मुंबई पुलिस ने टीआरपी का जो फर्जीवाड़ा पकड़ा वह सालों से चल रहा है… सुनियोजित तरीके से एक पूरा रैकेट टीआरपी खेल को अंजाम देता है, जिसके बल पर नम्बर वन न्यूज चैनल या सीरियल की रेटिंग तय कर विज्ञापन कबाड़े जाते हैं… टेलीविजन विज्ञापन इंडस्ट्रीज 40 हजार करोड़ तक पहुंच गई है और विज्ञापन की दरें टीआरपी रेट से ही तय होती है… जिस चैनल की टीआरपी ज्यादा उसे अधिक और जिसकी कम उसे नुकसान उठाना पड़ता है… यह भी अपने आप में एक बड़ा घोटाला है कि देश की आबादी 135 करोड़ से ज्यादा है और सिर्फ 30 हजार बैरोमीटर ही देश भर में लगाए गए हैं..और उनमें से 2 करोड़ से अधिक की आबादी वाले मुंबई शहर में 10 हजार बैरोमीटर हैं… टीआरपी को मापने के लिए बार्क नामक संस्था ने अलग-अलग शहरों में ये बैरोमीटर लगाए हैं…वही कुछ जगह पिपल्स मीटर भी लगे हैं, जिसकी स्पेसिफिक फ्रेक्वेंसी के जरिए यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा प्रोग्राम या चैनल कितनी बार देखा गया और इस मीटर के द्वारा एक-एक मिनट की जानकारी इंडियन टेलीविजन ऑडियंस मैनेजमेंट को पहुंचाई जाती है… टीआरपी यानी टारगेट रेटिंग पॉइंट्स या टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स का उपयोग यह जानने के लिए कि कितने दर्शक किसी विशेष टीवी शो को देख रहे हैं ..लिहाज़ा सालों से यह गौरखधंधा चल रहा है, क्योंकि गिनती के घरों में ये बैरोमीटर लगे हैं, जिन्हें मैनेज करना आसान है, मुंबई पुलिस ने जो घोटाला पकड़ा है उस की ईमानदारी से जांच होना चाहिए और फर्जीवाड़े में लिप्त चैनलों और उनके संचालकों को जेल भिजवाया जाना चाहिए… और साथ ही इन चैनलों के खातों की जांच आयकर और ईडी को करना चाहिए कि किस तरह फर्जीवाड़ा कर करोड़ों रुपए कमाए जा रहे हैं… सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर फटकार भी लगाई है, वही इसके साथ न्यूज चैनलों के इस फर्जीवाड़े को रोक सकता है… किसी सरकार में तो हिम्मत नहीं है, क्योंकि सरकार ने तो अधिकांश चैनलों को गोदी में बैठा रखा है…
@ राजेश ज्वेल