विजय अड़ीचवाल
आज शनिवार, फाल्गुन कृष्ण तृतीया तिथि है।
आज उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, “आनन्द” नाम संवत् 2078 है
( उक्त जानकारी उज्जैन के पञ्चाङ्गों के अनुसार है)
-कल चतुर्थी व्रत है।
-इस ब्रह्म सृष्टि के पद्म कल्प के प्रारम्भ में जब ब्रह्मा विष्णु के बीच युद्ध हुआ तो दोनों के मध्य भगवान शंकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को सहसा अनादि अनन्त ज्योतिर्मय स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए।
-ब्रह्मा और विष्णु ने फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि की रात्रि को उस ज्योतिर्मय लिङ्ग (स्तम्भ) की पूजा, अर्चना और अभिषेक किया।
-तभी से आज तक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि की रात्रि को लिङ्ग पूजा निरन्तर चली आ रही है।
-ब्रह्मा जी, विष्णु जी ने शिव जी से कहा कि हम दोनों इस लिङ्ग के आदि – अन्त का पता न लगा सके, तो आगे मानव आपकी पूजा कैसे करेगा? इस पर कृपालु भगवान शिव द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग में विभक्त हो गए।
-महाशिवरात्रि पर्व का यही रहस्य है। (ईशान संहिता)
-महाशिवरात्रि पर्व की रात्रि को चार प्रहर में चार बार विधि – विधान से पूजा, अभिषेक करने का विधान है।
-महाशिवरात्रि पर्व के दिन शिवजी का विवाह नहीं हुआ था। कुछ लोग भ्रम फैलाकर सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं।