इंदौर। लगातार छह बार स्वच्छता में नंबर वन आने के बाद अब सातवीं बार इस खिताब को अपने नाम करने में जुटा है। देश में अपनी स्वच्छता का लोहा मनवाने वाले इंदौर के दिन की सफाई की शुरुआत से लेकर रात भर सफाई चलती रहती है। इसके लिए कई मशीन, गाडियां और निगम के कर्मचारी कार्यरत है, इसी के साथ इस कचरे से उपयोगी चीज और सीएनजी निर्माण ने देश को चौका दिया है।
तीन शिफ्ट में होती है स्वच्छ शहर की सफाई, जीपीएस सिस्टम से होती है मॉनिटरिंग
लगभग 576 गाडियां हर रूट पर एक गाड़ी सुबह 6 बजे से दुसरे दिन की सुबह 6 बजे तक कचरा उठाती है, इसे तीन शिफ्ट में बांटा गया है, जिसमें सुबह 6 बजे से दोपहर के 2 बजे तक यह गाडियां कचरा उठाती है, दूसरी शिफ्ट 3 बजे से रात के 10 बजे तक, वहीं तीसरी शिफ्ट में रात के 10 से सुबह 6 बजे तक सफाई की जाती है। दूसरी ओर तीसरी शिफ्ट की गाडियां अपने जोन के मार्केट का कचरा उठाती है, हर गाड़ी पर एक ड्राइवर और एक हेल्पर होता है। इन सभी गाड़ियों की आईएसडब्ल्यूएम से जीपीएस के द्वारा मॉनिटरिंग की जाती है।
दिन भर चलती रहती है, मार्केट और स्ट्रीट लीटर बिन की सफाई
मार्केट और स्ट्रीट पर लगे लीटर बीन को साफ करने के लिए हर वार्ड में लगभग 85 ओपन गाडियां चलती है। वहीं ज्यादा गिला कचरा उठाने के लिए लगाए जाते हैं जेसीबी डंपर मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के साथ मार्केट एरिया में नाइट शिफ्ट में नगर निगम के कर्मचारी की टीम सफाई व्यवस्था देखती है, वहीं आईडब्ल्यूएम की टीम और नगर निगम कर्मचारी स्विपिंग मशीन से शहर की मैन रोड की सफाई करते हैं।
लगभग 500 टन गिला और 500 टन सुखा कचरा रोजाना निकलता है।
डोर टू डोर व्हीकल को छह भागों में बांटा गया है, जिसमें गिला, सुखा, इलेक्ट्रिक वेस्ट, सैनेट्री वेस्ट, और प्लास्टिक वेस्ट होता है। यह सभी कचरा प्लांट पर जाता है, इसके बाद इसे अलग अलग भागों में बांट लिया जाता है, इसके बाद सूखा कचरा नेफ्रा प्लांट में तो गिला कचरा सीएनजी प्लांट में जाता है। सूखे कचरे से प्लास्टिक के दाने, पेपर, पुष्टे और अन्य उपयोगी चीजों का निर्माण किया जाता है। वहीं गीले कचरे से सीएनजी बनाई जाती हैं। सैनेट्री पैड मेडिकल वेस्ट में जाता है, इसे डिस्ट्रॉय कर दिया जाता है। अगर बात रोजाना निकलने वाले कचरे की करी जाए तो 500 टन गिला और 500 टन सुखा कचरा रोजाना निकलता है।