इंदौर : अधिकांश लोगों को लगता है कि टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस की बीमारी अब नहीं है लेकिन ऐसा नहीं है। सालो बाद आज भी यह बीमारी मौजूद है और कई बार इसे हल्के में लेना घातक सिद्ध हो सकता है। इस कारण इसका पूरा और सही इलाज करना जरूरी है, लेकिन यह लाइलाज नहीं है और इलाज के बाद टीबी पूरी तरह से खत्म हो सकती है। दुनियाभर के कुल टीबी मरीजों के एक चौथाई भारत में है तो मध्यप्रदेश भी वर्तमान में टीबी के सर्वाधिक रोगियों में देश में तीसरा स्थान रखता है, जहां पर कुल का आठ प्रतिशत टीबी रोगी है। उत्तर प्रदेश में देश में सर्वाधिक 20 प्रतिशत रोगी है।
मेदांता अस्पताल में रेस्प्रीरेट्री एवं स्लीप मडिसिन कंसलटेंट डॉ. तनय जोशी के अनुसार–“वर्ल्ड टीबी डे हर साल 24 मार्च को ट्यूबरकुलोसिस के हानिकारक प्रभाव, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और वैश्विक टीबी महामारी को समाप्त करने के लिए मनाया जाता है। 24 मार्च 1882 को डॉ रॉबर्ट कोच ने टीबी का कारण बनने वाले जीवाणु की खोज की थी। जो इस बीमारी के निदान और इलाज की दिशा में एक नया कदम था। 2022 में टीबी दिवस की थीम थी – ‘टीबी को समाप्त करने के लिए निवेश करें’।”
सबसे घातक संक्रामक रोग
आज भी टीबी दुनिया के सबसे घातक संक्रामक रोगों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल 16 लाख लोग टीबी की वजह से मरते है तो करीब 10 लाख नए लोग टीबी के मरीज के रूप में ग्रसित होते है। एक दशक से अधिक समय में पहली बार 2020 के बाद से टीबी से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी हुई है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2020 में लगभग 99 लाख तो 2021 में एक करोड़ से ज्यादा लोग टीबी के कारण बीमार पड़ गए। वर्ष 2000 से टीबी को समाप्त करने के लिये विश्व स्तर पर किये गए प्रयासों से साते सात करोड़ लोगों की जान बचाई गई है। दुनिया भर में कुल टीबी मामलों में भारत का हिस्सा लगभग 26% है। इसलिये विश्व टीबी दिवस दुनिया भर के लोगों को टीबी रोग और उसके प्रभाव के बारे में शिक्षित करने के लिये मनाया जाता है।
फैलने वाला संक्रामक रोग
टीबी या क्षय रोग ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस’ नामक जीवाणु के कारण होता है, जो कि लगभग 200 सदस्यों वाले ‘माइकोबैक्टीरियासी परिवार’ से संबंधित है। कुछ माइकोबैक्टीरिया मनुष्यों में टीबी और कुष्ठ रोग का कारण बनते हैं तथा अन्य काफी व्यापक स्तर पर जानवरों को संक्रमित करते हैं। टीबी, मनुष्यों में सबसे अधिक फेफड़ों (पल्मोनरी टीबी) को प्रभावित करता है, लेकिन यह अन्य अंगों (एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी) को भी प्रभावित कर सकता है।
टीबी एक गंभीर संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। ट्यूबरकुलोसिस का कारण बनने वाले जीवाणु खांसी और छींक के माध्यम से हवा में छोड़ी गई छोटी बूंदों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। इसलिए जनता को टीबी के बारे में जागरूक रहना चाहिए और इसे सामान्य बीमारी समझने की भूल न करना चाहिए। यदि आपको टीबी है, तो इलाज पूरा करें, इसे बीच में छोड़ने की भूल न करें।
दो प्रकार की टीबी
मुख्य तौर पर टीबी के दो प्रकार होते हैं – लेटेंट और एक्टिव। लेटेंट टीबी तब होता है जब किसी व्यक्ति के शरीर में टीबी के जीवाणु होते हैं। मगर बैक्टीरिया बहुत कम संख्या में मौजूद होते हैं। लेटेंट टीबी वाले लोग संक्रामक नहीं होते हैं और बीमार महसूस नहीं करते हैं। वे टीबी के बैक्टीरिया को दूसरे लोगों तक नहीं पहुंचा सकते। एक्टिव टीबी रोग तब होता है जब किसी व्यक्ति को लेटेंट टीबी होती है और फिर वह बीमार हो जाता है।
टीबी के लक्षण
कुछ लक्षणों के माध्यम से टीबी का पता लगाया जा सकता है, हालांकि लक्षण आमतौर पर शुरुआती चरण में दिखाई नहीं देते हैं। इनमें शामिल हैं –
• कम से कम 3 सप्ताह तक लगातार खांसी आना टीबी का प्रमुख लक्षण है।
• खांसी के दौरान खून के साथ कफ का बनना। साथ ही, खांसते समय खून आना।
• ठंड लगना, बुखार, भूख न लगना और वजन कम होना।
• रात को पसीना आना और सीने में दर्द भी इस बीमारी का हिस्सा हैं।
• पेट में दर्द, जोड़ों में दर्द, दौरे और लगातार सिरदर्द भी हो सकता है।
कमजोर इम्युनिटी है प्रमुख कारण
डॉ. जोशी के अनुसार टीबी का सीधा संबंध इम्युनिटी से है। हर उस व्यक्ति को टीबी हो सकता है जिसकी इम्युनिटी कमजोर है। जो लोग कोविड–19 से संक्रमित होकर उबर चुके हैं, उन्हें टीबी से संक्रमित होने का जोखिम सबसे ज़्यादा है क्योंकि उनकी इम्युनिटी कमजोर थी। इसके अतिरिक्त एचआईवी से ग्रसित मरीजों में टीबी होने का खतरा 16 गुना ज्यादा है। वही तंबाकू खाने और शराब पीने वाले में भी इसके होने के ज्यादा चांसेस होते हैं।
चेस्ट एक्स-रे से लेकर सीटी स्कैन
टीबी का पता लगाने के लिए चेस्ट एक्स-रे सबसे प्रमुख डायग्नोसिस के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त कफ की जांच और सीटी स्कैन के बाद मरीज में टीबी होने के पूरे प्रमाण दिए जाते हैं। समय पर पता चलने पर टीबी रोग का इलाज किया जा सकता है। इसमें एंटीबायोटिक्स दी जाती है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए इसका इलाज लंबा चलता है। सामान्य टीबी के मरीज को भारत सरकार से अधिकृत डॉट्स का इलाज दिया जाता है, जो छह महीने तक चलता है। वही सक्रिय टीबी के मामले में मरीजों को लगभग नौ महीने की अवधि तक के लिए दवाइयां खाना पड़ती है।