*वरिष्ठ पत्रकार राजेश राठौर*
दिखावे के लिए चाहा लेकिन मन से नहीं
भाजपा का दीपक हाथ के साथ कब हो जाएगा। इसका ज्ञान मध्यप्रदेश भाजपा को तो अच्छी तरह से था, लेकिन कोई भी नहीं चाहता था कि दीपक को रोका जाए। यही कारण है कि हाईकमान को दिखाने के लिए प्रदेश भाजपा ने उनसे सौजन्य बात और औपचारिकता पूरी कर ली। प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव भी उनसे मिलने इंदौर आए, लेकिन बात में दम नहीं था। दीपक से राव की जो बात हुई उसमें कहीं भी भरोसे की गारंटी नहीं थी। वैसे दीपक हाथ का साथ निभाने की कसम खा चुके थे। दीपक ने भी औपचारिकता पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मुरलीधर राव से अच्छे से बात कर ली। जब भाजपा के दीपक जोशी पार्टी छोड़कर जा रहे थे। तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओकारेश्वर में संघ के कार्यक्रम में व्यस्त रहे। उनकी तरफ से भी कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ। सब के सब अंदर से यह चाहते थे कि वह चले जाएं तो ज्यादा बेहतर है, क्योंकि उनको पार्टी टिकट देने की स्थिति में नहीं थी। दीपक के बारे में सर्वे में पता चला था वो जीतने वाले नहीं हारने वाले उम्मीदवार थे। इस कारण भी पार्टी ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया। वैसे दीपक जोशी के बारे में हम बता दें कि जब उनको पहली बार पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ाया। उसके पहले भी वो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के संपर्क में आ गए थे। यदि उनको पार्टी टिकट नहीं देती तो शायद उसी समय हाथ के साथ हो जाते। दीपक ने भाजपा के कार्यकर्त्ताओ को बोलने का मौका दे दिया और कार्यकर्ताओं भी अपनी पीड़ा खुलकर बोल रहे हैं। अब दीपक के पास एक ही काम है, शिवराज और पार्टी को कटघरे में खड़ा करने का। जिसमें वो लग गए हैं। अब यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा कि बुधनी में शिवराज सिंह के सामने दीपक कांग्रेस से चुनाव लड़ते हैं या नहीं।
मैं भी प्रियंका का तू भी प्रियंका का असली वही जिसको टिकट मिलेगा
कांग्रेस में चुनाव लड़ने के लिए सब तरह के धत्त कर्म करना पड़ते हैं। जिसको चुनाव लड़ना होता है। उसको अच्छी तरह से पता होता है कि अकेले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से काम नहीं चलेगा। दिल्ली हाईकमान से भी रूबरू होना पड़ता है। चुनाव लड़ने के चक्कर में इंदौर के शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी लंबे समय से प्रियंका गांधी से संपर्क बनाए हुए हैं। पहले दब छूपकर प्रियंका से मुलाकात करते थे, लेकिन छः महीने से अब स्वप्निल, प्रियंका से अपने संबंधों का जिक्र खुलेआम करते हैं। उसके अलावा कमलनाथ को भी साध रखा है। अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए जिस तरीके से स्वप्निल लगे हैं। उससे लगता है कि वो इंदौर की पांच नंबर विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहते हैं। विधानसभा में भी सक्रिय हो गए हैं। बूथ स्तर की प्लानिंग कर चुके हैं। यह सब जानते हुए भी की इसी विधानसभा से पिछली बार बहुत कम मतों से चुनाव हार चुके सत्यनारायण पटेल भी अपनी तगड़ी पकड़ रखते हैं। पटेल ने भी उत्तर प्रदेश चुनाव के समय प्रियंका गांधी के लिए हेलीकॉप्टर लगा रखा था। उस समय की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखाई भी दी। पटेल परिवार कांग्रेस के प्रति हमेशा वफादार रहा है और पार्टी ने जब जो चुनाव लड़ने के लिए कहा तब लड़ा। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के भरोसे विधानसभा पांच में पहले से सक्रिय हैं। इन दोनों के टिकट का फैसला मध्यप्रदेश में तो नहीं होगा, लेकिन दिल्ली दरबार में जरूर होगा। तब पता चलेगा कि प्रियंका गांधी का सबसे खास कौन है। सत्यनारायण पटेल या स्वप्निल कोठारी।
कांग्रेसी स्टाइल में भाजपाई घुसपैठ कर रहे हैं मुरलीधर राव के यहां
जिस तरह से कांग्रेसी मध्यप्रदेश का जो भी प्रभारी बनता है। उससे अपने संपर्क बनाने में देरी नहीं करते हैं। ठीक उसी तरह से विधानसभा चुनाव लड़ने वाले दावेदार भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव से भी लगातार संपर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वैसे आपको बता दें कि मुरलीधर भी सारे दावेदारों के स्वर में स्वर मिला रहे हैं और कांग्रेसी स्टाइल में खूब सम्मान भी प्राप्त कर रहे हैं इस सम्मान की चर्चा पार्टी नेताओं में चटकारे लेकर सुनाई जाती है।
महिला उम्मीदवारों पर संघ की नजर
भाजपा में पुरानी महिला नेत्रीओं की जगह युवा महिलाओं को टिकट देने की बात कही जा रही है। पिछली बार की तुलना में इस बार कुछ टिकट महिलाओं को ज्यादा दिए जा सकते हैं। लाडली लक्ष्मी और लाडली बहना योजना के साथ ही भाजपा इस बात पर विचार कर रही है कि इस वर्ग का फायदा उठाने के लिए ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया जाना चाहिए। इसी कारण संघ से जुड़ी संस्थाओं में काम करने वाली महिलाओं के बारे में विचार किया जा रहा है कि उनको कहां से विधानसभा में मैदान में उतारा जाए। इसके लिए मालवा, बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश में ज्यादा संभावना बन रही है। हो सकता है कि कई समाजसेवी महिलाओं को भी पार्टी टिकट देकर ट्रंप कार्ड चल सकती है। अलग-अलग समाज में काम करने वाली महिलाओं के बारे में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जानकारी जुटा रहा है। हो सकता है कि किसी भी समाज की महिला को पार्टी चुनाव मैदान में उतार दें। हां इतना तय है कि अब पच्चीस साल से लेकर पचास साल तक की महिलाओं को टिकट ज्यादा दिए जाएंगे।
नेता पुत्रों पर संकट बरकरार
कांग्रेस में तो राजनीतिक वंशवाद की परंपरा गांधी परिवार से ही चल रही है, इसलिए वहां तो नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट मिलने में कोई संकट नहीं आता है, लेकिन यह दिक्कत भाजपा में है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कह दिया था कि नेताओं के परिजनों को टिकट नहीं मिलेंगे। तब से ही सभी बड़े नेता परेशान हैं कि अपने बेटों को राजनीति की दुकान की बजाय परचून की दुकान डलवा दें। ताकि काम धंधे पर तो लगे लगे रहे। जिस तरीके से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहे सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे को भी खंडवा से टिकट नहीं मिला। उसके बाद तो सारे बड़े नेता परेशान हैं। गुजरात फार्मूला उसके बाद कर्नाटक की करारी हार से सामना करने के बाद छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश में टिकट को लेकर क्या फार्मूला बनेगा और उस पर कितना अमल होगा। इसको लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, यशोधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा सहित तमाम दिग्गज नेता के बेटों को टिकट देने को लेकर आए दिन नई जोड़-तोड़ सुनाई देती है। असलियत तब पता चलेगी जब टिकट होंगे। वैसे अभी तक तो जो हुआ है। उसके मुताबिक वर्तमान विधायक भी यदि अपनी सीट छोड़ेंगे तो उस सीट से उनके किसी परिजनों को टिकट नहीं मिलेंगे इतना तय है। वक्त बताएगा कि सरकार बनाने के लिए भाजपा को कितने समझौते करना पड़ेंगे।