jayram shukl
न हो कमीज तो पांवो से पेट ढक लेंगे
× जयराम शुक्ल लोकभाषा के बडे़ कवि कालिका त्रिपाठी ने कभी रिमही में एक लघुकथा सुनाई थी। कथा कुछ ऐसी थी कि..दशहरे के दिन ननद और भौजाई एक खेत में
हकीकत और अफसाने के बीच ‘मेयर की चेयर’
× जयराम शुक्ल राजनीति का मूल चरित्र और आत्मा एक ही होती है, वह राजनीतिक दलों के रूप में सिर्फ चोला ग्रहण करती है। दिलचस्प यह कि इस बार महापौर
क्या पत्रकारिता वाकई ‘पेन प्रस्टीट्यूट’ बन गई
× जयराम शुक्ल भारत में पहले अखबार ‘बंगाल गजट’ का निकलना एक दिलचस्प घटना थी। वह 1780 का साल था ईस्ट इंडिया कंपनी वारेन हेस्टिंग के नेतृत्व में मजबूती के
भारतीय राजनीति के अपराधीकरण से महंतीकरण तक
× जयराम शुक्ल मध्यप्रदेश के दिग्गज राजनेता निवास तिवारी ने एक बार कहा था- चुनावी लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक पहले एक वोटर है, इसके पश्चात ही अपराधी या हरिश्चंद्र का
सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा, कांशीराम जी को याद करते हुए
× जयराम शुक्ल यह सही है कि देश में जाति के आधार पर शोषण और अत्याचार हुए हैं। इस सिलसिले ने ही अँबेडकर साहब (Ambedkar Saheb) की प्राणप्रतिष्ठा की और
चुनावी लोकतंत्र का सफर, इस पतन का मुकाम कहाँ!
× जयराम शुक्ल चुनाव मेरे लिए हमेशा से कौतूहल का विषय रहे हैं। मीडिया में आने के बाद तो समझिए किसी जश्न से कम नहीं। बिना मगजमारी के विषयवस्तु मिल
हम पाखंडी जनम जनम के!
× जयराम शुक्ल “लछमी देवी दर दर भटकें बेबस निर्धन चार टके को दुर्गा पर गुंडे लहटे हैंं निर्बल अबला जान समझ के। सरस्वती को दिया मजूरी डाट दपटकर बेलदार
यूपी चुनाव पर यूक्रेन इफेक्ट
× जयराम शुक्ल रूस-यूक्रेन के युद्ध की सुर्खियों ने उत्तरप्रदेश के चुनाव की चर्चा को चंडूखाने में धकेल दिया। 7×24 मीडिया पर यूक्रेन की तबाही और उसके ऊपर चील्ह की
और अंततः ‘खाकसार’ जिन्दगी का ‘हादसा’ रचकर खाक में जा मिला!
× जयराम शुक्ल कोई चार दिन पहले ही भास्कर में छपने वाले ‘परदे के पीछे में’ अपने स्तंभ को स्थगित करते हुए वादा किया था कि फिलहाल विदा ले रहे
कभी अलविदा न कहना
× जयराम शुक्ल यह मेरे जैसे न जाने कितने प्यासे पाठकों के लिए भावुक क्षण है। जयप्रकाश चौकसे जी का कालम ‘परदे के पीछे’ कल से पढ़ने को नहीं मिलेगा।
संवेदनाओं की मरुभूमि में हमारी पत्रकारिता
× जयराम शुक्ल अतीत की जुगाली अमूमन हताशा की परिचायक होती है लेकिन वर्तमान की नापजोख के लिए उससे प्रामाणिक पैमाना दूसरा नहीं हो सकता। समाज के मूल्य और कीमतों
इस पाखंडी दौर में रैदास और उनके गुरू की बात
× जयराम शुक्ल देश में धर्म और राजनीति दोनों की मिश्रित बयार चल रही है। रैदास-कबीर के प्रदेश में चल रहे चुनावों के समानांतर धर्म और मजहब का बाना लिए
चुनावी लोकतंत्र का पंचायतनामा!
× जनपक्ष/जयराम शुक्ल हमारे इलाके के कद्दावर नेता स्वर्गीय रामानंद सिंह (सांसद व मंत्री रह चुके) अक्सर कहा करते थे- ये जो देश की व्यवस्था है न..बरमबाबा के चौरा की
जब जेपी के आग्रह पर चुनाव लड़ने को तैयार हुए थे नानाजी
× जयराम शुक्ल वैचारिक पृष्ठभूमि अलग-अलग होते हुए भी जेपी और नाना जी के बीच दुर्लभ साम्य है। जेपी विजनरी थे, नानाजी मिशनरी। दोनों ने ही लोकनीति को राजनीति से
MP के नए विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम इसलिए हैं कुछ अलग, कुछ हटकर
× -जयराम शुक्ल गिरीश गौतम चौदहवें विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर शपथ लेंगे। राजनीतिक गुणाभाग के हिसाब से देखा जाए तो यह विंध्य के प्रतिनिधित्व को साधने का उपक्रम है।
मच्छरकांड पर एक पुरानी टीप को पढ़ते हुए!
× जयराम शुक्ल हाल ही घटित गेस्टहाउस मच्छर कांड पर विचार करते हुए अपनी लिखी हुई एक पुरानी टीप याद आ गई। छह सात पहले का वाकया है
राष्ट्र का सांस्कृतिक एकात्म
× जयराम शुक्ल पण्डित दीनदयाल उपाध्याय स्वतंत्र भारत के तेजस्वी, तपस्वी व यशस्वी चिन्तकों में से एक हैं। उनके चिन्तन के मूल में लोकमंगल और राष्ट्र का कल्याण सन्निहित है।
अपने-अपने हिस्से का समाजवाद..!
× विमर्श/जयराम शुक्ल गाँधी और समाजवाद ये दो ऐसे मसले हैं कि हर राजनीतिक दल अपने ब्राँडिंग के रैपर में चिपकाए रखना चाहता है। पर वास्तविकता वैसी ही है जैसे