भोपाल : राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने प्रेस वार्ता के दौरान शिवराज सरकार पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मध्यप्रदेश में पिछले लगभग डेढ़ दशक से महिलाओं के प्रति जघन्य अपराधों में साल दर साल बेतहाशा वृद्धि हुई है। दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, दुष्कर्म के बाद हत्या, मारपीट और छेड़छाड़ की घटनाएं आम हो गई हैं और ऐसा लग रहा है कि दुष्कर्मियों और गुंडों ने प्रदेश की धरती को अपना अभयारण्य बना लिया है, जिसके कारण महिलाओं में घोर असुरक्षा की भावना व्याप्त हो गई है। लाचार पुलिस, पंगु प्रशासन और अक्षम सरकार मूकदर्शक बन कर जर्जर होती कानून-व्यवस्था के परखच्चे उड़ते देख रही है।
शोभा ओझा ने माना कि यह बेहद अफसोसजनक है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े लगातार महिला अपराधों, खासकर दुष्कर्म के मामले में मध्यप्रदेश को लगातार नंबर एक पर रखते रहे हैं। प्रथम दृष्ट्या तो यही नज़र आता है कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” और “नारी सुरक्षा” के खोखले नारों की खोल में छिपी सरकार ने कभी महिला सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता माना ही नहीं। यह बात इसलिए भी सही प्रतीत होती है कि केवल वर्ष 2019 में, जब एमपी में कमलनाथ सरकार थी और उस सरकार ने महिला अपराधों के मामले में “जीरो टॉलरेंस” की नीति अपनाई और सख्ती से उसका पालन करवाया, तब महिला अपराधों में उल्लेखनीय कमी आई, वर्ष – 2019 की एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि पिछले 14 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ कि दुष्कर्म के मामलों में 10 फ़ीसदी की कमी के साथ ही, राज्य की छवि बदली। उक्त रिपोर्ट कहती है कि वर्ष – 2018 में हुए दुष्कर्मों की कुल संख्या 6677 की तुलना में, वर्ष – 2019 में कुल दुष्कर्मों की संख्या 5822 थी, जो लगभग 10 प्रतिशत कम थी। निश्चित ही इन आंकड़ों में अभी और कमी लाना बेहद जरूरी है, यह स्थिति किसी भी लिहाज़ से संतोषजनक नहीं मानी जा सकती किंतु इससे एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि जब मुख्यमंत्री और सरकार, महिला अपराधों के मामले में “जीरो टॉलरेंस” की नीति अपना कर, उसका सख्ती से पालन करवाएं और पुलिस को भी संवेदनशील बनाएं, तब दुष्कर्म सहित महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों में भी उल्लेखनीय कमी आएगी। वर्ष – 2019 इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने मीडिया से बात करते हुए आगे कहा कि, एक बार फिर प्रदेश सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति के कारण महिला अपराधों का ग्राफ अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगा है और स्थिति भयावह होती जा रही है। राज्य के रीवा, पिपरिया, खरगोन, सतना, जबलपुर, गाडरवाड़ा और यहां तक कि प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित कई जिलों में हो रही दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की जघन्य वारदातें प्रदेश के जनमानस को झकझोरते हुए, महिलाओं में घोर असुरक्षा की भावना पैदा कर रही हैं। वहीं पुलिस का असंवेदनशील व निष्ठुर व्यवहार राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। अभी हाल ही में नरसिंहपुर जिले के गाडरवाड़ा में पुलिसिया दुर्व्यवहार की एक ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक घटना भी सामने आई, जहां आरोपियों की बजाय पुलिस ने दुष्कर्म पीड़िता के परिवार को ही प्रताड़ित करते हुए, उन्हें लॉक-अप में बंद कर दिया, जिसके फलस्वरूप पीड़िता को ही आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। क्या पुलिस का ऐसा व्यवहार महिलाओं के मन में कभी विश्वास का भाव पैदा कर सकता है?
शोभा ओझा यहीं नहीं रूकी. उन्होंने प्रदेश की भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि, पिछले दिनों भोपाल में मासूम से हुए बलात्कार के बाद, राजधानी के ही भाजपा विधायक और विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर पर बलात्कार के आरोपी को संरक्षण देने की ख़बरों ने भी निश्चित ही हम सब को शर्मिंदा, विचलित और क्रोधित किया है। मुख्यमंत्री को बताना चाहिये कि जब पूरे प्रदेश में बहनों और बेटियों को वहशी दरिन्दे नोंच रहे हैं, तब वे मौन क्यों साधे हुए हैं..? क्या “बेटी बचाओ” का नारा भी, उनके लिये मात्र एक जुमला ही था? राज्य सरकार व प्रदेश पुलिस की संवेदनशीलता का स्तर देख कर और महिला आयोग तक शिकायत लेकर पहुंची महिलाओं से बात कर, यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि एनसीआरबी के आंकड़े भी पूरी हकीकत बयान करने के लिए नाकाफ़ी हैं, जो अपराध पुलिस द्वारा दर्ज ही नहीं किये जाते, यदि उनको भी मिला लिया जाए तो ये आंकड़े और विस्फोटक हो सकते हैं।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ने आगे कहा कि, यह बड़ी अजीब सी स्थिति है कि एक ओर तो राज्य सरकार और प्रदेश पुलिस, महिला सुरक्षा को लेकर बेहद अगंभीर, उदासीन और असंवेदनशील हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार ने राज्य महिला आयोग को भी भंग करने का असंवैधानिक और गलत प्रयास कर, महिलाओं को मिलने वाले न्याय की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने का अनैतिक और अक्षम्य कृत्य कर, महिला सुरक्षा पर दोहरा प्रहार किया है। मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार को इस बात का जवाब देना चाहिये कि थानों में लंबित मामलों के अलावा जब महिला आयोग के पास ही पहले से लगभग 11115 मामले लंबित हैं (यह आंकड़े इस वर्ष अगस्त तक के हैं, इसमें सितंबर के आंकड़े शामिल नहीं हैं), तब ऐसे समय में उन मामलों को तेजी से निपटाने में महिला आयोग की मदद करने की बजाय, न्याय की प्रक्रिया को लंबित करने का निंदनीय प्रयास सरकार की ओर से आखिर क्यों किया गया? अंत में शोभा ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि, अपनी पत्रकार-वार्ता के अंत में ओझा ने कहा कि निष्ठुर राज्य सरकार और उसके असंवेदनशील मुख्यमंत्री को चाहिये कि “नारी सुरक्षा” के खोखले नारों की खोल से बाहर निकल कर, वे कुछ ऐसे ठोस कदम उठाएं, जिससे प्रदेश में महिलाएं भयमुक्त माहौल में जी सकें, प्रदेश की सड़कें, गलियां, खेत और खलिहान दरिंदों के अभयारण्य की बजाय महिलाओं के लिए सुरक्षित पनाहगाह में तब्दील हो सकें।