इंदौर। डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। इसमें आपके शरीर में इंसुलिन नहीं बनता या फिर इंसुलिन का सही तरीके से उपयोग नहीं होता। डायबिटीज से बचाव और दुनिया भर में इससे सम्बंधित क्या क्या कार्य और शोध हो रहे उसको लेकर इंदौर में 3 दिनी अंतराष्ट्रीय कांफ्रेंस “डायबिटीज इंडिया 2023” का आयोजन किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में मधुमेह रोगियों को उच्च स्तरीय देखभाल उपलब्ध कराने के लिए ज्ञान, शिक्षा और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और प्रसारित करने के लिए आविष्कारशील, व्यवहार्य और कार्यान्वयन योग्य तरीकों का विचार, विश्लेषण को साझा करना है।
“डायबिटीजइंडिया 2023” में आए सभी एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्राचीन काल में रागी, ज्वार, कोदो मोरधान, बाजरा जैसे मोटे अनाज जिन्हें जिसे मिलेट कहा जाता है, ज्यादा खाना चाहिए| मिलेट्स में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है और कार्बोहाइड्रेट अच्छी क्वालिटी का होता है| उन्होंने कहा कि शुगर के मरीजों की डाईट ग्लाईसिमिक इंडेक्स के आधार पर निर्धारित की जाती है| अगर किसी चीज़ का ग्लाईसिमिक इंडेक्स ज्यादा है तो वह तुरंत शुगर लेवल बढ़ा देता है. हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हम उस हाई ग्लाईसिमिक इंडेक्स वाले खाने को लो ग्लाईसिमिक इंडेक्स वाले खाने से बदल दें| इसीलिए हम शुगर के मरीजों को मिलेट्स लेने की सलाह देते है।
कांफ्रेंस के ऑर्गनाईजिंग सेक्रेटरी डॉ भरत साबू ने बताया कि – “डायबिटीजइंडिया 2023” के दूसरे दिन पढ़े गए शोधपत्रों के माध्यम से डायबिटीज पर देश – विदेश के एक्सपर्ट्स ने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि किस तरह इससे बचाव और देखभाल के लिए कितनी नई पद्धतियाँ आ रही हैं, कितनी तरह की दवाइयों का ट्रायल चल रहा है ताकि भविष्य में मोटापे और डायबिटीज से होने वाली बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। डॉ. साबू ने आगे बताया कि इस कांफ्रेंस के माध्यम से जनरल फिजिशियन को भी इस बीमारी की जटिलताओ से केसे निपटा जाए और कैसे प्रोटोकाल का उपयोग किया जाए समझाया गया और उनकी बीमारी से सम्बंधित जिज्ञासाओ को भी शांत किया गया।
कल रविवार को तीसरे और अंतिम दिन इस कांफ्रेंस में और भी वक्ता अपने शोध पत्र पढेंगे। डायबिटीजइंडिया के अंतर्गत डायबिटीज से जुड़े विभिन्न विशेष मुद्दों के लिए बने स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप की भी बैठकें भी होंगी। ऑर्गनाईजिंग कमेटी के साइंटिफिक चेयरमैन डॉ. मनोज चावला ने बताया कि इस बीमारी में प्राइमरी प्रिवेंशन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, इसका मतलब है कि ये समझ रखना चाहिए कि जिस दिन से पता चले कि डायबिटीज है, हमें शरीर का उतना ही ख़याल रखना चाहिए जितना दिल के मरीज रखते हैं आगे आने वाले समय में जटिलताएं बढ़ सकती हैं, चाहे आँख हो, हार्ट हो या किडनी की हों।
डॉ. चावला ने कहा कि पहले हमारी सोच थी कि डायबिटीज में हम शुगर को कण्ट्रोल करे, हमें हमारी यह सोच बदलनी पड़ेगी, हमें पेशेंट के रिस्क फैक्टर को पहले से ही मैनेज करना होगा l हमें रिस्क फैक्टर कम करना चाहिए जैसे वजन कम करें, ब्लड प्रेशर का ध्यान रखें, कोलेस्ट्रोल कम करे. डायबिटीज एक साइलेंट किलर है जिसे हलके में नहीं लेना चाहिए, कभी कभी पेशेंट को सब ठीक लगता है, पर उनको ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें डायबिटीज है।
कोलकाता से आए विशेषज्ञ डॉ. सुप्रतीक भटाचार्य, जिन्होंने इमिग्लिमिन पर अपना शोध प्रस्तुत किया उन्होंने बताया कि भारतीयों में इन्सुलिन रेसिस्टेंस तुलनात्मक रूप से ज्यादा होता है, जिन पर एक विशेष नया मॉलिक्यूल इमिग्लिमिन के उपयोग की सलाह है. यह डायबिटीज के मरीजों के दो पहलू पर काम करता है पहला इन्सुलिन रेसिस्टेंस और दूसरा इन्सुलिन के स्त्राव की कमी पर| अगर डॉक्टर शुरू से ही मरीज को यह दवाई लेने की सलाह देते है तो आगे की जटिलताओं से बचा जा सकता है।
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भारत में भविष्य में भी डायबिटीज और इस से होने वाले नुकसान बहुत ज्यादा होने वाले हैं और आज डायबिटीज के मरीजों की संख्या के मामले में भारत विश्व के शीर्ष 5 देशों में से एक है, यह बात कही अहमदाबाद की डॉ. रुचा मेहता ने| डॉ. मेहता ने कहा कि 2020 तक यह माना जा रहा था की हर 5 में से 1 व्यक्ति का वज़न ज्यादा है और आज हम यह देख रहे हैं कि हर 3 में से 1 व्यक्ति का वज़न ज्यादा है| डायबिटीक मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टरों को ना सिर्फ उनकी शुगर कंट्रोल करनी चाहिए बल्कि ऐसी दवाइयाँ देनी चाहिए जिससे उन्हें आगे जा कर नई जटिलताओं का सामना ना करना पड़े| जिनका वजन ज्यादा होता है उन्हें अगले 5-10 साल में टाइप-2 डायबिटीज होने की संभावना 40% होती है और अगर उनके माता-पिता को डायबिटीज है तो यह सम्भावना 60% हो जाती है।