उज्जैन 24 फरवरी। जिला मातृ एवं शिशु अस्पताल (चरक) में जनवरी माह में कुल एक हजार से अधिक महिलाएं डिलेवरी के लिये भर्ती हुईं। इनमें से 429 महिलाएं या तो प्रसव के दौरान या प्रसव उपरान्त स्वयं की इच्छा से डिस्चार्ज होकर प्रायवेट अस्पताल में भर्ती हो गई या फिर बिना बताये ही अस्पताल छोड़कर चली गई। कलेक्टर ने उक्त बात आज आकस्मिक निरीक्षण के दौरान पकड़ी और इस मामले की जांच करने के लिये जिला पंचायत सीईओ को निर्देश दिये हैं। कलेक्टर ने साथ ही गुरूनानक अस्पताल और सहर्ष अस्पताल को भी सात माह की डिलेवरी करवाने पर नोटिस जारी करने के निर्देश निरीक्षण के दौरान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.महावीर खंडेलवाल, सिविल सर्जन डॉ.पीएन वर्मा, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.संगीता पलसानिया मौजूद थी।
कलेक्टर ने कहा है कि सघन जांच के उपरान्त इसमें अस्पताल के डॉक्टर व कर्मचारियों संलिप्तता एवं निजी नर्सिंग होम की मिलीभगत पाये जाने पर दोनों ही के विरूद्ध कड़ी वैधानिक कार्यवाही की जायेगी। कलेक्टर ने लगभग तीन घंटे अस्पताल में रहकर अलग-अलग फ्लोर पर बने हुए मेटरनिटी हॉस्पिटल, आईओटी तथा पोषण पुनर्वास केन्द्र का निरीक्षण किया। पोषण पुनर्वास केन्द्र पर मात्र तीन कुपोषित बच्चे भर्ती पाये जाने पर उज्जैन शहर एवं उज्जैन ग्रामीण के चार परियोजना अधिकारियों को कारण बताओ सूचना-पत्र जारी करने के निर्देश दिये हैं। कलेक्टर ने निरीक्षण किया एवं इस दौरान निम्नानुसार निर्देश जारी किये :-
· कलेक्टर ने प्रीमेच्योर प्रसव वार्ड में जाकर महिलाओं से सघन पूछताछ की तथा उनसे पूछा कि वे कितने दिनों से यहां भर्ती हैं। पूछताछ में खुलासा हुआ कि भर्ती महिलाओं में से कुछ महिलाएं प्रायवेट अस्पताल में भी ऑपरेशन करवाने के बाद पुन: चरक में भर्ती हुई हैं।
· बड़नगर निवासी सुल्ताना ने बताया कि वे पहले शासकीय अस्पताल में भर्ती हुई फिर किसी मेडम के कहने पर सहर्ष अस्पताल में चली गई। वहां पर दो दिन भर्ती रही, ऑपरेशन से बच्चा हुआ जो सात माह का था। अब फिर से शासकीय अस्पताल लौटी हैं। यहां पर उनके प्रीमेच्योर बच्चे का और उनका इलाज चल रहा है। निजी अस्पताल में एक लाख रुपये खर्च हो चुका है।
· इसी तरह उज्जैन निवासी दिलशाना ने कलेक्टर को पूछताछ में बताया कि वे भी पहले शासकीय अस्पताल में भर्ती हुई थी। यहां से गुरूनानक हॉस्पिटल में जाकर ऑपरेशन करवाया और फिर पुन: शासकीय अस्पताल में भर्ती हो गई हैं। कलेक्टर ने उक्त दोनों मामलों को गंभीरता से लेते हुए दोनों ही प्रकरण में किसके कहने से मरीज शासकीय अस्पताल छोड़कर प्रायवेट में गया और फिर पुन: शासकीय अस्पताल में लौटा है, इसके बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को दिये हैं।
· कलेक्टर ने मौके पर डिस्चार्ज ऑन रिक्वेस्ट एवं बिना बताये डिस्चार्ज होने वाले मरीजों के जनवरी माह के आंकड़े अपने समक्ष कम्प्यूटर सेक्शन में जाकर निकलवाये तथा आंकड़ों के आधार पर डिस्चार्ज ऑन रिक्वेस्ट और बिना बताये डिस्चार्ज होने वाले मरीजों का प्रतिशत 42 होने पर चिन्ता व्यक्त की तथा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा सिविल सर्जन को निर्देशित किया कि इस सम्पूर्ण मामले की तह तक जाकर दोषी व्यक्तियों को चिन्हित किया जाये। कलेक्टर ने इसी तरह 1 से 20 फरवरी तक की डाटाशीट भी प्रस्तुत करने के निर्देश दिये।
· निरीक्षण के दौरान ओपीडी में खड़े विभिन्न मरीजों ने कहा कि उन्हें यहां पर लम्बे समय तक खड़े रहना पड़ता है, अत: बैठने की व्यवस्था की जाये। कलेक्टर ने तत्काल सिविल सर्जन को कुर्सियां लगवाने के निर्देश दिये हैं।
· प्रसूताओं के सर्जिकल वार्ड में टाईल्स टूटी-फूटी पाये जाने पर कलेक्टर ने नाराजगी व्यक्त की तथा लोक निर्माण विभाग की सहायक यंत्री एवं सिविल सर्जन को निर्देशित किया कि रोगी कल्याण समिति के मद से मरम्मत कार्य करवाया जाये।
· कोरोनाकाल में मरीज के अटेंडरों से रोगी कल्याण समिति द्वारा शुल्क लेना बन्द कर दिया था। इसे पुन: प्रारम्भ करने के निर्देश दिये गये।
· कलेक्टर ने सोनोग्राफी सेन्टर रोशनी क्लिनिक का निरीक्षण किया। सोनोग्राफी के लिये सोनोलॉजिस्ट की सेवा रोगी कल्याण समिति से लेने के निर्देश दिये। कलेक्टर ने मरीजों की लम्बी लाईन को देखते हुए कहा कि टोकन सिस्टम प्रारम्भ किया जाये, जिससे मरीजों को अधिक समय तक खड़ा नहीं रहना पड़े।
· कलेक्टर ने गायनिक वार्ड, लेबर रूम, मेटरनिटी सर्जिकल वार्ड, एसएनसीयू मातृ वार्ड का निरीक्षण किया तथा वहां भर्ती मरीजों से उनके हालचाल जाने तथा उनसे पूछा कि उनसे किसी तरह का अनाधिकृत रूप से पैसा तो नहीं लिया जा रहा है। चर्चा के दौरान भर्ती कई महिलाओं ने चिकित्सालय में दिये जा रहे उपचार पर संतोष व्यक्त किया।