भोपाल: केंद्र सरकार द्वारा देश के किसानो पर थोपे गए तीन काले कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ, किसान आंदोलन के समर्थन में संयुक्त प्रेस वार्ता में आरोप लगाते हुए कहा कि चंद औद्योगिक घरानों के हाथ की कठपुतली बनी हुई केन्द्र की भाजपा सरकार हर वह काम कर रही है, जिससे कि देश के किसान का ज्यादा से ज्यादा दमन हो व उद्योगपतियों की जेबें खूब भरें।
बगैर किसानों से चर्चा किये, बगैर किसान संगठनो को विश्वास में लिये, बगैर विपक्षी दलों से चर्चा किय, बगैर मत विभाजन के, कोरोना जैसी महामारी में संसद का सत्र बुलाकर आनन-फानन में इन कानूनों को किसानों पर जबर्दस्ती थोपा गया है। इन कानूनों का देश भर के किसान खुलकर विरोध कर रहे है।
पिछले एक माह से इन तीन काले कानूनों के खिलाफ पूरे देश के अन्नदाता कड़ाके की ठंड में, सड़को पर, अपने परिवारों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे हैं, अभी तक 35 से ज्यादा किसान इस आंदोलन के दौरान शहीद हो चुके हैं लेकिन सरकार अपनी हठधर्मिता व हिटलरशाही दिखा रही है। वो इन कानूनों को वापस नहीं ले रही है। वो इसे किसानों का आंदोलन तक मानने को तैयार नहीं है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है कि जब देश का अन्नदाता सड़कों पर है और सरकार उसकी सुनवाई तक करने को तैयार नहीं है।
एक तरफ चर्चा की बात की जा रही है, वही दूसरी तरफ किसानों का दमन किया जा रहा है, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, उन्हें कोसा जा रहा है, उन्हें धमकाया जा रहा है। इन कानूनों का हश्र भी नोटबंदी व गलत तरीके से थोपी गयी जीएसटी की तरह ही होगा, जिसको लेकर भी कालेधन से लेकर, आतंकवाद खत्म व क्या-क्या झूठे सपने दिखाये गये थे।
पहला कानून:-
1. कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 –
इस काले कानून से न्यूनतम मूल्य समर्थन (एमएसपी) प्रणाली समाप्त हो जाएगी। किसान यदि मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य ना देना पड़े, न्यूनतम समर्थन मूल्य से अपना पीछा छुड़ाने के लिए सरकार यह कानून लाई है। कांग्रेस के प्रयासों की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य की जो सुरक्षा किसान को मिलती थी, अब वह सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी एवं प्राइवेट उद्योगपति मनमाने या कह लें कि कौड़ियों के दाम पर फसल खरीदेंगे।
दूसरा कानून:-
2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
इस कानून से कान्ट्रेक्ट करने में किसानों का पक्ष कमजोर होगा, वे कीमत निर्धारित नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान कैसे कांट्रेक्ट फार्मिंग करेंगे? विवाद की स्थिति में किसान कोर्ट नहीं जा सकेंगे। यह सीधा संवैधानिक अधिकारों पर आघात है। वह व्यवस्था जिसके तहत हर पीड़ित न्यायालय जा सकता है, वह व्यवस्था किसानों के लिए खत्म की जा रही है। यदि कांट्रैक्ट करने के बाद कोई उद्योगपति अपने वादे से मुकर जाता है या किसान की जमीन हड़प लेता है तो किसान कोर्ट नहीं जा सकता है।
तीसरा कानून:-
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020
इस कानून से बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेगी। उनकी मनमर्जी चलेगी। इससे कालाबाजारी, जमाखोरी बढ़ेगी और मनमाने दाम पर आवश्यक वस्तुओं को बेचा जा सकेगा। जिस तरीके से स्टाकिंग की वजह से प्याज 80 और दाल के दाम 200 रूपये तक पहुंच जाते हैं, उसी तरीके से आटे की कीमत, गेहूं की कीमत भी सैकड़ों रुपए प्रति किलो में पहुंचा कर ही यह सरकार दम लेगी और उस मूल्यवृद्धि का फायदा किसान को नहीं बल्कि उद्योगपतियों को मिलेगा।
– किसानों पर अत्याचार करने का यह पहला प्रयास ही मोदी सरकार का नहीं है। आपको याद होगा कि इससे पहले भी 12 जून 2014 को मोदी सरकार ने सारे राज्यों को पत्र लिखकर कहा कि अगर किसानों को फसल पर बोनस दिया गया तो एफसीआई उन राज्यों से फसल की खरीदी नहीं करेगा।
– उसके बाद दिसंबर 2014 में यह सरकार किसानों की भूमि अधिग्रहण कर उचित मुआवजा देने के कानून को खत्म करने के लिए अध्यादेश लायी, ताकि किसानों की अमूल्य जमीन ओने पौने दामों पर लेकर अपने उद्योगपति मित्रों को दे सके।
– 2015 में इसी मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि किसानों को 50 प्रतिशत मुनाफा कभी नहीं दिया जा सकता, जबकि 2014 में यह इनका चुनावी वादा था।
– 2016 में लायी गयी फसल बीमा योजना की सच्चाई हम सब ने देखी है, जहां किसानों को दो-दो, तीन-तीन रुपए के चेक मिले हैं एवं उनका उपहास उड़ाया गया है।
– जहां यूपीए सरकार ने 72000 करोड़ का किसानों का कर्जा माफ किया, वही मध्य प्रदेश की कमलनाथ जी की सरकार ने भी 27 लाख किसानों का कर्जा माफ किया। जिसकी सच्चाई खुद शिवराज सरकार ने विधानसभा में स्वीकारी है। वहीं केंद्र सरकार ने कर्ज माफी की कोई योजना नहीं बनाई तथा मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के कृषि मंत्री द्वारा कर्ज माफी को पाप बताया गया है।
– मध्य प्रदेश में उपचुनाव के पहले किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि कि राशि बांटी गयी, अब चुनावों के बाद उन्हीं किसानों को धोखेबाज बता करके उन्हें नोटिस देकर उनसे ब्याज समेत राशि वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
– एक तरफ संविधान दिवस मनाया गया, दूसरी तरफ किसानों के कोर्ट जाने के संविधानिक अधिकार को खत्म किया जा रहा है, आज किसानों को 100 रुपये में बिकने वाला, देशद्रोही, आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तान चीन समर्थक, नक्सलवादी, टुकड़े गैंग का सदस्य, साँप, बिच्छू, कुकुरमुत्ता बताया जा रहा है। लोकतंत्र में आंदोलन करना हर व्यक्ति का प्रजातांत्रिक अधिकार है, आंदोलन को कुचलने के लिये उन पर कड़कती ठंड में ठंडे पानी की बौछार की गई, सड़कों को खोद दिया गया, लाठियों से पीटा गया, उन पर झूठे मुकदमे लादे गए और आंसू गैस के गोले तक फेंके गए।
– प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म पुरस्कार लौटाया। ओलंपिक मेडलिस्ट विजेंद्र सिंह ने अपना खेल रत्न पुरस्कार वापस करने की घोषणा की, संत बाबा राम सिंह जी ने किसानो का दुःख देखकर खुदकुशी कर ली। कई लोगों ने अपने अवार्ड तक लौटा दिये, एनडीए से अकाली दल अलग हो गया लेकिन केन्द्र सरकार इसे कांग्रेस का आंदोलन बता रही है?
अब किसान इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे और मध्य प्रदेश कांग्रेस अपने स्थापना दिवस पर कमलनाथ जी के नेतृत्व में पुरजोर तरीके से इन काले कानूनों का विरोध करेगी एवं इस किसान विरोधी तानाशाह सरकार को किसानों के समर्थन में आवाज उठाते हुए मजबूर करेगी कि वह इन तीनों कृषि कानूनों को तत्काल वापस ले एवं किसानों पर अत्याचार करना बंद करें।
इसके पूर्व भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जी के निर्देश पर किसान आंदोलन के समर्थन में, इन तीन काले कानूनों के विरोध में प्रदेश भर में 19 दिसंबर को विरोध दिवस मनाया गया, उपवास किए गए, गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना प्रदर्शन आयोजित किये गये।
आंदोलन के अगले चरण में 28 दिसंबर, सोमवार को विधानसभा सत्र के पहले दिन कांग्रेस के सभी विधायक किसान आंदोलन के समर्थन में ट्रेक्टर-ट्रालियों से विधानसभा की ओर कूच करेंगे।
इस आंदोलन का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ जी करेंगे
बड़ी शर्म की बात है कि जो शिवराज सिंह जी खुद को किसान पुत्र बताते हैं, सच्चा किसान हितैषी बताते हैं, वह इन कानूनों का विरोध करने की बजाय, इसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं। प्रदेश में झूठे-सरकारी-प्रायोजित किसान सम्मेलन कर रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं को किसान बनाकर इन सम्मेलनो में बैठाया जा रहा है। यह झूठा प्रचार किया जा रहा है कि मध्य प्रदेश का किसान इन किसान विरोधी काले कानूनों के समर्थन में है।
सच्चाई सभी जानते हैं कि देश भर का किसान इन काले कानूनों को पूरी तरह नकार चुका है, वह कभी भी इन किसान विरोधी कानूनों का समर्थन नहीं कर सकता है। मध्य देश का किसान भी खुलकर इन काले कानूनों का विरोध कर रहा है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार तानाशाही रवैया अपनाते हुए किसान संगठनों को इन काले कानूनों के विरोध में आंदोलन करने की इजाजत नहीं दे रही है, किसान नेताओं का दमन किया जा रहा है, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, उनके परिवार पर जुल्म ढहाये जा रहे हैं, यह शिवराज सरकार का काला घिनौना चेहरा प्रदेश के किसान खुली आंखों से देख रहे हैं।
अच्छा होता अकाली दल की तरह शिवराज सिंह जी भी अपनी केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर किसानों के समर्थन में आवाज उठाते और अपनी केन्द्र सरकार को मजबूर करते कि तत्काल इन किसान विरोधी काले कानूनों को वापस लिया जाए और घोषणा करते कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार इन काले कानूनों के साथ नहीं है, वह तो किसानो के साथ है लेकिन शिवराज सरकार ने इन काले कानूनों का समर्थन कर बता दिया है कि वह सिर्फ दिखावे के लिए किसान हितैषी सरकार है, उसे किसानों के हित से कोई लेना-देना नहीं है, उसका रवैया भी मोदी सरकार की तरह ही किसान विरोधी है।
यह वही सरकार है, जिसने अपना हक माँग रहे किसानों के सीने पर गोलियां दागी थी, किसानों को नंगे बदन जैल में ठूँसा था, यूरिया मांग रहे किसानों पर लाठी चार्ज किया था, जिनकी सरकार में देश में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या प्रदेश में करते हैं। जिनके कृषि मंत्री किसानों को सांप, बिच्छू, नेवला, दलाल, देशद्रोही, कुकुरमुत्ता बताते है और कमलनाथ सरकार की किसान कर्ज माफी को पाप बताते हैं।