दिनेश निगम ‘त्यागी’
जनता का मनोरंजन करने वाले नट चौक-चौराहों में जैसा करतब रस्सी में चलकर दिखाते हैं, वैसा कर पाना हर किसी के बूते की बात नहीं। इसी प्रकार जब भी चुनाव होते हैं, तटस्थ विश्लेषक मतदाताओं के रुख और वोटिंग के रुझान को देखकर नतीजे का अनुमान लगा लेते हैं। इस बार हालात अलग हैं। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के मतदान के बाद पहली बार ये गणितज्ञ हैरान हैं। वोटिंग का रुझान तथा मतदाताओं का रुख समझ पाने में ये खुद को ‘रस्सी में चलना जैसा’ कठिन पा रहे हैं।
नतीजा, सभी विश्लेषकों का अलग-अलग नजरिया है। इसकी वजह हर क्षेत्र में मतदान का एक जैसा न होना भी है। मतदाताओं ने कहीं बंपर वोटिंग की है तो कुछ क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत 50 तक भी नहीं पहुंच सका। लिहाजा, एक जैसा निष्कर्ष निकालने में समस्या आ रही है। अलबत्ता, एक मामले में राय एक जैसी उभर रही है कि नेताओं के ‘बिगड़े बोल’ मतदाताओं को ‘मुद्दों’ से नहीं भटका सके। उन्होंने भाजपा-कांग्रेस के एजेंडे को परख, तौल कर ही मतदान किया।
चंबल-ग्वालियर ने किया हैरान….
प्रदेश के चंबल-ग्वालियर अंचल में सर्वाधिक 16 सीटों के लिए मतदान हुआ है। एक हिस्से में अच्छा मतदान हुआ तो दूसरे में बहुत कम। इसलिए निष्कर्ष अलग-अलग निकल रहे हैं। कहा जा रहा है कि चंबल में कांग्रेस को ज्यादा सफलता मिलेगी तो ग्वालियर अंचल में भाजपा को। कुल मिलाकर भाजपा-कांग्रेस के बीच जीत-हार का आंकड़ा बराबरी पर आकर टिक सकता है।
दूसरे अचंलों में भी मतदान में भिन्नता….
मतदान का रुझान मालवा-निमाड़ अंचल में भी एक जैसा नहीं रहा। कुछ क्षेत्रों में अच्छी वोटिंग हुई तो कहीं अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। बुंदेलखंड की दोनों सीटों में भी मतदान का प्रतिशत अलग-अलग रहा। यहां भी विश्लेषक दोनों सीटों में किसी एक दल की जीत का दावा करने की स्थ्तिि में नहीं है। ऐसे में मतदाताओं का रुख भांपना कठिन है। इस तरह मतदान के रुझान एवं मतदाताओं के रुख ने इस बार गणितज्ञों को हैरान कर दिया है।
चौकाने वाले आ सकते हैं नतीजे….
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए 25 बागियों में कितने जीतते हैं और कितने को पराजय का सामना करना पड़ेगा, यह दावा फिलहाल कोई नहीं कर पा रहा। भाजपा – कांग्रेस अपनी – अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। ऐसे में विश्लेषकों में एक बात पर लगभग सहमति है कि एक दर्जन बागियों के भाग्य पर बिजली गिर सकती है। मतदाता इन्हें बगावत का दंड देकर घर बैठा सकते हैं। हालांकि कुछ की राय है कि नतीजे चौकाने वाले आएंगे। यह कांग्रेस पर भारी पड़ सकते हैं और भाजपा पर भी।
बिगड़े बोलों के बीच मुद्दों से नहीं हटा ध्यान….
विधानसभा के ये उप चुनाव कई मायने में याद रखे जाएंगे। इनमें सबसे प्रमुख नेताओं के ‘बिगड़े बोल’ रहे। मर्यादा को तार – तार करने और राजनीतिक शिष्टाचार की सीमा लांघने में सभी एक दूसरे को पछाड़ते नजर आए। नेताओं की बदजुबानी से कई बार लगा कि वास्तविक मुद्दे पर्दे के पीछे जा रहे हैं, लेकिन मतदान के दौरान मतदाताओं के रुख को देखने पर ऐसा नहीं लगता। अधिकांश मतदाताओं ने गद्दार-खुद्दार, टिकाऊ-बिकाऊ तथा कमलनाथ-शिवराज सरकारों के कामों को ध्यान में रखकर ही वोट डाले हैं। उन्होंने किन मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी,, यह मतगणना के दिन 10 नवंबर को नतीजों से पता चलेगा।