भोपाल : राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने कहा है कि आयुर्वेद की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और जड़ी-बूटियों के ज्ञान का विशाल भंडार जनजातीय परंपराओं, बोलियों और भाषाओं में छुपा है। इस खजाने से भावी पीढ़ी को परिचित कराने की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं और बोलियों को मजबूती देना हमारी संस्कृति की समन्वयकारिता, एकता में अनेकता की विलक्षणताओं का संरक्षण है।
राज्यपाल श्री पटेल क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान द्वारा “भारतीय भाषाओं में लोक साहित्य आज और कल” विषय पर संगोष्ठी के शुभारंभ कार्यक्रम को राजभवन से वर्चुअली संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी में क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान की स्मारिका का विमोचन और पद्मश्री कपिल तिवारी का शॉल, मान-पत्र भेंट कर सम्मान किया गया।
राज्यपाल श्री पटेल ने कहा है कि भारतीय संस्कृति दुनिया की विशिष्ट संस्कृति है, जो हजारों वर्षों की निरंतरता के साथ बहुरंगी, विविधताओं की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। हमारी लोक संस्कृति की आत्मा, लोक साहित्य और कलाओं में रची बसी है, जिसमें लोकमान्यताओं, जीवन-मूल्यों और दर्शन का विशाल खजाना है। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगता है कि 2011 की जनगणना में भारत में 10 हजार से अधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली 120 से अधिक भाषाएँ मिली है। लोक संस्कृति, कला और साहित्य के मर्म को समझने के लिए समाज की परंपराओं, विविध पक्षों और प्रचलित रीतियों को समझना भी जरूरी है।
राज्यपाल श्री पटेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय सनातन और लोक संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करने का अवसर दिया है। नई शिक्षा नीति के अनुसार मातृभाषा में शिक्षा के लिए पठन-पाठन, शिक्षण सामग्री, शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रभावी व्यवस्थाएँ करना जरूरी है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने आज व्यक्ति परक, क्षेत्र परक शिक्षा के नए अवसरों की असीम संभावनाओं को खोला है। डिजिटल प्लेटफार्म का भारतीय भाषाओं के विस्तार में कैसे उपयोग किया जा सकता है, इस पर भी विद्वतजन चिंतन करें। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान संगोष्ठी के सैद्धांतिक चिंतन को क्रियात्मक स्वरूप में उतारने की पहल करें। लोक मूल्यों और कलात्मक समृद्धता से संस्कारित जन-परंपराओं, प्रकृति, मूल्य दर्शन और मानवीय भावों की सहज अभिव्यक्ति में सक्षम भावी पीढ़ी निर्माण पथ का प्रदर्शन करें। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि संगोष्ठी की चर्चा शिक्षा में लोक दर्शन को जोड़ते हुए परिवर्तन और सृजन की प्रक्रिया में व्यवसाय और सौंदर्य बोध के साथ ही लोक साहित्य को शामिल करने में सहयोगी होगी।
प्राचार्य श्री विनोद कुमार ककड़िया ने स्वागत उद्बोधन में बताया कि संस्थान एनसीईआरटी की अनुषांगिक संस्था है। संस्थान द्वारा विद्यालयीन शिक्षा-शिक्षण की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहयोग किया जा रहा है। प्रो. निधि तिवारी ने संगोष्ठी की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संगोष्ठी के लिए 280 शोध-पत्र प्राप्त हुए हैं। आगामी तीन दिवसों में चयनित शोध-पत्र संगोष्ठी में प्रस्तुत किए जाएंगे। डॉ. सुरेश कुमार मकवाणा ने आभार माना।