नई दिल्ली : अक्सर आपने देखा होगा अमेजन-फ्लिपकार्ट जैसी कई सारी ई-कॉमर्स साइट्स से लेकर बड़े-बड़े मॉल में लगी सेल (Sale) में प्राइस टैग का पूरे 100 रुपये न होकर उससे 1 रुपया कम होना। जैसे 99, 599, 999 या फिर 19,999 रुपये। आखिर यह टैग क्यों होता है? सब जगह क्या है इसके पीछे की वजह?..
ऐसे में आपके भी मन में कई बार एक विचार जरूर आता होगा कि आखिर कंपनियां ऐसा प्राइस क्यों रखती हैं? क्या इससे ज्यादा कमाई होती है? तो आज हम आपको इसके पीछे का छुपा हुआ एक राज बताने जा रहे है।
जी हां, दरअसल, एक रणनीति के तहत ही कंपनी किसी प्रोडक्ट की कीमत तय वक्त रेट 100 या 1,000 रुपये न रखकर 99 या 999 रुपये रखती है। तो आपको बता दे कि ऐसा कंपनियां बिक्री बढ़ाने के लिए करती हैं। जानकारी के मुताबिक प्राइस 99 पर ही समाप्त करने से न तो कंपनी को टैक्स में कोई छूट मिलती है और न ही कोई और फायदा होता है। सालों से इस तरह की सेल में इजाफा करने के लिए यह एक आजमाया हुआ नुस्खा है।
साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी
दरअसल, साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी के तहत ये कंपनियां काम करती है। ऐसे में जब भी आप किसी प्रोडक्ट की कीमत 9 के फिगर में देखते हैं तो आपको वह कम लगती है। अगर किसी प्रोडक्ट की कीमत 599 रुपये है तो आपको यह कीमत एक नजर में 500 के करीब लगेगी, ना कि 600। साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को कंपनियां ग्राहकों का ध्यान अपने प्रोडक्ट की ओर आकर्षित करने के लिए अपनाती हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार शोध में यह साबित हो चुका है कि साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी की कारगरता शिकागो यूनिवर्सिटी और एमआईटी के शोध में भी साबित हो चुकी है। इसके तहत उन्होंने महिलाओं के कपड़ों की कीमत को 34 डॉलर, 39 डॉलर और 44 डॉलर की कैटेगरी में रखा. सबसे अधिक वह कपड़े बिके, जिनकी कीमत 39 डॉलर रखी गई।
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