करक चतुर्थी यानि कर्वा चौथ
आज कर्वा चतुर्थी है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। इस बार बुधवार का योग भी बन रहा है। उज्जैन क्षेत्र में आज चंद्रोदय रात्रि 8: 20 बजे होगा।
कर्वा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो पति – पत्नी के बीच होता है। इस दिन स्त्रियां चंद्र देव से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं। दिनभर व्रत के बाद वे यह प्रण भी लेती हैं कि वह मन वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी।
इस दिन केवल चंद्र देवता की पूजा के साथ शिव – पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है। शिव – पार्वती की पूजा का विधान इस हेतु किया जाता है कि जिस प्रकार पार्वती जी ने घोर तपस्या कर भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया, वैसा ही उन्हें भी मिले। वैसे भी गौरी पूजन का कुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष माहात्म्य है। इस व्रत को भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्वापर युग में सबसे पहले द्रौपदी ने किया था।
कथा
इन्द्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ था। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार कर्वा चौथ व्रत के समय वीरावती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, किंतु वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख सह न सकी। वह निढाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है। कर्वा चौथ का व्रत चंद्रमा देखकर ही खोलेगी। यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलाई और ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा जैसा दृश्य बना दिया, फिर जाकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है, अर्घ्य दे दो। यह सुनकर वीरावती ने अर्घ्य देकर खाना खा लिया।
नकली चंद्रमा को अर्घ्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक ना हो सका। एक बार इंद्र की पत्नी शची कर्वा चौथ का व्रत करने पृथ्वी पर आईं। इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इन्द्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बताएं। इन्द्र की पत्नी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए कर्वा चौथ व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू कर्वा चौथ का व्रत पूर्ण विधि विधान से बिना खंडित किए करेगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरावती ने कर्वा चौथ का व्रत पूर्ण विधि से सम्पन्न किया। फलस्वरूप उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया। कर्वा चौथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है।
विजय अड़ीचवाल