दिनेश निगम ‘त्यागी’
इसमें कोई संदेह नहीं कि बसपा ने जहां-जहां अपनी जमीन मजबूत की, वहां-वहां कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भी ऐसा हुआ। हालांकि यदि कांग्रेस का बसपा के साथ समझौता भी हो जाता तब भी कांग्रेस की दाल नहीं गलती , वह सिर्फ 14 सीटें ही जीत पाती। अर्थात अभी जीती 9 से पांच ज्यादा। इससे कांग्रेस का काम चलने वाला नहीं था। तब भी कांग्रेस की सत्ता में वापसी असंभव थी। यदि कांग्रेस 14 सीटें जीतती तो भाजपा को भी इतनी ही सीटें मिलतीं। इस स्थिति में भी भाजपा की सत्ता बरकरार रहती, क्योंकि उसे बहुमत के लिए सिर्फ 8 सीटों की जरूरत थी।
बसपा से दूरी के लिए कमलनाथ जवाबदार
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों सहित पार्टी छोड़ने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की जवाबदारी थी कि वे बाहर से समर्थन दे रहे अपने दूसरे सहयोगियों को साध कर रखते। पर इसमें वे असफल रहे। निर्दलीयों, सपा की तरह बसपा के साथ उनकी दूरी बढ़ती गई। नतीजा यह हुआ कि जो बसपा कभी उप चुनाव नहीं लड़ती, उसने पहली बार सभी 28 सीटों में उप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। हालात यह है कि कांग्रेस को समर्थन देने वाले सभी अन्य विधायक अब भाजपा के साथ हैं। हालांकि अब भाजपा को किसी के समर्थन की जरूरत नहीं है।
कांग्रेस से सिर्फ दो फीसदी वोटों से पीछे थी बसपा
कांग्रेस विधायक के निधन से रिक्त हुई जौरा सीट के उप चुनाव नतीजे पर नजर डालने से पता चलता है कि यदि बसपा और कांग्रेस को मिले वोट मिला दिए जाएं तो भाजपा से 20 फीसदी ज्यादा हो जाते हैं। लेकिन बसपा और कांग्रेस अलग-अलग लड़े तो फायदा भाजपा को मिला और उसने आसानी से सीट जीत ली। यहां कांग्रेस के पंकज उपाध्याय को 31.2 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि विजेता उम्मीदवार भाजपा के सूबेदार सिंह को 39 फीसदी। इनके बीच बसपा के सोनेराम कुशवाह 28 फीसदी वोट ले गए। उनके वोट कांग्रेस से दो प्रतिशत ही कम है। पंकज और सोनेराम के वोट मिला दें, तो वह 59 फीसदी होते हैं, भाजपा से 20 फीसदी ज्यादा।
भांडेर में बौद्ध ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
कांग्रेस की दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे महेंद्र बौद्ध टिकट न मिलने से इतने नाराज हुए कि पार्टी छोड़कर बसपा के टिकट पर भांडेर से चुनाव लड़ गए। हालांकि उनकी गलतफहमी दूर हो गई, क्योंकि उन्हें सिर्फ साढ़े सात हजार वोट मिले। पर कांग्रेस को हराने में वे कामयाब रहे। भांडेर में कांग्रेस के फूलसिंह बरैया और भाजपा की रक्षा सिरोनिया के बीच रोचक मुकाबला हुआ। शुरूआत में बरैया बढ़त में थे और मजबूत भी लगे, लेकिन बाद में पांसा पलट गया। बरैया को 45.1 फीसदी वोट मिले जबकि रक्षा को 45.3, बौद्ध 5.6 फीसदी वोट ले गए। यदि कांग्रेस और बसपा के वोट जोड़ दें, तो वह भाजपा से 5.4 फीसदी ज्यादा होता है।
मलेहरा में अखंड ने बिगाड़ा साध्वी का गणित
छतरपुर जिले की मलेहरा विधानसभा सीट में भाजपा के प्रद्युम्न लोधी की जीत के सबसे बड़े किरदार बसपा से चुनाव लड़े अखंड प्रताप सिंह रहे। वे यहां 20 हजार 502 यानी 13.7 फीसदी वोट ले गए। कांग्रेस को 33.4 फीसदी वोट ही मिले। यदि कांग्रेस की साध्वी रामसिया भारती और अखंड के वोट जोड़ दें तो 47.1 फीसदी होते हैं। यह भाजपा के उम्मीदवार प्रद्युम्न से दो फीसदी ज्यादा हैं। विजेता प्रद्युम्न लोधी को 45.1 फीसदी वोट मिले।
मेहगांव में कटारे के वोट काट गए योगेश
मेहगांव में सरकार के मंत्री ओपीएस भदौरिया चुनाव तो जीत गए, लेकिन बड़ी मुश्किल से। उन्हें 45.1 फीसदी वोट मिले हैं। कांग्रेस के हेमंत कटारे को 37.7 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस के वोट काटते गए बसपा के योगेश नरवरिया। उन्हें 22 हजार 305 वोट मिले, जो कुल वोट का 13.7 फीसदी है। यदि बसपा और कांग्रेस के वोट जोड़ें तो मंत्री भदौरिया के वोट शेयर से 6.3 फीसदी ज्यादा हाते हैं। साफ है योगेश ने वोट काटकर कटारे को पराजय तक पहुंचाया।
बसपा के कारण तीसरे नंबर पर पहुंची कांग्रेस
पोहरी से कांग्रेस के दिग्गज नेता हरिवल्लभ शुक्ला मैदान में थे लेकिन बसपा ने उन्हें तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया। कांग्रेस के हरिवल्लभ की हार का सबसे बड़े कारण बसपा के कैलाश कुशवाह रहे और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया। यहां बसपा का वोट शेयर 26 फीसदी रहा जबकि कांग्रेस को 25.2 फीसदी वोटों पर संतोष करना पड़ा। भाजपा के विजेता उम्मीदवार मंत्री सुरेश धाकड़ ने 39.2 फीसदी वोट पाए। यदि बसपा-कांग्रेस को साथ देखें तो यह भाजपा से 12 फीसदी ज्यादा है। यह भी कह सकते हैं कि पोहरी में कांग्रेस न होती तो सीट बसपा के खाते में चली जाती।