हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में 2 पक्ष होते हैं एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष दोनों ही पक्षों में त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत होता है जो भगवान शंकर और माता पार्वती को समर्पित किया जाता है इस बार का व्रत गुरुवार 15 जून यानी कल पढ़ रहा है। इसलिए इस बार की प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
प्रदोष व्रत की कथा
एक बार देवराज इंद्र और वृत्रासुर नामक दैत्य की सेना के बीच घोर संग्राम हुआ। सेना के नष्ट होने से क्रोधित होकर वृत्रासुर भयंकर युद्ध करने लगा किसी भी तरह से न परास्त कर पाने पर देवता गुरुदेव बृहस्पति के पास गए और उनसे उपाय पूछा इस पर गुरुदेव ने वृत्रासुर की पूर्ण कथा बताते हुए कहा कि पूर्व जन्म में वह चित्ररथ राजा था और घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया था। इस बार वह कैलाश कैलाश पर्वत पर गया जहां शिवजी के साथ ही माता पार्वती भी विराजमान थी। माता पार्वती को देख उसने उपहास किया कि हे प्रभु आप भी मोह माया में फस कर स्त्री के साथ आलिंगनबध्य होकर बैठे हैं। इस पर शिव जी ने तो हंसकर टालने का प्रयास किया। किंतु माता पार्वती ने क्रोधित होकर दैत्य होने का श्राप दिया। बाद में यही राजा व्रतासुर बना। किंतु इस योनि में भी वह शिव भक्त ही रहा उसके पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुए गुरुदेव बृहस्पति ने देवराज से गुरु प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया। इंद्र ने व्रत को किया और उसके प्रभाव से शीघ्र उर पर विजय प्राप्त की।
पूजा विधि
गुरु प्रदोष व्रत के दिन प्रातः काल समय से जागने और नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद पास के शिव मंदिर अथवा घर के मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल, गाय के दूध से स्नान कर सफेद चंदन का लेप लगाएं। इसके बाद भगवान शंकर पर बेलपत्र, अक्षत, भांग, धतूरा शमी वृक्ष के पत्ते, सफेद फूल, शहद, भस्म, शक्कर आदि समर्पित करें। इसके साथ ही माता पार्वती के श्रृंगार का सामान चढ़ाएं ओम नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके साथ ही गुरु प्रदोष व्रत की कथा का पाठ और माता पार्वती व शिवजी से अपनी मनोकामना कहें क्षमा प्रार्थना करें।