दृश्य एक – शुक्रवार, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का उनके घर पर शूट किया गया वीडियो जिसमें कमलनाथ कहते हैं कि जनता ने उपचुनावों मंे सच्चाई का साथ दिया है और इसी से घबडाकर बीजेपी और उसके नेता अब सौदेबाजी पर उतर आये हैं। कमलनाथ आरोप लगाते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ओर उनकी पार्टी के नेता हमारी पार्टी के विधायकों और स्वतंत्र विधायकों से जोड तोड में लग गये हैं प्रदेश की जनता इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी।
दृश्य दो – शनिवार, भोपाल में बीजेपी का दफतर जहां के मीडिया मंच पर खडे होकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि बीजेपी उपचुनावों में शानदार सफलता प्राप्त कर रही है और उसी के पूर्वाभास के कारण कांग्रेस और कमलनाथ जी बौखला रहे हैं। सौदेबाजी का आरोप लगा रहे है मेरा आरोप है कि कमलनाथ आज भी बीजेपी के विधायकों को फोन कर रहे हैं। उनको लुभा रहे हैं। मगर बीजेपी का एक भी विधायक पार्टी छोडकर नहीं जायेगा। अगर जोडतोड की रजानीति किसी ने की है तो कमलनाथ ने की है वो करे तो मैनेजमंेट और हमारेे पास कोई मन से आ जाये तो गददारी। ये दोहरा मानदंड नहीं चलेगा।
मध्यप्रदेश की दो प्रमुख पार्टियों के प्रमुख नेताओं के बयानों से ये तो समझ आ गया है कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही दोनों पार्टियों में पर्दे के पीछे चल क्या रहा है। कुछ ना कुछ पक तो रहा है। जो दोनों पार्टियों के नेताओं को परेशान कर रहा है। भोपाल में शुक्रवार को वरिप्ठ मंत्री भूपेंद्र सिंह के बंगले पर बीएसपी विधायक संजू कुशवाहा, निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा और प्रदेश की तकरीबन सभी पार्टियों से विधायक रह चुके नारायण त्रिपाठी की मेल मुलाकात के बाद ये खबर गर्म हुयी कि बीजेपी का प्लान बी यानिकी चुनाव परिणाम आने के बाद की योजना तैयार हो रही है। ऐसा नहीं है कि प्लान बी बीजेपी ही बना रही है कांग्रेस भी पूरी मजबूती से चुनाव लडने के बाद अब फिर से सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं छोड रही है। कांग्रेस के आफिसियल टिविटर हैंडल ओर वाटस अप ग्रुपों पर तो कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री नहीं बल्कि भावी मुख्यमंत्री लिखा जाने लगा है। इससे ही कंाग्रेस के रंग ढंग और तैयारी समझ आ रही है।
वैसे बीजेपी की सरकार को अपने दम पर पूर्ण बहुमत का आंकडा पाने के लिये अटठाइस में से बहुत ज्यादा नहीं सिर्फ आठ विधायक ही चाहिये। कांग्रेस के एक और विधायक के पाला बदलने से मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायकों का सदन अब 229 का हो गया है और बहुमत का आंकडा जो 230 सदस्यों में 116 था वो घटकर 115 हो गया है। बीजेपी के पास 107 विधायक पहले से ही हैं ऐसे में उसे आठ विधायक ही चाहिये होंगे। उधर लगातार विधायक खो रही कांग्रेस के खेमे में अब 87 विधायक बाकी हैं और उसे 115 के जादुई आंकडे तक आने के लिये या कहें कि अपनी सरकार फिर से बनाने के लिये पूरी 28 सीटें ही जीतनी होंगी। यानिकी तकरीबन पूरी।
जो बेहद कठिन काम दिख रहा है। मगर जैसा कि हम सब जानते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। लोकतंत्र में संख्या या सिर ही महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में परिणामों की उंच नीच में संख्या इकटठी करने के लिये चार निर्दलीय और दो बसपा और एक सपा का विधायक तो है ही। और ये विधायक भी ऐसी परिस्थिति में चुनकर आये हैं कि उनकी किस्मत से पहले बीजेपी और अब कांग्रेस के विधायक मंत्री तक ईर्प्या करते हैं आह क्या किस्मत पायी है। कांग्रेस की सरकार थी तो कमलनाथ के साथ और बीजेपी की सरकार है तो शिवराज के साथ घूम रहे हैं।
मजे की बात ये स्वतंत्र या छोटी पार्टी के विधायक अपने क्षेत्र का विकास और अपनी विधानसभा की जनता की आवाज पर कहीं भी जाने और जुडने को तैयार हैं। हांलाकि जनता भी समझ रही है कि स्वतंत्र विधायक के इधर उधर होने से जनता का तो नहीं मगर विधायक जी का सर्वांगीण विकास तो हो ही रहा है। वैसे भी विकास की ललक अचानक पाला बदल कर ही पूरी हो रही है ये हमने पिछले कुछ दिनों में देखा है जब कांग्रेस के पहली बार के चार विधायक नेपानगर की सुमित्रा कास्डेकर, मंाधाता के नारायण सिंह, बडा मल्हरा के प्रदुम्न सिंह लोधी और दमोह के राहुल लोधी के मन में अचानक क्षेत्र के विकास का सपना जगा और वो पहले विधानसभाध्यक्ष से मिले उनको विधायकी से इस्तीफा दिया फिर किसी बीजेपी के बडे नेता के साथ बीजेपी दफतर आकर बताते हैं कि वो अपने इलाके के विकास की ललक के चलते पार्टी बदल कर अपनी विधायकी कुर्बान कर यहां आ गये हैं क्योंकि उनको लगता है कि इस नयी पार्टी में विकास की गंगा बहती है। मगर विकास बिना विधायक बने होता नहीं है इसलिये फिर नयी पार्टी से विधायक बनने के लिये मैदान में उतरेंगे।
विकास की ललक वाले इन विधायकी छोडने वाले नेताओं के 25 साथी ऐसा कर उनको रास्ता दिखा चुके हैं। और फिर पंद्रह साल लगातार मंत्री रहने वाले गोपाल भार्गव के चिरंजीव अभिपेेक ये तो मंच से बता ही चुके हैं कि मंत्रियों के घर पैसे बरसते हैं, कोई सरपंची नहीं छोडता ये तो विधायकी छोड रहे हैं मंत्री पद छोड रहे हैं इसलिये इनकी कुर्बानी को जनता याद रखे। मध्यप्रदेश की राजनीति में होली के दिन से शुरू हुयी राजनीतिक अस्थिरता दीवाली तक पैर पसार चुकी है। उम्मीद की जानी चाहिये कि उपचुनावों के दस तारीख को आने वाले परिणामों के बाद से ये धुंध छंटेगी। वैसे प्रदेश की जनता के मन में यही सवाल है कि दस तारीख को किस पार्टी के बारह बजेंगे। वैसे बारह किसी के भी बजे पौ बारह तो उन सात विधायकों की होनी तय ही है जो निर्दलीय और सपा बसपा के हैं। कोई शक।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी नेटवर्क,
भोपाल