आज रविवार, फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी तिथि (Tithi) है।
आज अश्विनी नक्षत्र, “आनन्द” नाम संवत् 2078 है।
-(उक्त जानकारी उज्जैन के पञ्चाङ्गों के अनुसार है)
-होली पर्व हास्य – परिहास, मौज – मस्ती और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक माना जाता है, परन्तु वास्तव में होली एक वैदिक यज्ञ है।
-होली के वैदिक यज्ञ में सोमयज्ञ सर्वोपरि है।
-वैदिक काल में प्रचुरता से उपलब्ध सोम लता का रस निचोड़ कर उससे जो यज्ञ सम्पन्न किए जाते थे, वे सोमयज्ञ कहलाते थे।
-कालान्तर में यह लता लुप्त हो गई। इसके विकल्प में अर्जुन वृक्ष और महाराष्ट्र में रांशेर नामक वनस्पति का उपयोग किया जाता है।
-सोम लता से बनाया गया सोमरस इतना शक्ति वर्धक और उल्लास कारक होता था कि उसको पीकर वैदिक ऋषियों को अमरता जैसी आनन्दानुभूति होती थी।
-इस वैदिक सोमयज्ञ के तीन स्वरूप थे। इनमें से एक सत्रयाग है, जिसका अनुष्ठान पूरे वर्ष चलता था। इसमें सिर्फ प्रमुख रूप से ऋषिगण ही भाग लेते थे।
-सोमयज्ञ के अन्तिम दिन महाव्रत होता था, जिसमें ऋषिगण मनोविनोद करते थे।
-आमोद – प्रमोद, हास्य-व्यंग्य किए जाते थे।
-इसका प्रयोजन आनन्द और उल्लासमय वातावरण में उत्पन्न करना होता था।
-वर्ष का अन्तिम दिन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा का ही होता था। इसीलिए इस दिन को हास्य – परिहास्य का दिन माना गया।
-यज्ञ वेदी में अग्नि प्रमुख होती है। इसलिए आग प्रज्ज्वलित की जाती है।
-होली पर जानकारी क्रमश.