बात यहां से शुरू करते हैं
इसमें कोई दो मत नहीं की ग्वालियर चंबल संभाग में पार्टी के नेताओं के बीच तालमेल जमाने, असंतुष्ट को साधने और जातिगत आधार पर उठापटक करने में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से ज्यादा माहिर कोई नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद तोमर चुनावी सभाओं के मामले में भले ही बैकफुट पर आ गए हो लेकिन उम्मीदवारों से राजी नाराजगी के चलते जो समीकरण प्रभावित हो रहे हैं उन्हें साधने का काम वे बखूबी पूरा कर रहे हैं यह तय है तोमर की मेहनत का ही नतीजा है कि मुन्नालाल गोयल और प्रद्दुम्न सिंह तोमर जैसे नेता अब खुद को सेफ जोन में महसूस कर रहे हैं।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस में कभी पन्ना प्रभारी जैसी व्यवस्था लागू हो पाएगी और बूथ मैनेजमेंट पर भी जोर दिया जाएगा। लेकिन इस बार ऐसा हो रहा है। इसका कारण है कमलनाथ। 4 महीने पहले विधानसभा प्रभारियों की नियुक्ति करने के बाद कमलनाथ ने बूथ स्तर तक का नेटवर्क जमा कर पन्ना प्रभारी बनाएं और अब इनसे सीधा संवाद कर रहे हैं। चुनावी दौरे पर जाने के पहले और लौटने के बाद वह रोज 100 से ज्यादा सेक्टर, बूथ और पन्ना प्रभारी से खुद बात करते हैं और एक ही बात कहते हैं मेरा चुनाव बड़े नेताओं नहीं आप जैसे मैदानी कार्यकर्ताओं के भरोसे ही है। इसका एक सीधा फायदा तो यह हो रहा है कि मैदानी स्तर पर सक्रियता बढ़ी हुई है।
कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उन्हें मतदान के दिन तक चार्ज रखने का शिवराज सिंह चौहान का अपना एक अंदाज रहता है। अंबाह विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी को यह कहते हुए प्रस्तुत किया कि यहां से भाजपा को जीता ही देना क्योंकि नरेंद्र भैया मोदी जी के बगल वाली कुर्सी पर बैठते हैं। दिमनी में उन्होंने कहा कि यहां से गिरिराज दंडोतिया की जीत इसलिए जरूरी है कि यदि आपने इन्हें नहीं जिताया तो मुझे थैला टांग कर जाना पड़ेगा। वे पार्टी के सत्ता में रहने से मिलने वाले सम्मान को भी बहुत अच्छी तरह से रेखांकित कर एक ही बात कहते हैं लगे रहो भैया।
कांग्रेस ने जीतू पटवारी सांवेर का प्रभारी बनाकर प्रेमचंद गुड्डू को जितवाने की जिम्मेदारी सौंप रखी हो लेकिन मन है कि मानता नही। हाटपिपलिया में खाती समाज निर्णायक के वोट निर्णायक होने के कारण उनकी भूमिका को अनदेगा नहीं किया जा सकता लेकिन जीतू की कोशिश धर्म सभा क्षेत्र के पहुंचकर उपस्थिति दर्ज कराने की है। इधर एक-एक सीट की बहुत बारीक मॉनिटरिंग कर रहे कमलनाथ के चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं प्रदेश का नेता बनने के चक्कर में पटवारी सांवेर में पार्टी का नुकसान न करवा दें।
एस के मिश्रा की अधिकृत तौर पर मुख्यमंत्री सचिवालय में भले ही वापसी नहीं हुए हो लेकिन उनका दबदबा तो अभी भी है। पर्दे के पीछे कई मामलों में मिश्रा अभी भी अहम भूमिका में रहते हैं। देश के बड़े औद्योगिक घराने आज भी नीतिगत मामलों पर अपनी बात बारास्ता एस के मिश्रा ही मुख्यमंत्री तक पहुंचाते हैं। हां प्रशासनिक मामलों से जरूर इससे इतना स्थिति है क्योंकि इसमें तो सिर्फ और सिर्फ मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की ही चलना है। वैसे मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव या ओएसडी रहते हुए वे जिस भूमिका का निर्वहन करते थे उसे नीरज वशिष्ठ बखूबी संभाल चुके हैं।
चुनाव के दौर में मुख्यमंत्री के ओएसडी पद से इस्तीफा देने वाले बीएम यानी ब्रजमोहन शर्मा का ग्वालियर चंबल क्षेत्र से गहरा रिश्ता। राज्य प्रशासनिक सेवा और भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहते हुए वे ग्वालियर में अलग-अलग भूमिकाओं में पदस्थ रहे हैं और यहां की तासीर से भलीभांति परिचित है। कहां कौन मददगार हो सकता है और विरोधी की मदद करने से इसे कैसे रोका जा सकता है, इस मामले में शर्मा बहुत सिद्धहस्त हैं और इसी विशेषज्ञता का फायदा इस दौर में मुख्यमंत्री को मिल रहा है। ठीक इसी तरह सत्येंद्र खरे इस कठिन दौर में सत्येंद्र खरे भी मुख्यमंत्री के लिए बेहद मददगार साबित हो रहे हैं। उन्होंने भी अभी ओएसडी पद छोड़ दिया है।
कभी-कभी अपने पूर्ववर्ती अफसरों के कार्यकाल में मिली उपलब्धि को बरकरार रखना भी नए अफसर के लिए चुनौती बन जाता है। कुछ ऐसा ही इस बार इंदौर की निगम आयुक्त प्रतिभा पाल के साथ है। वे भी चाहेंगी कि मनीष सिंह और आशीष सिंह के निगमायुक्त रहते हुए स्वच्छता के मामले में देश में नंबर 1 का जो तमगा इंदौर को मिला वह हर हालत में बरकरार रहे। इसीलिए कुछ नए कांसेप्ट के साथ इंदौर को स्वच्छता के मामले में लगातार पांचवीं बार देश में नंबर वन बनाने के मामले में उन्होने खुद मैदान संभाल लिया है। । शहर के कालोनियों को तो छोड़े मुख्य मार्गो पर अभी से जिस अंदाज में सफाई शुरू हो गई है उससे स्पष्ट है कि प्रतिभा पाल भी यह नहीं चाहेंगी कि उनके कार्यकाल में इंदौर से यह तमगा छीने।
लीक से हटकर काम करना कुछ लोगों की प्रवृत्ति में होता है। सालों पहले मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश गान की रचना करवाई थी जिससे वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने लिखा था। शास्त्रीय संगीत की ख्यात गायिका शोभा चौधरी पर पिछले दिनों धुन सवार हुई की इस गान का संगीतमय फिल्मांकन होना चाहिए। पंचम निषाद संगीत संस्थान के अपने शिष्यों को साथ लेकर शोभा जी लॉकडाउन के दौर में तैयारी में जुटी और पिछले दिनों अपनी जिद पूरी करके ही मानी। जल्दी ही यह गान सबके सामने होगा।
चलते चलते
खुद टिकट पाने से वंचित रहे मुरैना के कांग्रेस नेता बलवीर दंडोतिया इन दिनों दोहरी भूमिका का निर्वहन करना पड़ रहा है। अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र में दिमनी में उन्होंने रविंद्र तोमर को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है तो भांजे पंकज के मैदान में होने के कारण जौरा में भी उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
ग्वालियर चंबल में जयभानसिंह पवैया ही नहीं, अनुप मिश्रा और रुस्तम सिंह के रुख पर भी सबकी नजर। पहले दौर में उपेक्षित रहे गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा की उपयोगिता भी बाद में समझ आई और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हे साध लिया।
पुछल्ला
दिसंबर की शुरुआत में होने वाले दिल्ली कॉलेज के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चुनाव पर सबकी निगाहें टिक गई है। जिस अंदाज़ मे डा दिव्या गुप्ता और संदीप पारीक में मैदान संभाला है उससे धीरज लूल्ला और देवराज बडगरा की परेशानी बढना ही है।
अब बात मीडिया की
इलेक्ट्रॉनिक वीडियो मे भुवनेश सेंगर का बडा नाम है। आज तक प्रबंधन ने भुवनेश को मध्यप्रदेश में स्पेशल स्टोरीज के लिए नियुक्त किया है। इसकी सूचना सभी स्ट्रिंगर को अधिकृत तौर पर भी दी गई है।
राजनीतिक खबरों के विशेषज्ञ माने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजीव समाचार ए मौजूदगी का असर अखबार में दिखने लगा है।
दैनिक भास्कर और नईदुनिया में सेवाएं दे चुके पत्रकार पंकज भारती अब टीम मृदुभाषी के लिए काम करेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल वावीकर और दीपक कर्दम अब डिजीयाना न्यूज की रिपोर्टिंग टीम का हिस्सा हो गये है।