संसद में शीतकालीन सत्र शुरू हो गया है और इसके प्रारम्भ होते ही समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर काफी जोरों से बहस जारी है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में समान नागरिक सहिंता पर प्रस्ताव रखा। जिसके बाद संसद में हंगामा मचा और विपक्ष द्वारा इस बिल का जमकर विरोध किया जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? और अगर देश में ये लागू होता है तो इसके क्या मायने होंगे। तो आइये आज हम जानते है देश के लिए ये कितना जरुरी है और कितना गैर – जरुरी। दरअसल देश में लम्बे समय से इसको लेकर मांग चल रही है। समान नागरिक सहिंता यानि सभी के लिये एक कानून या दूसरे शब्दों में कहें देश के सभी नागरिकों पर एक कानून लागू होगा।
क्या है इस बिल के मायने
बिल का मतलब है कि एक देश एक कानून। यानि देश में शादी, तलाक, अडॉप्शन या फिर संपत्ती के बंटवारे जैसे सभी मुद्दों के लिए एक ही नियम और एक ही कानून होना चाहिए। जिन राज्यों में लागू किया जाएगा, वहां शादी, तलाक, बच्चा गोद लेने या फिर संपत्ति के बंटवारे के लिए सभी धर्म के लोगों को एक ही नियम का पालन करना होगा। सभी धर्म के नागरिकों के लिए समान नियम होगा जिसका सभी को पालन करना होगा।
जानें क्या है समान नागरिक सहिंता ?
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत और गोद लेने आदि में लागू होगा। इसका मतलब यह है कि हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा व्यक्तिगत कानून तकनीकी रूप से भंग हो जाएंगे।
संविधान का अनुच्छेद 44 क्या कहता है ?
संविधान के अनुच्छेद 44 में बताया गया है कि इसका अर्थ पूरे भारत में समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करना है। आर्टिकल 44 कहता है कि ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगा।’ अगर देश में यूसीसी को लागू किया जाता है तो सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे। इससे एक फायदा ये भी होगा कि जो लैंगिक पक्षपात होते हैं उससे आसानी से निपटा जा सकेगा।
समान नागरिक सहिंता के पीछे का उद्देश्य
अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर समूहों के खिलाफ भेदभाव को दूर करना और देश भर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। डा. बीआर आंबेडकर ने संविधान तैयार करते समय कहा था कि Uniform Civil Code वांछनीय है, लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए। इस प्रकार संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भाग IV में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के हिस्से के रूप में जोड़ा गया था।
हालाँकि हम सभी को बचपन से यह बताया जाता है और जैसा की संविधान में भी वर्णित है कि हमारे देश में सभी धर्मों को समान अधिकार दिया जाता है अथवा किसी के साथ उसके धर्म जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। यहां सभी धर्मों का समान रुप से सम्मान होता है। ऐसे में सभी धर्मों के रिति-रिवाज अलग-अलग हैं। और इस वजह से अलग-अलग धर्मों के आधार पर अलग-अलग नियम भी है। शायद यही कारण है कि देश में अबतक यूसीसी लागू नहीं हो सका है।
Also Read : मालवा और निमाड़ में 30 दिनों में 320 करोड़ यूनिट बिजली की ऐतिहासिक आपूर्ति का बना रिकॉर्ड
बता दें, समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा लंबे समय से बहस का केंद्र रहा है। भाजपा के एजेंडे में भी यह शामिल रहा है। पार्टी जोर देती रही है कि इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाए। भाजपा के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह शामिल था। हालांकि उत्तराखंड की धामी सरकार ने सत्ता में आते ही ऐलान कर दिया था कि यहां यूसीसी लागू किया जाएगा।