* दिनेश निगम ‘त्यागी’
– माफिया के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सरकार कटघरे में है। जब कम्प्यूटर बाबा के खिलाफ कार्रवाई हुई, तब आरोप लगे थे कि बाबा भाजपा में थे तो पाक साफ और कांग्रेस के साथ गए तो माफिया समझकर कार्रवाई कर डाली गई। इंदौर में राशन माफिया के खिलाफ रासुका की कार्रवाई को लेकर भी सरकार पर पक्षपात के आरोप लग रहे हैं। लगभग 80 करोड़ के राशन घोटाले का भंडाफोड़ करते हुए कलेक्टर इंदौर ने तीन लोगों के खिलाफ रासुका की कार्रवाई की बात कही थी। ये थे भरत दवे, श्याम दवे और प्रमोद दहीगुड़े। लेकिन कार्रवाई सिर्फ भरत दवे और श्याम दवे पर हुई। प्रमोद दहीगुड़े को छोड़ दिया गया। आरोप है कि दहीगुड़े को भाजपा से संबंधों के कारण बचा लिया गया। तीसरा मामला भी इंदौर का है। जिसमें मंत्री ऊषा ठाकुर पर थाने से लकड़ी माफिया को ट्रैक्टरों के साथ छुड़ा कर ले जाने के आरोप लगे। एक वन कर्मचारी ने पुलिस से ऊषा सहित कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आवेदन भेजा। ऊषा ठाकुर के बचाव में पूरी सरकार आ गई लेकिन कार्रवाई के लिए पत्र लिखने वाला वन कर्मचारी झुकने को तैयार नहीं था। उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी। माफिया के खिलाफ इस तरह कार्रवाई चली तो इससे लोगों का विश्वास उठना तय है।
0 नेतृत्व कमलनाथ का, छाए रहे दिग्विजय….
– केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ एवं आंदोलनरत किसानों के समर्थन में कांग्रेस ने भोपाल के प्रदर्शन में ताकत दिखाई। आंदोलन इस मायने में सफल रहा कि यह राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर ले गया। वजह रही प्रदर्शनकारियों पर पुलिस का लाठी चार्ज, आंसू गैस के गोले एवं पानी की बौछार। मजेदार बात यह है कि प्रदर्शन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में किया गया लेकिन छाए रहे दिग्विजय सिंह। कमलनाथ को दिग्विजय बड़ा भाई मानते हैं, हालांकि दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है। आंदोलन में दोनों शामिल हुए। फर्क यह था कि कमलनाथ रैली में कुछ देर शामिल होने और आंदोलनकारियों को संबोधित कर चले गए। लाठी चार्ज, आंसू गैस एवं पानी के बौछारों के बीच वे कार्यकर्ताओं के साथ नहीं थे। इसके विपरीत दिग्विजय सिंह इस उम्र में बैरीकेंडस क्रास करते नजर आए। पूरे समय आंदोलनकारियों के साथ रहे, गिरफ्तारी दी। राजभवन ज्ञापन देने भी वे ही गए। अर्थात कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए नेता को जो करना चाहिए वह दिग्विजय सिंह ने किया, कमलनाथ ने नहीं। इसीलिए लोगों को कहते सुना गया कि कमलनाथ केंद्रीय राजनीति के लिए फिट हैं, प्रदेश में खासकर विपक्ष की राजनीति उनके बस की नहीं।
0 उमा ने बढ़ाई सरकार की मुश्किल….
– शराब की दुकानें बढ़ाने के प्रस्ताव के मसले पर प्रदेश सरकार बैकफुट पर है। अवैध शराब की बिक्री पर लगाम का तर्क देकर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने यह प्रस्ताव रखा था। इसे लेकर सरकार चौतरफा घिर गई। उमा के मैदान में आने से सरकार की मुश्किल और बढ़ी। पहला हमला कांग्रेस नेताओं ने बोला। आधार कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान द्वारा लिखे पत्र को बनाया गया। कांग्रेस सरकार ने अधिकृत दुकानों की उप दुकानें खोलने का प्रस्ताव तैयार किया था। इस पर शिवराज सिंह चौहान सहित समूची भाजपा ने आसमान सिर पर उठा लिया था। अब कमलनाथ सहित कांग्रेस के नेता उसी भूमिका में हैं। सरकार की मुश्किल तब और बढ़ी जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि शराब दुकाने बढ़ाने को लेकर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया, दूसरी तरफ आबकारी आयुक्त राजीव दुबे ने कलेक्टरों को पत्र लिखकर नई शराब दुकानें खोलने के प्रस्ताव बुला लिए। इस बीच उमा भारती ने मोर्चा संभाला। उन्होंने शराबबंदी की वकालत करते हुए इसे लेकर प्रदेश में अभियान चलाने का एलान कर दिया। हालात की नजाकत समझ मुख्यमंत्री ने आबकारी आयुक्त के निर्देश पर रोक लगा दी है। बावजूद इसके शराब को लेकर सरकार कटघरे में है।
0 बड़ा हिंदू चेहरा कौन, प्रज्ञा या रामेश्वर….
– भाजपा के अंदर एक नई लड़ाई छिड़ गई है। बड़ा हिंदू चेहरा कौन? सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर या विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा? रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य नितीश पाल के आमंत्रण पर रामेश्वर ने अपने विधानसभा क्षेत्र के संतनगर रेलवे स्टेशन में एक फूड स्टॉल का उद्घाटन कर दिया तो सांसद प्रज्ञा आगबबूला हो गईं। उन्होंने कहा कि मेरे कार्यक्षेत्र में विधायक दखल दे रहे हैं। उनका सांसद रहना ही व्यर्थ है। वे इसकी शिकायत केंद्रीय रेल मंत्री से करेंगी और नितीश को रेलवे सलाहकार समिति से हटवाएंगी। साध्वी के नाराज होने का यह पहला मामला नहीं है। कुछ दिन पहले मंच पर सीट को लेकर वे मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम से उठकर चली आई थीं। नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त कहने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी व्यक्त की थी। रामेश्वर से लड़ाई की अलग वजह है। दरअसल रामेश्वर शर्मा भाजपा में सबसे बड़े हिंदू चेहरे के तौर पर उभर रहे हैं। हिंदुओं के पक्ष में उनके बयान उप्र के संगीत सोम जैसे आक्रामक होते हैं। भाजपा ने प्रज्ञा को हिंदू चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करने के उद्देश्य से भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया था और बाजी रामेश्वर मारते दिख रहे हैं। लिहाजा, जैसे ही मौका मिला साध्वी ने रामेश्वर पर हमला बोल दिया।
0 इस तरह अनुशासित दल रह पाएगी भाजपा….
– भाजपा सरकार के चौथे कार्यकाल में कई नेता अनुशासन की परवाह नहीं कर रहे हैं। सर्वाधिक चर्चा में दो नाम पूर्व मंत्री अजय विश्नोई एवं विधायक नारायण त्रिपाठी के हैं। पार्टी नेतृत्व की समझाइश और फटकार का इन पर कोई असर नहीं हो रहा। अजय विश्नोई को ही लें, शिवराज सिंह ने चौथी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद जैसे ही मंत्रिमंडल का गठन किया, वे हमलावर हो गए। पहले पांच और 28 मंत्रियों ने शपथ ली थी, तब उन्होंने सवाल उठाए थे। उप चुनावों के बाद दो मंत्रियों को शपथ दिलाई गई, तब भी उन्होंने विंध्य एवं महाकौशल की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी पर तंज कसा। संगठन ने उन्हें बुलाकर समझाया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अभी उन्होंने शराब को लेकर फिर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। इसी प्रकार नारायण त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश की मांग उठाई तो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें बुलाकर समझाया, लेकिन उनके स्वर नहीं बदले। उन्होंने कहा कि विंध्य के लिए वे कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी भाजपा सरकार से अलग राह पकड़ते हुए शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलाने का एलान कर दिया है। स्पष्ट है कि भाजपा का अनुशासन तार-तार है और पार्टी असहाय, कुछ नहीं कर पा रही।