Gadkari: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया, जिसने राजनीतिक हलकों और आम लोगों दोनों को चौंका दिया। उन्होंने कहा कि “समाज में ऐसे लोगों की जरूरत है जो सरकार के खिलाफ अदालत का रुख करें।” यह बयान उन्होंने प्रकाश देशपांडे स्मृति कुशल संघटक पुरस्कार समारोह के दौरान दिया, जहां वह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
गडकरी ने कहा कि अदालतों में दायर याचिकाएं और कानूनी चुनौतियां किसी सरकार को कमजोर नहीं करतीं, बल्कि उससे शासन प्रणाली और राजनीति में अनुशासन आता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि लोकतंत्र तभी मजबूत बनता है जब सरकार के फैसलों की न्यायिक समीक्षा होती रहे और जनहित के मुद्दों पर आवाज उठाई जाए।

कई बार न्यायालय ही करवाता है वो बदलाव जो मंत्री नहीं कर पाते
गडकरी ने स्पष्ट किया कि सरकार चलाने में कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जहां मंत्री चाहे भी तो कुछ फैसले नहीं ले सकते। इसका कारण उन्होंने राजनीतिक मजबूरियों और जन दबाव को बताया। उन्होंने कहा,”लोकप्रिय राजनीति (पॉपुलर पॉलिटिक्स) के चलते कई बार सरकार निर्णय लेने में असमर्थ हो जाती है। पर अदालत के आदेश से वही निर्णय सहजता से लागू हो जाता है।”
गडकरी ने स्वीकार किया कि न्यायपालिका द्वारा दिए गए आदेश कई बार नीतियों में वह परिवर्तन करवा देते हैं, जो किसी राजनीतिक नेतृत्व के लिए संभव नहीं होता। यह वक्तव्य उन्होंने ऐसे समय में दिया है जब देश में कई नीतिगत फैसलों को लेकर अदालती दखल को लेकर बहस चल रही है।
शिक्षा क्षेत्र के संघर्षों का किया उल्लेख
अपने भाषण के दौरान गडकरी ने शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का विशेष रूप से ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि पुरस्कार पाने वाले कई लोगों ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए अदालतों का सहारा लिया और सरकार के कुछ ‘गलत फैसलों’ को चुनौती दी, जिससे नीति परिवर्तन संभव हुआ। गडकरी ने कहा- इन कार्यकर्ताओं ने शिक्षा में निजीकरण, आरक्षण, नियुक्तियों और पाठ्यक्रम जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियों को अदालत में चुनौती दी। इससे सरकार को कई बार अपने फैसले वापस लेने पड़े, और यह जनहित के लिए जरूरी था। उन्होंने यह भी माना कि समाज में ऐसे सजग और संवेदनशील नागरिकों की जरूरत है जो केवल सरकार की प्रशंसा न करें, बल्कि सत्य और न्याय के लिए आवाज उठाएं।
लोकतंत्र में विपक्ष और निगरानी की अहम भूमिका
नितिन गडकरी का यह बयान उनकी राजनीतिक परिपक्वता और लोकतंत्र के प्रति समझ को दर्शाता है। उन्होंने यह साफ किया कि भले ही वह सत्तारूढ़ दल से हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब सरकार के फैसलों पर सवाल उठाए जाएं। उन्होंने कहा- हमारी राजनीति में ऐसे लोग ज़रूरी हैं जो सवाल करें, सरकार की गलतियों को उजागर करें और जरूरत पड़ने पर न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाएं। यही स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है। गडकरी का यह नजरिया ‘जन विरोधी नहीं, बल्कि जन हितैषी निगरानी’ की ओर इशारा करता है। उनका मानना है कि लोकतंत्र में केवल सत्ताधारी दल या सरकार ही अहम नहीं होती, बल्कि सिविल सोसाइटी, मीडिया और न्यायपालिका की भी समान भागीदारी होनी चाहिए।
जनहित की आलोचना स्वीकारना ही असली लोकतंत्र
नितिन गडकरी के इस बयान को सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी मान लेना भूल होगी। यह उस सोच का प्रतिबिंब है जिसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान, जन भागीदारी की अहमियत और संवैधानिक मर्यादा का समावेश है। जब सत्ता में बैठे नेता यह कहें कि ‘सरकार के खिलाफ कोर्ट में जाने वाले लोग समाज के लिए जरूरी हैं’, तो यह किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है। गडकरी ने यह भी दिखा दिया कि सिर्फ समर्थन नहीं, बल्कि संवेदनशील आलोचना और संस्थागत हस्तक्षेप ही शासन को जनहितकारी बनाते हैं। यह बयान न केवल प्रशंसा के योग्य है, बल्कि यह सभी दलों और नेताओं के लिए एक मिसाल भी है।