नरेंद्र भाले
सचिन तेंदुलकर हमेशा मेरे दिल की धड़कन रहे हैं, लेकिन उनके अलावा यदि क्रिकेट में मेरे लिए कुछ है तो वे हैं कृष्णमाचारी श्रीकांत तथा वीरेंद्र सहवाग। इन दोनों की बल्लेबाजी देखकर अक्सर मेरे रौंगटे खड़े हो जाते थे। गेंदबाजों पर शासन करने का क्रिकेट में यदि कोई उत्कृष्ट उदाहरण है तो सचिन के बाद श्रीकांत तथा सहवाग। सचिन और श्रीकांत तो इतिहास बन गए, लेकिन सहवाग.. तौबा-तौबा.. गेंदबाजों के लिए साक्षात यमराज।
गुडलेंथ की गेंद पर धक्का मारने का हूनर श्रीकांत ने दुुनिया को सिखाया और उसे आत्मसात किया सहवागन ने। जिस गेंद पर गेंदबाजों को विकेट मिलते थे, उसी पर इसे आसमान दिखाने में सहवाग उस्ताद थे। शुरूआत में जब सचिन के साथ वीरू ने उद्घाटक बल्लेबाज के रूप में खेलने प्रारंभ किया था तो यकीन माने ऐसा लगता था मानो दोनों छोर से सचिन ही बल्लेबाजी कर रहे हैं। परफेक्ट क्लोन, लेकिन जैसे-जैसे वीरू परिपक्व होते गए समझ में आ गया कि विशेष रूप से यह बल्लेबाज गेंदबाजों का कत्ल करने के लिए ही पैदा हुआ है। क्रिकेट में कई शास्त्रीय बल्लेबाज बिरादरी को दिए लेकिन उनमें ढोलकी बजाने वाले दो ही रहे। श्रीकांत तथा सहवाग।
बाज की नजर वाले इन दोनों ने गेंदबाजों को वह दिया जिसकी कल्पना वे सपने में भी नहीं कर सकते। जहां तक इन दोनों का सवाल है क्रिकेट की कैसी भी विधा हो, इनका स्टाइल एक ही था, ले उल्ले पर और दे टुल्ला। इन्हें फुटवर्क से कोई लेना-देना नहीं था, बस गेंदरेंज में हो तो उसे आसमान दिखाओ। वाकई एक सूत्रीय कार्यक्रम। श्रीकांत को पीछे छोड़ते हुए वीरू ने एक नहीं दो बार टेस्ट में तिहरा शतक बनाने का कारनामा कर दिखाया। विश्व कीर्तिमान के रूप में वह भी कम गेंदों में। वीरू के आगे अक्सर डकैत तेज गेंदबाज भी घुटने टेक देते थे।
सबसे पहले वनडे में दोहरे शतक की उम्मीद वीरू से ही थी,लेकिन बाजी मारी सचिन ने वह भी ग्वालियर में जिसे वीरू ने दोहराया इंदौर में। मजे की बात तो यह है कि दोनों ही विकेट इंदौरी समंदर सिंह चौहान ने बनाए और हमें गर्व है कि पहले दोनों दोहरे शतक भारतीय बल्ले से ही निकले। बाद में रोहित शर्मा ने इन कारनामे को दो बार दोहराया, लेकिन उसमें सचिन-वीरू वाली बात नहीं थी।
वीरू के करियर की बात करें तो पठ्ठे ने टेस्ट तथा वनडे में आठ-आठ हजा के ऊपर रन बनाए। टेस्ट में वे बेस्ट ही रहे, लेकिन वनडे में भी उन्होंने सचिन को पीछे छोड़ दिया। टेस्ट में 23 तथा वनडे में 15 शतक उनकी अकूत प्रतिभा को दर्शाने के लिए पर्याप्त है, साथ ही उन्हें मैन विथ गोल्डन आर्म से नवाजा जाता था। गोल्डन आर्म से नवाजा जाला था। बंदे की ऑफ स्पिन उन्हें एक विशेष श्रेणी में खड़ा कर देती थी तथा वे एक ब्रेक थ्रू गेंदबाज के रूप में जाने जाते थे। मंकी गेटकांड वाले टेस्ट में वीरू की गेंदबाजी आज भी दर्शक भूले नहीं हैं।
ऐसा कहते हैं कि रिफ्लेस्केस वाला बल्लेबाज लंबे समय नहीं चलता, श्रीकांत बाद में ज्यादा नहीं चले,लेकिन वीरू ने उन्हें भी पीछे छोड़कर एक ऐसी छवि बनाई, जिसका खौफ हर गेंदबाज खाता था। अपने जन्मदिवस के दिन ही वीरू के संन्यास की खबरें बेचैन कर रही है, जिसका एक सूत्रीय कार्यक्रम रहा गेंद को फोड़ दो। जब तक यह बंदा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेला अंदाज और तेवर आगाज से भी उम्दा रहे।
अब वे 38वें वसंत में प्रवेश कर रहे हैं। साथ ही उनकी विदाई की कल्पना सहन नहीं हो रही है। सचिन, गांगुली, लक्ष्मण, द्रविड, कपिल, जाहिर सभी चले गए, लेकिन एक जीवंत बल्लेबाज का जाना रोमांचक क्रिकेट की ऐसी क्षति है जिसे भर पाना ताउम्र संभव नहीं है। इस बात का सदैव अफसोस रहेगा कि वीरू एक शानदार विदाई के हकदार थे और हैं बोर्ड के महामंडलेश्वरों ने उनके योगदान की वाकई कदर नहीं थी। उनकी यह खामोश विदाई एक ऐसा शून्य छोड़कर जा रही है, जिसे भर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
इसमें संदेह ही नहीं है जब भी ताबड़तोड़, विस्फोटक, तूफानी बल्लेबाजों का जिक्र होगा बरबस लबों पर पहला नाम नफजगढ़ के सुल्तान वीरेंद्र सहवाग का होगा, जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट ही नहीं बल्कि क्रिकेट की ही परिभाषा बदल दी। वीरू को जन्मदिन की शुभकामनाएं और स्वस्थ, मस्त और प्रसन्न भविष्य की मंगलकामना। वीरू वाकई वीरू रहे तथा वीर कभी भी… जय हो मंगलमय हो।