसे लेकर दोनों पक्षों के बीच जबरदस्त हंगामा हुआ। स्पीकर ने कहा कि उन्होंने जो व्यवस्था दे दी है, उस पर सवाल नहीं उठना चाहिए। इसके बावजूद सत्तापक्ष के सदस्य मानने को तैयार नहीं। उनका कहना था कि वे कुणाल के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देंगे। सवाल यह है कि सत्तापक्ष के सदस्यों का यह आचरण कितना जायज है। स्पीकर ऐसे सदस्यों को कैसे शिक्षित करेंगे, जो नए नहीं हैं लेकिन सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं।
नवाचारों के रास्ते पर विधानसभा अध्यक्ष….
– विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने आसंदी संभालते ही नवाचारों की पहल शुरू कर दी, राजनीति के इस दौर में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत भी है। संसदीय ज्ञान के अभाव में सदन के अंदर कई बार अप्रिय दृश्य देखने को मिलते हैं। इसी प्रकार मीडिया में नई पीढ़ी कई बार कुछ का कुछ लिख और दिखा देती है। अनुभव के आधार पर गिरीश गौतम ने अपनी पहली प्रेस काफ्रेंस में इन दोनों मुद्दों पर फोकस रखा। उन्होंने कहा कि हर सत्र के दौरान एक दिन ऐसा होगा, जब सिर्फ पहली बार चुन कर आए विधायक सवाल पूछेंगे और सरकार जवाब देगी।
बजट सत्र में उन्होंने इसके लिए 15 मार्च की तारीख तय कर दी। इस दिन वरिष्ठ विधायकों को पूरक प्रश्न पूछने की भी अनुमति नहीं होगी। साफ है विधानसभा अध्यक्ष का उद्देश्य नए विधायकों को सदन की कार्रवाई को लेकर प्रोत्साहित करना एवं जानकारी से लबालब करना है। दूसरा, उन्होंने विधानसभा की कार्रवाई का कवरेज करने वाली मीडिया की नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करने की जरूरत पर बल दिया। जमीनी राजनीति कर शिखर पर आए गिरीश गौतम से ऐसी ही आशा थी। उम्मीद है ऐसे नवाचारों के जरिए वे अपने कार्यकाल को अविस्मरणीय बनाएंगे।
यह पं. नेहरू और अटलजी का चरित्रहनन….
– शुरुआत प्रदेश सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने की। उन्होंने राजभवन के एक दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तब भोपाल आए थे और उनकी सिगरेट लेने विमान इंदौर भेजा गया था। जवाब प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने दिया। उन्होंने कहा कि यह कैसी राजनीति है। उन्होंने कहा कि अटलजी कहते थे कि उन्होंने शादी नहीं की लेकिन वे कुंवारे भी नहीं हैं।
इसके अलावा अटलजी क्या खाते-पीते थे, क्या इन बातों को मुद्दा बना कर हमें उनका चरित्रहनन करना चाहिए। वह भी ऐसे समय जब वे जवाब देने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे बयानों के जरिए नेता क्या संदेश देना चाहते हैं और राजनीति को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। पंडित नेहरू के कुछ कामों की आलोचना हो सकती है लेकिन उन्होंने देश हित में कई अच्छे काम किए और आजादी के आंदोलन में लगभग दो दशक तक जेल में रहकर यातना झेली। नेहरू के बाद अटलजी ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिनके कुछ कामों की आलोचना हो सकती है लेकिन वे जनता में नेहरू के बाद सबसे लोकप्रिय नेता थे। ऐसे नेताओं का चरित्र हनन ओछी राजनीति के सिवाय कुछ नहीं। नेताओं को इससे बाज आना चाहिए।
क्या अरुण को पसंद करते हैं दिग्विजय….
– किसान महा-पंचायतों के जरिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का प्रदेश में सक्रिय होना चौंकाने वाली घटना है, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है उनके द्वारा अरुण यादव को साथ लेकर चलना। उन्हें किसान नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश करना। यह ऐसे समय हो रहा है जब अरुण हिंदू महासभा के बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस में शामिल करने को लेकर खुलेआम प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
सवाल यह है कि क्या दिग्विजय सिंह की भी कमलनाथ के साथ पटरी नहीं बैठ रही, या अरुण को साथ लेकर दिग्विजय सिंह जीतू पटवारी जैसे उभरते युवा नेताओं के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं ताकि मौका मिलते ही बेटे जयवर्धन सिंह को प्रोजेक्टर किया जा सके। बहरहाल, वजह जो भी हो लेकिन भोपाल संसदीय क्षेत्र तक खुद को सीमित रखने वाले दिग्विजय सिंह का अचानक प्रदेश स्तर पर सक्रिय होना, वह भी कमलनाथ के विरोधी अरुण यादव को साथ लेकर, कई अटकलों को जन्म दे रहा है। दिग्विजय की रणनीति क्या है? उनके निशाने पर कौन है? बता दें, दिग्विजय की सिफारिश पर ही अरुण को खरगोन लोकसभा सीेट से पहला टिकट मिला था जबकि तब सुभाष यादव और दिग्विजय के बीच संबंध तल्ख थे।
फिर सतह पर कांग्रेस की अंदरूनी कलह….
– कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने और हटने के बाद से शायद ही कोई ऐसा सप्ताह हो जब कांग्रेस की अंतर्कलह अखबारों एवं न्यूज चैनलों की सुर्खियां न बनती हो। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ गए विधायकों के कारण सरकार गिरी लेकिन इसके बाद भी कमलनाथ पार्टी संभाल नहीं पा रहे हैं। पिछले हफ्ते हिंदू महासभा के बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस में शामिल करने को लेकर बवाल मचा था। अरुण यादव, मानक अग्रवाल सहित कई नेताओं ने सीधे कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
यह मामला ठंडा भी नहीं पड़ा और विधानसभा की लोकलेखा समिति में अध्यक्ष की नियुक्ति पर बवाल मच गया। इस समिति का अध्यक्ष विपक्ष के किसी सदस्य को बनाया जाता है। विधानसभा के स्पीकर गिरीश गौतम ने समिति का अध्यक्ष बृजेंद्र सिंह राठौर को बनाने की जैसे ही घोषणा की, कांग्रेस की कलह सतह पर आ गई। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति नाराज हो गए। उन्होंने समिति का सदस्य बनने से इंकार कर दिया। प्रजापति को उम्मीद थी कि उन्हें लोकलेखा समिति का अध्यक्ष बनाया जाएगा। बृजेंद्र सिंह पहले भी इस समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं। अब कमलनाथ के साथ चलने वाले प्रजापति कोप भवन में हैं।