भगवद् गीता का बारहवां अध्याय भगवद् गीता के महत्वपूर्ण भागों में से एक है, जिसमें भगवान कृष्ण अपने अध्यात्मिक ज्ञान को अर्जुन को बताते हैं। इस अध्याय में विशेष रूप से ‘अद्वैत योग’ का बोध किया जाता है, जिसमें आत्मज्ञान, भक्ति, और भगवान की महत्ता का महत्वपूर्ण संदेश है।
आत्मज्ञान का मार्ग: इस अध्याय में, भगवान कृष्ण आत्मज्ञान के मार्ग का उपदेश देते हैं। वे कहते हैं कि आत्मज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति अपने आत्मा को पहचान सकता है और परमात्मा की ओर प्राप्त हो सकता है।
भगवान की महत्ता: इस अध्याय में भगवान कृष्ण अपनी महत्ता का वर्णन करते हैं और बताते हैं कि वे सम्पूर्ण जगत के आदि और अंत हैं। वे सबकुछ के सम्रट हैं और सबका उपकार करते हैं।
भक्ति का मार्ग: इस अध्याय में भगवान कृष्ण भक्ति का मार्ग बताते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति और प्रेम के माध्यम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है और भगवान की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
आत्मा की निरंतर सुरक्षा: इस अध्याय में यह बताया गया है कि आत्मा का मरना नहीं होता। आत्मा अविनाशी होती है और इसे कोई नहीं मार सकता। इसलिए, मनुष्य को अपनी आत्मा को समझना और साक्षात्कार करना चाहिए।
सर्वोत्तम भक्ति: इस अध्याय में भगवान कृष्ण कहते हैं कि सर्वोत्तम भक्ति वह होती है जिसमें भक्त भगवान के प्रति सम्पूर्ण प्यार और समर्पण रखता है, बिना किसी आकांक्षा के या अपेक्षा के।
ये संदेश भगवद् गीता के बारहवें अध्याय में महत्वपूर्ण हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।