पुरे देश में आज शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी मनाई जा रही है जिसको लेकर उज्जैन शहर में नगर पूजा का आयोजन किया गया। कहा जाता है की नगर पूजा की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी, नगर पूजा में शहर की रक्षा करने वाले देवी देवताओ को मदिरा की भेट दी जाती है, पुराने समय में यह कार्य राजा किया करते थे लेकिन अब के समय में शहर के कलेक्टर नगर पूजा करते है. ऐसी मान्यता है की नगर पूजा करने से देवी खुश होती है और नगर पर आने वाले हर संकट से नगर की रक्षा करती है
कलेक्टर ने की नगर पूजा
जिसकी शुरुआत 24 खंभा माता पूजन से हुई। सुबह 8:45 बजे कलेक्टर आशीष सिंह छोटी देवी महालाया और बडी देवी महामाया को मदिरा की धार चढ़ाई इसके बाद शहर के 40 प्रमुख देवी व भैरव मंदिरों में पूजन कर प्रसादी चढ़ाई जाएगी। 27 किलोमीटर की इस यात्रा में पूरे मार्ग पर मंदिरा की धार चढ़ाई जाएगी।
40 मंदिरों में होगी नगर पूजा
सबसे पहले कलेक्टर द्वारा चौबीस खंभा महामाया महालया को मदिरा भोग अर्पित किया जयेगा , उसके बाद अर्द्धकाल भैरव केडी गेट, कालिका केडीगेट, खूंटपाल भैरव, चौसठ योगिनी, खूंट देव नयापुरा , लालबाई व फूलबाई उर्दूपुरा, शतचंडी शांभवी व वैष्णवी अंकपात द्वार, शतचंडी पुरुषोत्तम सागर, राम केवट हनुमान पुरुषोत्तम सागर • खटपाल काजीपुरा रोड, नगरकोट फाजलपुरा, नाके वाली दुर्गा माता फाजलपुरा, खूंटपाल आगररोड खूंटदेव भूतनाथ बटुक भैरव निजातपुरा, बिजासन माता निजातपुरा, चामुंडा देवासगेट, पद्मावती बहादुरगंज, देवासगेट भैरव, इंदौरगेट वाली माता ठोकरिया भैरव हनुमान नाका, खूंटदेव, यंत्रमहल मार्ग खूंटदेव यंत्रमहल मार्ग – इच्छामन माता गऊघाट पाला भूखी माता लालपुर रोड, सती माता बड़नगर रोड, खूंटदेव भैरव छोटा पल, कोयला मसानी भैरव छोटा पुल ,गणगौर माता एक व दो कार्तिक चौक श्मशान भैरव, चक्रतीर्थ सत्ता देव भैरव जूना सोमवारिया, आशा माता पीपलीनाका रिंगरोड आज्ञावीर वेताल तिलकेश्वर, गढ़कालिका, हांडीफोड़ अंकपात मार्ग
नगर पूजा में सबसे आगे चार ढोल चल रहे हैं, पीछे धर्म ध्वजा के साथ तांबे का पात्र लिए कोटवारों का दल चल रहा है। पात्र में मदिरा भरी हुई है, इससे रास्ते भर मदिरा की धार लगाई जा रही है। 27 किलोमीटर लंबे मार्ग पर करीब 25 लीटर शराब चढ़ाई जाएगी। साथ ही भजिए, पुरी, भिगोए हुए गेहूं व चने अर्पित किए जा रहे हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर नगर की सुख-समृद्धि के लिए उज्जैन के राजा सम्राट विक्रमादित्य भी नगर पूजा किया करते थे। यह परंपरा तभी से चली आ रही है।