वर्ष 1880 में आज ही के दिन यानी 31 जुलाई को वाराणसी (Varanasi) के लमही गांव में डाक विभाग के मुंशी अजायब राय के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम धनपत राय रखा गया। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था जोकि एक गृहणी थीं। आगे चलकर यही बालक मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) के नाम से मशहूर हुआ, जिन्हें भारतीय साहित्य परम्परा का युगपुरुष कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्हें भारत के महानतम लेखक, कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में विश्व भर में जाना जाता है। मुंशी प्रेमचंद ने मेट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया था, जिनसे उनके तीन बच्चे हुए जिनके नाम अमृत राय, कमला देवी, श्रीपत राय रखे गए ।
लिखी 300 से अधिक कहानियां और 18 उपन्यास
मुंशी प्रेमचंद ने अपने पुरे साहित्यिक जीवन में 300 से अधिक कहानियों और 18 उपन्यास की रचना की। उनकी सभी रचनाएं मानवीय संवेदना से ओतपोत होकर सीधे ह्रदय के पृष्ठ पर अंकित हो जाती है। गोदान ,ग़बन, कर्मभूमि, रंगभूमि कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, अलंकार आदि उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इसके साथ ही उनके द्वारा लिखी गई कहानियों में ईदगाह, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े भाई साहब, ठाकुर का कुआँ, मुक्तिधन, गुप्त दान, दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी आदि प्रमुख हैं। हालाकिं उनकी प्रत्येक रचना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ और मर्मस्पर्शी हैं जोकि आँखों के रास्ते सीधे हृदय में अपना स्थान बनाती है।
वर्ष 1936 में ली भारतीय साहित्य के दैदिप्तमान सूर्य ने आखरी सांसे
वर्ष 1935 आते-आते मुंशी प्रेमचंद बीमार रहने लगे। उनकी शारीरिक स्थिति बहुत ही ज्यादा कमजोर रहने लगी। वर्ष 1936 में लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष के रूप में मुंशी प्रेमचंद चुने गए थे, परन्तु इस दौरान ही मुंशी जी की हालत लगातार बिगड़ने लगी और सतत शारीरिक संधर्ष करते हुए 8 अक्टूबर 1936 को भारतीय साहित्य का यह महामानव सदा के लिए शांत हो गया, परन्तु उनकी रचनाएं आज भी अनगिनत पाठकों से निरंतर संवाद कर रहीं हैं और करती रहेंगी।