इंदौर : पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने प्रदेश के कृषि क्षेत्र की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कृषि महाविद्यालय इन्दौर की भूमि पर प्रस्तावित सिटी फाॅरेस्ट और आक्सीजन झोन के प्रस्ताव को निरस्त करते हुए महाविद्यालय को यथावत रखे जाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी को लिखा पत्र। राष्ट्रीय किसान नेता योगेन्द्र यादव एवं स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से मुझे ज्ञात हुआ है कि तीसरी बार मध्यप्रदेश शासन एवं जिला प्रशासन इन्दौर द्वारा पिछले 100 वर्षो से स्थापित कृषि महाविद्यालय इन्दौर के अनुसंधान केन्द्र की भूमि को हड़पने की योजना बनाई जा रही है।
प्रदेश के किसान नेता केदार सिरोही ने बताया कि जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों ने नेताओं और बिल्डरों से मिलकर वर्षो से आॅक्सीजन झोन का काम कर रहे रेसीडेंसी एरिया के स्थान पर कृषि महाविद्यालय परिसर की जमीन पर आॅक्सीजन झोन और सिटी फारेस्ट बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि विगत दो सौ सालों से भी अधिक समय से शहर के बीचों बीच स्थित रेसीडेंसी एरिया में लगे हजारों-हजार हरे भरे वृक्ष इन्दौर को शुद्ध हवा देने का काम कर रहे है। इन्दौर के भूमाफियाओं की इस बेशकीमती जमीन पर नजर है।
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वे तिकड़मबाजी कर रेसीडेंसी एरिया को व्यवसाय और वाणिज्य क्षेत्र में बदलवाने की कुचेष्टा कर रहे है। कुछ शीर्ष स्तर के अधिकारी भी इन्दौर के पर्यावरण से खिलवाड़ करने का कुत्सित प्रयास कर रहे है। जिस तरह रेसिडेंसी एरिया की हरियाली इंदौर की पहचान है उसी तरह ब्रिटिश टाईम से बना कृषि महाविद्यालय भी उन्नत कृषि की आधारशिला रख रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इंदौर भ्रमण के समय इस केन्द्र के कार्यो की सराहना की थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि मालवा की खेती पूरी दुनिया में सराही जाती है।
यहां के किसानों ने सभी प्रकार की फसलों की पैदावार में मालवा का नाम रोशन किया है। इन्दौर का कृषि महाविद्यालय किसानों की आशाओं का केन्द्र बिन्दु है। हर साल सैकड़ों छात्र यहां से पास होकर मालवा की मिट्टी का कर्ज उतार रहे है। सिरोही ने बताया है कि कृषि महाविद्यालय के अनुसंधान केन्द्र की भूमि पर जैविक खेती का कार्य सन 1905 से प्रारंभ होकर विश्व प्रसिद्ध काम्पोस्ट विधि द्वारा जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है।
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अनुसंधान परिसर वर्ष 1924 से आय.पी.आय. संस्थान, कृषि अनुसंधान एवं प्रसार के अतिरिक्त कृषि शिक्षण में भी योगदान देता आ रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी द्वारा 23 अप्रैल 1935 को केन्द्र में भ्रमण के दौरान कम्पोस्ट विधि से उत्पादित खाद के महत्व को बताते हुए कृषकों व वैज्ञानिकों को यह परामर्श दिया था कि यदि हम रासायनिक खाद का उपयोग अपने खेतों में करेंगे तो आने वाले 60-70 वर्षो पश्चात 80 प्रतिशत जनता जहरीला खाद्यांन ग्रहण करेगी।
किसान नेताओं का कहना है कि कृषि महाविद्यालय इन्दौर का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महाविद्यालय की भूमि पर सिटी फारेस्ट या आक्सीजन झोन बनाने के इस प्रस्ताव से कृषि अनुसंधान, बीज उत्पादन, कृषि शिक्षा आदि प्रभावित होगें। इससे कृषि एवं किसानों की उन्नति में गतिरोध उत्पन्न होगा।
किसान नेता योगेन्द्र यादव ने कृषि महाविद्यालय इन्दौर की भूमि पर प्रस्तावित कार्यो को निरस्त कर भूमि को यथावत रखे जाने का निवेदन किया है। मेरा आपसे अनुरोध है कि प्रदेश के कृषि क्षेत्र की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कृषि महाविद्यालय इन्दौर की भूमि पर प्रस्तावित सिटी फाॅरेस्ट और आक्सीजन झोन के प्रस्ताव को निरस्त करते हुए महाविद्यालय को यथावत रखे जाने के निर्देश प्रदान करने का कष्ट करें। सहयोग के लिए मैं आपका आभारी रहूँगा।
Source : PR