आज श्रीजी का श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के अद्भुत शृंगार, ये वस्त्र श्री द्वारिकाधीशजी के यहा से पहनाएं जाते है

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आज अति शोभित है नंदलाल ।
ग्वालपगा शिर ऊपर सोहे ऊर वनमाल ।।१।।
ता ऊपर एक चंद्रिका ज़रकसी धोती ऊपरना लाल ।
आगे गाय ग्वाल सब लेकें मुरली शब्द रसाल ।।२।।

अमरसी (कसुमल) रंग के धोती-उपरना एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के अद्भुत शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को अमरसी (कसुमल)रंग के धोती-उपरना एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग धराये जाते हैं. आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि ये वस्त्र श्रीजी के वस्त्र तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.

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राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

व्रज पर नीकी आज घटा l
नेन्ही नेन्ही बुंद सुहावनी लागत चमकत वीज छटा ll 1 ll
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा l
तैसेई सुर गावत चातक पिक प्रगट्यो है मदन भटा ll 2 ll
सब मिलि भेट देत नंदलालहि बैठे ऊंची अटा l
‘कुंभनदास’ गिरिधरन लाल शिर कसुम्भी पीतपटा ll 3 ll

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साज – श्रीजी में आज श्री महाप्रभुजी, श्री गुसांईजी, अन्य सात बालक एवं हिंडोलने के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. इस पिछवाई में स्वर्ण हिंडोलने का सुन्दर चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्री महाप्रभुजी श्रीजी को हिंडोलना झुला रहें हो ऐसा आभास होता है. श्री गुसाईजी एवं अन्य सात बालक श्रीजी की सेवा में खड़े हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी (कसुमल) रंग की मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर अमरसी (कसुमल) रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल एवं गोटी मीना की आती हैं.