हरियाणा में सम्पन्न हुई RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, 12 से 14 मार्च के बीच हुई थी आयोजित

mukti_gupta
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राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 12,13 एवं 14 मार्च 2023 को हरियाणा प्रांत में सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र पट्टीकल्‍याणा, समालखा में संपन्‍न हुई। रविवार 12 मार्च को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरसंघचालक मोहन भागवत और माननीय सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भारत माता के चित्र पर पुष्पार्पित कर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शुभारंभ किया। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में देशभर से 34 संगठनों के 1474 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रतिनिधि सभा में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय स्‍तर पर कार्य स्थिति भी प्रतिनिधियों के सम्‍मुख रखी गई। देश के प्रत्‍येक भाग में संघ कार्य में वृद्धि हो रही है।2025 में संघ अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। वर्तमान में संघ 71355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर पर कार्य कर समाज परिर्वतन के महत्वपूर्ण कार्य में अपनी भूमिका निभा रहा है। अगले एक वर्ष तक एक लाख स्थानों तक पहुंचना संघ का लक्ष्य है।

वर्ष 2020 में आई कोरोना आपदा के बाद भी संघ कार्य बढ़ा है। वर्ष 2020 में 38913 स्थानों पर 62491 शाखा, 20303 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन व 8732 स्थानों पर मासिक मंडली चल रही थीं। 2023 में यह संख्या बढक़र 42613 स्थानों पर 68651 शाखाएं, 26877 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा 10412 स्थानों पर मासिक मंडली तक पहुंच गई है। संघ दृष्टि से देशभर में 911 जिले हैं, जिनमें से 901 जिलों में संघ का प्रत्यक्ष कार्य चलता है। 6663 खंडों में से 88 प्रतिशत खंडों में, 59326 मंडलों में से 26498 मंडलों में संघ की प्रत्यक्ष शाखाएं लगती हैं। शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को बढ़ाने के लिए संघ के नियमित प्रचारकों व विस्तारकों के अतिरिक्त 1300 कार्यकर्ता दो वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक निकले हैं।

मध्‍यप्रदेश में वर्तमान में 7923 शाखाएं लग रही हैं। संघ की दृष्टि से मध्‍यप्रदेश में तीन प्रांत मध्‍यभारत, मालवा एवं महाकोशल आते हैं। तीनों प्रांतों में संघ कार्य में वृद्धि हो रही है। मध्‍यभारत प्रांत में वर्ष 2022 में 1698 शाखाएं लगती थी जो वर्ष 2023 में बढ़कर 2149 हो गई हैं। मालवा प्रांत में 2618 स्‍थानों पर 3977 शाखाएं लग रही हैं। इसी प्रकार महाकोशल प्रांत में 1325 स्‍थानों पर 1797 शाखा लग रही हैं।

आज संघ के प्रति लोगों की रुचि बढ़ रही है। देशभर में लोग संघ को ढूंढते हुए डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से संघ के साथ जुड़ने के लिए निवेदन कर रहे हैं। वर्ष 2017 से 2022 तक ज्वाइन आरएसएस के माध्यम से संघ के पास देशभर से 7,25,000 निवेदन आए हैं। इनमें से अधिकांश 20 से 35 आयु वर्ग के युवक हैं, जो समाज सेवा के लिए संघ से जुड़ना चाहते हैं। दैनिक शाखाओं में भी युवाओं की रुचि बढ़ रही है। संघ की 60 प्रतिशत शाखाएं विद्यार्थी शाखाएं हैं। पिछले एक वर्ष में 121137 युवाओं ने संघ का प्राथमिक शिक्षण प्राप्त किया है। आगामी वर्ष की योजना में देशभर में संघ शिक्षण के 109 शिक्षण वर्ग लगेंगे, जिसमें लगभग 20 हजार स्वयंसेवकों के शिक्षण प्राप्त करने का अनुमान है।

मध्‍यभारत प्रांत में कार्यकर्ता प्रशिक्षण एवं गुणवत्‍ता विकास

मध्यभारत प्रांत के सभी जिला केंद्रों पर शारीरिक प्रधान कार्यक्रम करने की योजना बनी, विशेषकर भोपाल में 11 दिसंबर 2022 को शारीरिक प्रधान कार्यक्रम का प्रदर्शन हुआ। 1834 स्वयंसेवकों द्वारा दंड के प्रगत प्रयोग, घोष वादन, समता आदि का प्रदर्शन हुआ। इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओमप्रकाश रावतजी व माननीय सरकार्यवाह जी उपस्थित थे। अभी 279 में से 225 बस्ती कार्ययुक्त हैं। भिंड जिला केंद्र पर 14 अक्तूबर 2022 को भय्याजी जोशी की उपस्थिति में 415 स्वयंसेवकों ने शारीरिक अभ्‍यास काप्रकटीकरण किया। कार्यक्रम के बाद 12 नई शाखा प्रारम्भ हुई हैं। ब्यावरा जिला केंद्र के शारीरिक प्रधान कार्यक्रम में माननीय श्री सुनील जी कुलकर्णी की उपस्थिति में सभी 8 बस्तियों की 18 शाखाओं ने प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किये।

प्रभावी होती गतिविधियां

पूरे देश में जिस प्रकार संघ कार्य बढ़ा है उसी प्रकार मध्‍यभारत प्रांत में भी कार्य विस्‍तार तेज गति से हो रहा है। मध्यभारत प्रांत : राजगढ़ जिले को समरस जिला बनाने के प्रयास के अंतर्गत कार्यकर्ताओं ने स्थानीय सामाजिक चुनौती समरसता को केंद्रित कर 80% गावों में, बस्तियों में समरसता सर्वेक्षण व सामाजिक अध्ययन कराया। कुछ चिन्हित स्थानों पर समन्वय व सदभाव बैठकों का आयोजन किया गया। ‘पॉलिथीन मुक्त ग्वालियर अभियान’ हेतु पर्यावरण सचेतक समिति का गठन किया गया। इस अभियान से अब तक कुल 52 सामाजिक संस्थाएं जुड़ी हैं। समाज जागरण हेतु संकल्प कार्यक्रम विद्यालय, महाविद्यालय, विभिन्न सामाजिक एवं सार्वजनिक संस्थानों में सम्पन्न हुए, जिसमें अब तक डेढ़ लाख लोगों ने पॉलिथीन मुक्त ग्वालियर बनाने का संकल्प लिया। 50 हजार से अधिक कपड़े की थैलियों का वितरण भी किया गया।

स्‍वावलंबी भारत अभियान के अंतर्गत सभी 16 शासकीय जिलों में उद्यमिता प्रोत्‍साहन सम्‍मेलन के 106 कार्यक्रम संपन्‍न हुए। माननीय सरकार्यवाह जी की उपस्थिति भोपाल में प्रत्‍यक्ष एवं अन्‍य 15 जिलों में आभासी माध्‍यम से रोजगार सृजन केंद्रों का शुभारंभ किया गया। ये रोजगार सृजन केंद्र उद्यम एवं रोजगार के लिए मार्गदर्शन देने का कार्य कर रहे हैं। मालवा प्रांत के खंडवा विभाग में मंडल व बस्ती स्तरीय कार्य विस्तारकरने के लिए प्रत्येक मंडल व बस्ती पर संगठन श्रेणी हेतु 4 कार्यकर्ता व जागरण श्रेणी हेतु 7 कार्यकर्ताओं की टोली बनीं। पूरे विभाग के 117 मंडलों में से 22 में एवं 70 बस्तियों में से 19 बस्तियों में संगठन श्रेणी की टोलियां थी। मा. सरकार्यवाह जी के साथ भी दो सत्रों में बैठकें हुई। प्रांत के दीनदयाल नगर इंदौर में अहिल्‍या बस्‍ती, रघुनंदन बाग में कोचिंग की आड़ में धर्म परिवर्तन का षड्यंत्र चल रहा था। दो वर्ष पूर्वस्‍वयंसेवकों और मातृशक्ति के प्रयासों से निशुल्‍क कोचिंग प्रारंभ की गई। विद्याभारती की शिशु वाटिका भी चल रही है। आज 70 बच्‍चे प्राथमिक शिक्षा प्राप्‍त कर रहे हैं।

उज्‍जैन महानगर में जीवनदायिनी क्षिप्रा को पुन: प्रवाहमान बनाने के लिए आमजन द्वारा ‘क्षिप्रा नदी संरक्षण अभियान’ चलाया जा रहा है। मंदसौर जिले में स्‍वयंसेवकों ने ऐसे मंदिर चिन्हित किए जहां लोगों का आना कम होता है। इन मंदिरों में प्रति मंगलवार और शनिवार को आरती एवं हनुमान चालीसा पाठ प्रारंभ किया गया। ऐसे तीन मंदिर समाज को सौंपे जा चुके हैं। ये आराधना के केंद्र बन गए हैं। महाकोशल प्रांत में कार्यकर्ता प्रशिक्षण एवं गुणवत्‍ता विकास की दृष्टि से महाविद्यालयीन विद्यार्थियों के बीच कार्य बढ़ाने एवं प्रत्‍येक इकाई में टोली खड़ी करने के उद्देश्‍य से प्रांत स्‍तर पर विद्यार्थियों का ‘सृजन शिविर’ आयोजित किया गया।विद्यार्थियों को संघ से जोड़ने के लिए प्रांत में 30 स्‍थानों पर संघ परिचय वर्ग आयोजित हुए। शॉर्ट फि‍ल्‍म निर्माण एवं प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट बनाने हेतु कार्यशालाएं आयोजित की गईं। पपू.सरसंघचालक के प्रवास में संगोष्‍ठी आयोजित की गई जिसमें समाज के अपने अपने कार्यक्षेत्र में विशेष योग्‍यता रखने वाले 1070 लोग उपस्थित रहे। ये सभी पूर्व से संघ के संपर्क में नहीं थे।

वर्तमान परिदृश्‍य

वर्तमान समय देश को सभी मोर्चों पर आगे बढ़ते देखना आनंद का विषय है। देश के साथ ही विदेशों में रह रहे भारतीयों ने स्‍वतंत्रता का अमृत महोत्‍सव मनाया है। राष्‍ट्रीय नवोत्‍थान का प्रारंभ हर ओर अनुभव में आ रहा है। भारत की शक्ति, सामर्थ्‍य एवं प्रतिष्‍ठा में वृद्धि हो रही है। कोरोना महामारी के चुनौतीपूर्ण काल में भी देश की आत्‍मनिर्भरता का संकल्‍प सुफल देने की स्थिति में आया है। कई प्रमुख आर्थिक विशेषज्ञों के वक्‍तव्‍य हैं कि वर्तमान शताब्दी भारत की शताब्दी होगी। संकट के काल में भी देश की अर्थव्‍यवस्‍था न केवल सुधरी है बल्कि विश्‍व में पांचवें स्‍थान पर पहुंच गई है। इस समय में औपनिवेशिक दासता की मानसिकता को त्‍यागकर स्‍वत्‍व का जागरण हो रहा है। बाढ़, भूकंप, दुर्घटनाओं जैसी आपदा के समय राहत कार्यों में समाज और संगठन आगे आते हैं। स्‍वच्‍छता, समरसता, रोजगार सृजन की दिशा में समाज का उल्‍लेखनीय कार्य देखने में आ रहा है। राष्‍ट्र को समृद्ध, स्‍वाभिमानी एवं सुसंस्‍कारित बनाने में मात्र सरकार की नीति एवं प्रयत्‍नों पर निर्भर न होकर समाज को भी अपना कर्तव्‍य बखूबी निभाना चाहिए यही संघ की दृष्टि है।

देश‌‌ के इस अमृतकालमैं भी कई गंभीर चुनौतियांहैं।इतिहासकी परिस्थितियों से उत्पन्नविकृत एवं स्वार्थी मानसिकता वालेराष्ट्र घातक तत्वों की कुटिलताके कारणकईसामाजिकएवं राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।मतांतरण के षड्यंत्रोंसेभी समाज संघर्षकर रहा
समाज संगठन, समाज जागृति एवं राष्ट्र निर्माण की अपनी साधना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शीघ्र ही शत वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। संघ कार्य में समाज की जनता भी स्वयं सहभागी हो रही है तथा अपार सहयोग भी दे रही है।अतः हमें कार्य को तीव्र गति देनी ही होगी। शताब्दी वर्ष के लक्ष्य के निमित्त कार्य विस्तार एवं गुणवत्ता के सार्थक प्रयासों के साथ साथ समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी जीवन शैली, नागरिक कर्तव्य का जागरण जैसे समाज परिवर्तन के विविध आयामों को प्रभावी बनाना, वैचारिक विमर्श को राष्ट्रीय दिशा देना और समाज की सज्जन शक्ति का सही संचालन करना इन कार्यों में भी सफलता प्राप्त करना। एक स्वाभिमानी, समृद्धशाली, सुशील संपन्न, संगठित एवं समरस भारत के समग्र तथा सुंदर प्रारूप को ले कर संघ कार्य अग्रसर हो रहा है।

प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्‍ताव

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचारित अभिमत है कि विश्व कल्याण के उदात्त लक्ष्य को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु भारत के ‘स्व’ की सुदीर्घ यात्रा हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रही है। विदेशी आक्रमणों तथा संघर्ष के काल में भारतीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ तथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुँची। इस कालखंड में पूज्य संतों व महापुरुषों के नेतृत्व में संपूर्ण समाज ने सतत संघर्षरत रहते हुए अपने ‘स्व’ को बचाए रखा। इस संग्राम की प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’ त्रयी में निहित थी, जिसमें समस्त समाज की सहभागिता रही। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर सम्पूर्ण राष्ट्र ने इस संघर्ष में योगदान देने वाले जननायकों, स्वतंत्रता सेनानियों तथा मनीषियों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण किया है।
स्वाधीनता प्राप्ति के उपरांत हमने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर रही है। भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को विश्व स्वीकार कर रहा है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा के आधार पर विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए भारत अपनी भूमिका निभाने के लिए अग्रसर है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मत है कि सुसंगठित, विजयशाली व समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, सर्वांगीण विकास के अवसर, तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग एवं पर्यावरणपूरक विकास सहित आधुनिकीकरण की भारतीय संकल्पना के आधार पर नए प्रतिमान खड़े करने जैसी चुनौतियों से पार पाना होगा। राष्ट्र के नवोत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इस दृष्टि से समाज के सभी घटकों, विशेषकर युवा वर्ग को समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता रहेगी। संघर्षकाल में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु जिस प्रकार त्याग और बलिदान की आवश्यकता थी; उसी प्रकार वर्तमान समय में उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नागरिक कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध तथा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त समाजजीवन भी खड़ा करना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस पर दिये गए ‘पंच-प्रण’ का आह्वान भी महत्वपूर्ण है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात को रेखांकित करना चाहती है कि जहाँ अनेक देश भारत की ओर सम्मान और सद्भाव रखते हैं, वहीं भारत के ‘स्व’ आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियाँ स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाली देश के भीतर और बाहर की अनेक शक्तियाँ निहित स्वार्थों और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास, तंत्र के प्रति अनास्था और अराजकता पैदा करने हेतु नए-नए षड्यंत्र रच रही हैं। हमें इन सबके प्रति जागरूक रहते हुए उनके मंतव्यों को भी विफल करना होगा। यह अमृतकाल हमें भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रबुद्ध वर्ग सहित सम्पूर्ण समाज का आह्वान करती है कि भारतीय चिंतन के प्रकाश में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं सहित समाजजीवन के सभी क्षेत्रों में कालसुसंगत रचनाएँ विकसित करने के इस कार्य में संपूर्ण शक्ति से सहभागी बने, जिससे भारत विश्वमंच पर एक समर्थ, वैभवशाली और विश्वकल्याणकारी राष्ट्र के रूप में समुचित स्थान प्राप्त कर सके।

महावीर स्वामी के निर्वाण के 2550 वर्ष पूर्ण होने पर सरकार्यवाह का वक्तव्य

भगवान महावीर की निर्वाण प्राप्ति के 2550 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने कार्तिक अमावस्या के दिन अष्टकर्मों का नाश करके निर्वाण प्राप्त किया था। जनमानस को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जानी वाली इस दिव्य विभूति ने आत्मकल्याण तथा समाज कल्याण में अपने जीवन को समर्पित कर मानवता पर परम उपकार किया। मानवता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के रूप में पाँच सूत्र दिए थे, जिनकी सार्वकालिक प्रासंगिकता है। भगवान महावीर ने नारीशक्ति को सम्मानजनक स्थान प्रदान करते हुए उन्हें खोया हुआ गौरव लौटा कर समाज में लैंगिक भेदभाव मिटाने का युगांतरकारी कार्य किया।

अपरिग्रह के संदेश से उन्होंने अपनी आवश्यकताओं को सीमित करते हुए संयम पूर्ण जीवन जीने तथा अपनी अतिरिक्त आय को समाज के हित में समर्पित करने की समाज को दिशा दी। हमारी वर्तमान जीवन शैली से पर्यावरण को हो रही हानि से उसे बचाने में अपरिग्रह का सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। अहिंसा, सह-अस्तित्व और प्राणिमात्र में समान आत्मतत्व के दर्शन करने की उनकी शिक्षा का अनुपालन विश्व के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित कर्म सिद्धांत में अपने कष्टों और दुःखों के लिए दूसरों को उत्तरदायी ठहराने से बचने तथा अपने कर्म को ही कर्ता के सुख-दुःख का कारण मानने का सन्देश निहित है।

“स्यादवाद” भगवान महावीर का एक प्रमुख सन्देश है। अनेक प्रकार के द्वन्द्वों से पीड़ित मानवता को बचाने तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए स्यादवाद आधार बन सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मत है कि वर्तमान को वर्द्धमान की बहुत आवश्यकता है। भगवान महावीर की निर्वाण प्राप्ति के 2550 वें वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता है। सभी स्वयंसेवक इस निम्मित्त आयोजनों में पूर्ण मनोयोग से योगदान करेंगे तथा उनके उपदेशों को जीवन में चरित्रार्थ करेंगे। समाज से यह अपेक्षा है कि भगवान महावीर की शिक्षा को अंगीकार करते हुए विश्व मानवता के कल्याण में स्वयं को समर्पित करे।

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण के 350वें वर्ष के उपलक्ष्य में सरकार्यवाह का वक्तव्य

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के उन महान व्यक्तित्वों में एक हैं, जिन्होंने समाज को सैकड़ों वर्षों की दासता की मानसिकता से मुक्त कर समाज में आत्मविश्वास व आत्मगौरव का भाव जगाया। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को उनका राज्याभिषेक हुआ तथा हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना हुई। इस वर्ष हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350वाँ वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। महाराष्ट्र सहित देशभर में इस निमित्त अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। रा. स्व. संघ इस पावन अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज का पुण्यस्मरण करते हुए स्वयंसेवक तथा सभी समाज घटकों का आहवान करता है कि ऐसे सभी आयोजनों में भाग लेकर हिन्दवी स्वराज की स्थापना जैसी युगप्रवर्तक घटना का पुनःस्मरण करें।

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अद्वितीय पराक्रम, रणनीतिक कुशलता, युद्धशास्त्र की मर्मज्ञता, संवेदनशील, न्यायपूर्ण व पक्षपातरहित प्रशासन, नारी का सम्मान प्रखर हिंदुत्व जैसी कई विशेषताओं से परिपूर्ण रहा। विपरीत परिस्थिति का सामना करते समय भी अपने ध्येय तथा ईश्वर पर श्रद्धा व विश्वास, माता पिता एवं गुरु जनों का सम्मान, अपने साथियों के सुख-दुःख में साथ निभाने, समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के कई उदाहरण उनके जीवन में पाए जाते हैं। बाल्यकाल से ही अपने व्यक्तित्व से उन्होंने अपने साथियों में स्वराज्य स्थापना हेतु प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा जगाई, जो आगे चलकर भारत के अन्यान्य प्रदेशों के देशभक्तों के लिए भी प्रेरणादायक रही। उनके शरीर के शांत होने के पश्चात् भी सामान्य समाज ने दशकों तक एक सर्वंकष आक्रमण का यशस्वी प्रतिकार किया, जो इतिहास में अनोखा उदहारण है। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बाल्यकाल में लिये गए स्वराज्य स्थापना के संकल्प का उद्देश्य मात्र सत्ता प्राप्ति नहीं अपितु, धर्म एवं संस्कृति के रक्षा हेतु ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना करना था। अतः उन्होंने उसका अधिष्ठान ‘यह राज्य स्थापना श्री की इच्छा है’ इस भाव से जोड़ा था। स्वराज्य स्थापना के समय अष्टप्रधान मंडल की रचना, ‘राज्यव्यवहार कोष’ का निर्माण और स्वभाषा का उपयोग, कालगणना हेतु शिव-शक का प्रारम्भ, संस्कृत राजमुद्रा का उपयोग, आदि कार्यकलाप ‘धर्मस्थापना’ के उद्देश्य से स्थापित ‘स्वराज्य’ को स्थायित्व देने की दिशा में ही रहे। आज भारत अपनी समाजशक्ति को जागृत करते हुए अपने ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ रहा है, भारत के ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना के उद्देश्य से चली छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनयात्रा का स्मरण अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रेरणास्पद है।

महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जन्म जयंती के अवसर पर सरकार्यवाह का वक्तव्य

पराधीनता के काल में जब देश अपने सांस्कृतिक व आध्यात्मिक आधार के सम्बन्ध में दिग्भ्रमित हो रहा था, तब महर्षि दयानन्द सरस्वती का प्राकट्य हुआ। उस काल में उन्होंने राष्ट्र के आध्यात्मिक अधिष्ठान को सुदृढ़ करने हेतु “वेदों की ओर लौटने” का उद्घोष कर समाज को अपनी जड़ों के साथ पुनः जोड़ने का अद्भुत कार्य किया। समाज को बल व चेतना प्रदान करने तथा समय के प्रवाह में आई कुरीतियों को दूर करनेवाले महापुरुषों की श्रृंखला में महर्षि दयानंद सरस्वती दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रादुर्भाव व उनकी प्रेरणाओं से हुई सांस्कृतिक क्रांति का स्पंदन आज भी अनुभव किया जा रहा है।
सत्यार्थप्रकाश में स्वराज को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा कि स्वदेशी, स्वभाषा, स्वबोध के बिना स्वराज नहीं हो सकता। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महर्षि दयानंद की प्रेरणा और आर्यसमाज की सहभागिता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनेक स्वनामधन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने इनसे प्रेरणा ली। “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” के संकल्प के साथ प्रारंभ किये गए आर्यसमाज के माध्यम से भारत को सही अर्थों में आर्य व्रत (श्रेष्ठ भारत) बनाना उनका प्रथम लक्ष्य था।

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उन्होंने नारी को अग्रणी स्थान दिलाने के लिए युगानुकूल व्यवस्थाएँ बनाकर कन्या पाठशाला और कन्या गुरुकुल के माध्यम से उनको न केवल वेदों का अध्ययन करवाया अपितु नारी शिक्षा का प्रसार भी किया। आदर्श जीवनशैली अपनाने के लिए उन्होंने आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) पर न केवल आग्रह किया, अपितु उनके लिए व्यवस्था भी निर्माण की। उन्होंने देश की युवा पीढ़ी में तेजस्विता, चरित्र निर्माण, व्यसनमुक्ति, राष्ट्रभक्ति के संचार, समाज व देश के प्रति समर्पण निर्माण करने के लिए गुरुकुल व डीएवी विद्यालयों का प्रसार कर एक क्रांति की थी। गौ रक्षा, गोपालन, गौ आधारित कृषि, गौ संवर्धन के प्रति उनका आग्रह आज भी आर्यसमाज के कार्यों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने शुद्धि आन्दोलन प्रारम्भ कर धर्मप्रसार का एक नया आयाम खोला, जो आज भी अनुकरणीय है। महर्षि दयानंद का जीवन उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का साकार स्वरूप था। सादगी, परिश्रम, त्याग, समर्पण, निर्भयता एवं सिद्धांतों के प्रति अडिगता उनके जीवन के प्रत्येक क्षण में परिलक्षित होती है।

महर्षि दयानंद के उपदेशों और कार्यों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। उनकी द्विशताब्दी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें श्रध्दापूर्वक वंदन करता है। सभी स्वयंसेवक इस पावन अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में पूर्णमनोयोग से भाग लेकर उनके आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करें। रा. स्व. संघ की मान्यता है कि अस्पृश्यता, व्यसन और अंधविश्वासों से मुक्त करके एवं ‘स्व’ से ओत-प्रोत संस्कारयुक्त ओजस्वी समाज का निर्माण करके ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।