हिंदी पत्रकारिता का संकट- 5
अर्जुन राठौर
इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल ने हिंदी की स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भी गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिए इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि इस काल में अखबारों ने बढ़ते हुए घाटे को देखते हुए स्वतंत्र पत्रकारों के लेख छापना न केवल बंद कर दिया बल्कि जिनके छपते थे उनके भी पेमेंट रोक दिए गए ।
देश में हजारों पत्रकारों ऐसे हैं जो स्वतंत्र पत्रकारिता करके अपनी आजीविका चलाते हैं लेकिन जब से कोरोना की शुरुआत हुई स्वतंत्र पत्रकारों के लिए जीवन यापन करना बेहद कठिन हो गया हिंदी के अखबार वैसे भी छपने वाले लेखों का भुगतान बहुत कम करते थे कोरोना आने के बाद अखबारों ने भुगतान करना बंद कर दिया और पुराने छपे हुए आर्टिकल के पेमेंट भी रोक लिए इस पूरे मामले को लेकर मेरी कई स्वतंत्र पत्रकारों से बात हुई उनका कहना था कि हिंदी के कई अखबार अब पेमेंट नहीं कर रहे हैं और वे कहीं और से मैटर लेकर छाप देते हैं कुल मिलाकर कोरोना काल में अखबारों को जो कथित घाटा हुआ है उसका शिकार उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारों को बनाया
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भी अब गंभीर खतरा मंडरा रहा है मेरे एक अन्य पत्रकार मित्र का कहना है कि न्यूज़ वेबसाइट से सीधे-सीधे मैटर उठा लिया जाता है और कोशिश की जाती है कि ऐसा मैटर लिया जाए जिसमें भुगतान नहीं करना पड़े । कई अखबारों ने अपने लेखकों को भुगतान आधे कर दिए देश के नामी गिरामी बड़े अखबारों ने भी अपने यहां कालम लिखने वाले पत्रकारों के पेमेंट बहुत कम कर दिए । देश भर के वरिष्ठ पत्रकार स्वतंत्र पत्रकारिता पर आए इस संकट को लेकर असहाय महसूस कर रहे हैं ।