हिंदू धर्म में पितृपक्ष को पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे शुभ काल माना जाता है। इस पखवाड़े में श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म विशेष महत्व रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार तुलसी का संबंध भगवान विष्णु से है और चूंकि पितरों का परम आश्रय भी विष्णु ही माने जाते हैं, इसलिए तुलसी का प्रयोग करके किए गए उपाय तुरंत फल प्रदान करते हैं।
तुलसी के सामने दीप प्रज्वलन और अर्पण
सुबह स्नान के बाद तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाना शुभ फलदायी माना जाता है। इसके बाद तुलसी पर जल चढ़ाकर उसका अभिषेक करना और पत्तियों का अर्पण करना चाहिए। जब व्यक्ति तुलसी के सामने खड़े होकर अपने पितरों को स्मरण करता है और उनसे आशीर्वाद मांगता है, तो उनकी आत्मा प्रसन्न होती है। विशेष रूप से तुलसी की पत्तियों को दूध या शुद्ध जल में डालकर पितरों को अर्पण करने से घर-परिवार में सुख और समृद्धि आती है।
गंगाजल और तुलसी से तर्पण का महत्व
पितृपक्ष में तुलसी के क्यारे में खड़े होकर गंगाजल से तर्पण करना श्रेष्ठ माना गया है। प्रातः स्नान के बाद गंगाजल में तुलसी की पत्तियां डालकर उस जल से पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करने से उनकी आत्मा तुरंत तृप्त होती है। तुलसी और गंगाजल का यह पवित्र संयोग पितरों को मोक्ष की राह पर अग्रसर करता है और वंशजों पर उनका आशीष बना रहता है।
पितरों की तृप्ति से मिलते हैं दिव्य आशीर्वाद
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि तुलसी और गंगाजल से किए गए तर्पण से पितर संतुष्ट होकर वंशजों को आयु, संतान सुख और धन-धान्य का वरदान देते हैं। पितरों की प्रसन्नता से घर-परिवार में शांति, सकारात्मकता और सौभाग्य का वास होता है। यही कारण है कि पितृपक्ष में तुलसी का विशेष पूजन करने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
इन तुलसी उपायों को करने के लिए किसी बड़े आयोजन या कठिन अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती। श्रद्धा और विश्वास के साथ किए गए ये छोटे-छोटे कर्म पितृदोष को शांत करते हैं और पूर्वज प्रसन्न होकर परिवार को हर संकट से बचाते हैं। यही वजह है कि हर घर में तुलसी की पूजा और उसके माध्यम से तर्पण करने की परंपरा को महत्वपूर्ण माना गया है।
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