टेलेंट हर इंसान में होता है, बस पहचान कर तराशने की जरूरत है – पद्मजा रघुवंशी

Shivani Rathore
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उज्जैन  : शहर में संचालित मध्य भारत की अग्रणी कथक एवं लोकनृत्य संस्थाओं में से एक प्रतिभा संगीत कला संस्थान को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। इस संस्थान की मानसेवी अध्यक्ष श्रीमती पद्मजा रघुवंशी के नृत्य क्षेत्र में योगदान का वर्णन करना वैसे तो गर्मी की भरी दोपहरी में सूरज को दीया दिखाने जैसा है, फिर भी उनकी नृत्य कला और संस्थान के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता के चलते उनके संगीत कला संस्थान में जाने का मौका मिला। संस्थान की निदेशक उनकी सुपुत्री प्रतिभा रघुवंशी है।

संस्थान में प्रवेश करते ही वाद्ययंत्रों से निकलने वाला मधुर संगीत और संगीत की लय में ताल मिलाते पैरों में बंधे घुंघरूओं की ध्वनि से मन प्रफुल्लित हो उठता है। तभी नजर पड़ती है संस्थान की एक दीवार पर, जो अनगिनत ट्राफियों, शिल्ड, प्रमाण-पत्र और पुरस्कारों से भरी हुई है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धी है। यह श्रीमती रघुवंशी के शास्त्रीय नृत्य के प्रति असीम समर्पण और निष्ठा का ही सुखद परिणाम है, जो नई पीढ़ी को इस क्षेत्र में उन्नति, उत्थान और उत्कर्ष की प्रेरणा दे रहा है।श्रीमती पद्मजा रघुवंशी मूल रूप से उज्जैन की ही हैं। वे पेशे से शासकीय कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल दशहरा मैदान में शिक्षिका हैं, लेकिन शुरू से ही उनका कला की ओर विशेष रूझान रहा। कॉलेज में द्वितीय वर्ष की छात्रा रहते हुए उन्होंने कथक और मालवी लोकनृत्य उनके गुरू पं.हीरालाल जौहरी से सिखा। नृत्य के प्रति असीम लगाव के चलते ही उन्होंने और फिर नौकरी के साथ-साथ नृत्य के लिये भी समय निकाला। नृत्य के साथ-साथ उन्होंने कला के दूसरे क्षेत्रों जैसे थिएटर, लघु फिल्म निर्माण में भी अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाया।

इनके द्वारा दूरदर्शन और आकाशवाणी तथा कई बड़े शहरों में प्रस्तुति दी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि एक बहुत बड़े सन्त की प्रेरणा से उन्होंने शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा देने के लिये तथा नई पीढ़ी को इस कला से परिचित कराने के उद्देश्य से सन 2004 में यह संस्थान प्रारम्भ किया। इस संस्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां कथक सिखने के लिये उम्र की कोई सीमा नहीं है। यहां तीन साल से लेकर 70 साल तक की उम्र के शिष्य आते हैं।

इनमें ऐसे बच्चे जो बहुत गरीब परिवार से आते हैं, लेकिन प्रतिभाशाली हैं, उन्हें नृत्य की शिक्षा पूर्णत: नि:शुल्क दी जाती है। वर्तमान में इनके संस्थान में लगभग 100 शिष्य हैं। यहां के शिष्यों द्वारा देश के कई बड़े शहरों के साथ-साथ सिंगापुर, स्पेन, दुबई में आयोजित कई प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में प्रस्तुति दी गई है। साथ ही वर्तमान में संस्थान के चार बच्चे दिल्ली की संगीत नृत्य अकादमी में भी कथक की बारिकियों को सिखने के लिये गये हैं।

श्रीमती रघुवंशी का मानना है कि टेलेंट हर इंसान में होता है, बस उसे पहचान कर तराशने की जरूरत है। यह काम एक बेहतर गुरू का होता है। जब उनसे पूछा गया कि नौकरी और नृत्यकला में एक समय में वे इतना अच्छा तालमेल कैसे बैठा लेती हैं, तो उन्होंने कहा कि हर इंसान अपने मस्तिष्क को सही तरीके से ट्रेंड करके यह कार्य कर सकता है। बस उसे प्रबंधन का तरीका आना चाहिये। श्रीमती रघुवंशी एक सफल शिक्षिका और नृत्य गुरू होने के साथ-साथ उतनी ही कुशल गृहिणी भी हैं। उनके दोनों बच्चों को संगीत और कला विरासत में मिले हैं। उनकी बेटी के बारे में हम पहले ही बता चुके हैं, साथ ही उनका बेटे भी एक बहुत अच्छे गिटारिस्ट हैं।

श्रीमती रघुवंशी का मानना है कि शास्त्रीय नृत्य एक सागर की भांति है, जिसमें सिखने के लिये बहुत कुछ है। यहां जितनी व्यक्ति की सिखने की इच्छा और क्षमता है, उतना वह इस ज्ञान के सागर से सिख सकता है, लेकिन फिर भी कथक नृत्य में अच्छे से निपुण होने में पांच से छह साल लगते हैं। यहां नृत्य सिखने के लिये आने वाले बच्चों में सबसे पहले इस कला के प्रति रूचि उत्पन्न की जाती है, क्योंकि नृत्य एक ऐसी कला है जो बेमन से कभी नहीं की जा सकती।

उन्होंने बताया कि नृत्य से खुशी मिलती है, जब वे अपने शिष्यों के चेहरों पर खुशी देखती हैं तो वही सबसे बड़ा आत्मीय सुख होता है। उनका कहना है कि शास्त्रीय नृत्य में गरिमा है, सम्मान है तथा इसमें धैर्य की भी काफी आवश्यकता है। इस क्षेत्र में कैरियर का बहुत स्कोप है, पर यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह अपने आपको कैसे साबित करे तथा किस प्रकार अवसरों की तलाश करे।

श्रीमती पद्मजा रघुवंशी का महिलाओं और खासतौर पर नई पीढ़ी को यही सन्देश है कि वे अपना जीवन भरपूर जियें। अपने आपको आनन्द और उल्लास से भरपूर रखें तथा अपने माता-पिता का नाम रोशन करें। महिलाएं अपने अधिकारों और स्वयं के महत्व को समझें। खुद पर गर्व करना सिखें। माता-पिता अपने बच्चों में भरपूर आत्म विश्वास पैदा करें और उन्हें अपनी जिन्दगी जीने की भरपूर आजादी दें, लेकिन साथ ही बच्चों में सही और गलत के बीच में फर्क करने और निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास करें।