दिनेश निगम ‘त्यागी’
भाजपा नेतृत्व ने राज्यसभा के लिए उम्मीदवार घोषित कर एक बार फिर सभी को चौंका दिया। इधर प्रदेश के दिग्गज राज्यसभा जाने का मंसूबा पाले बैठे रहे, उधर नेतृत्व ने तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष एवं केंद्रीय राज्य मंत्री डा. अल मुरुगन के नाम का एलान कर दिया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पहले भी यह होता रहा है। पार्टी नेतृत्व बाहरी नेता थोपकर प्रदेश के नेताओं के मंसूबों पर पानी फेरती रही है। मजेदार बात यह है कि प्रदेश भाजपा के नेता दबी जुबान से तो निर्णय का विरोध करते हैं लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, वर्ना भला दक्षिण के नेता का मप्र में क्या काम और क्या उपयोग? उनकी वजह से प्रदेश में पार्टी का वोट बैंक भी नहीं बढ़ना, कुछ नुकसान जरूर हो सकता है। प्रदेश से राज्यसभा जाने की इच्छा रखने वाले दावेदारों में कैलाश विजयवर्गीय, सुहास भगत जैसे दिग्गज तक शामिल थे। चूंकि सीट दलित नेता थावरचंद गहलोत के इस्तीफे से खाली हुई थी, इसलिए भाजपा के लाल सिंह आर्य जैसे दलित नेता भी आस लगाए बैठे थे। नेतृत्व के निर्णय से सभी हाथ मलते रह गए।
पत्नी ने कराई केंद्रीय मंत्री की किरकिरी….
भाजपा द्वारा चलाए जा रहे वृक्षारोपण और सफाई जैसे अभियान के दौरान एक केंद्रीय मंत्री के परिवार ने काफी फजीहत कराई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक अब तक इसके लिए चर्चित रहते थे कि वे महाराज के बीच सड़क में साष्टांग दंडवत करते हैं। यहां मामला अलग है। दमोह के रामजानकी पार्क में वृक्षारोपण का कार्यक्रम था। स्थान जटाशंकर धाम के नाम से भी जाना जाता है। कार्यक्रम में एक केंद्रीय मंत्री हिस्सा लेने पहुंचे। पार्क चूंकि मंत्री जी के बंगले के सामने ही है, लिहाजा उनके साथ उनके परिवार से पत्नी और बेटी भी पहुंच गए। केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में चले कार्यक्रम के दौरान के एक वायरल वीडियो ने जमकर सुर्खियां बटोरीं। इसमें मंत्री जी की पत्नी की चप्पलें मिट्टी से गंदी हो गई थीं। वीडियो में मंत्री के समर्थक और पार्टी के कार्यकर्ता चप्पल धोते दिखाई पड़ रहे हैं। इसे लेकर तरह-तरह की अटकलें चल रही हैं। कहा जा रहा है कि पत्नी अपनी चप्पलें खुद साफ करतीं तो मैसेज अच्छा जाता। कार्यकर्ताओं के चप्पलें धोने से परिवार की तो नहीं लेकिन मंत्री जी की खासी किरकिरी हो रही है।
भाजपा में ‘न कोई निराश, न कोई निश्चिंत’….
नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के चौंकाने वाले निर्णयों के कारण भाजपा के नेता उलझन में हैं। हालात यह है कि बड़ा से बड़ा नेता खुद के भविष्य को लेकर निश्चिंत नहीं है और बिल्कुल नया नेता निराश नहीं। यह स्थिति हाल के कुछ निर्णयों के चलते निर्मित हुई है। ताजा उदाहरण गुजरात का है। यहां पहली बार के विधायक भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया है और पुराने मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। इसकी वजह से पहली बार के विधायकों में उम्मीद जागी है कि वे मुख्यमंत्री सहित किसी भी पद तक पहुंच सकते हैं। दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेता निश्चिंत नहीं हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है। इसका असर मप्र भाजपा के नेताओं पर भी है। यहां भी न कोई नेता निश्चिंत है और न ही कोई निराश। सब जानते हैं कि मोदी-शाह के रहते कुछ भी हो सकता है। राज्यसभा के लिए मप्र से अल मुरुगन का नाम घोषित करने से यह धारणा पुख्ता हुई है। प्रदेश के नए नेताओं एवं विधायकों के अंदर उम्मीद की किरण फूट पड़ी है।
कांग्रेस को बैठे-ठाले मिल गया शाह का मुद्दा….
आदिवासियों को आकर्षित करने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ जैसे दांव-पेच चल रहे हैं। जबलपुर में आदिवासी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने केंद्रीय मंत्री अमित शाह पहुंचे तो कांग्रेस के कार्यक्रम के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया। भाजपा चूंकि सत्ता में है, इसलिए ज्यादा घोषणाएं उसकी तरफ से हुर्इं जबकि कांग्रेस ने अपनी सरकार के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनार्इं। इससे इतर सबसे ज्यादा चर्चा में है प्रदेश सरकार के आदिवासी मंत्री विजय शाह। शाह बलिदान दिवस पर शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह को पुष्पांजलि अर्पित करने गए थे। कार्यक्रम उनकी ही पार्टी का था लेकिन प्रोटोकाल का हवाला देकर उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया। वे विफर गए। उन्होंने कहा कि मुझे अपने ही पूर्वजों को पूजने से रोका जा रहा है। शाह ने व्यंग किया, ऐसी व्यवस्था को दूर से ही प्रणाम और पूर्वजों को भी दूर से प्रणाम। इसके बाद कार में बैठकर वे चले गए। बस क्या था, कांग्रेस को बैठे-ठाले मुद्दा मिल गया। उसने भाजपा को आदिवासी विरोधी ठहरा दिया। हालांकि राजनीति करने वाले दिग्विजय सिंह को बाद में विजय शाह ने करारा जवाब दिया।
सिंधिया का स्वागत होगा, जबरदस्त विरोध भी….
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जबसे कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सरकार बनवाई, तबसे ही वे राजनीति के केंद्र में हैं। भाजपा की प्रदेश सरकार में उनके कुछ मंत्री हैं और वे खुद भी केंद्र में मंत्री बन गए लेकिन उप चुनाव हारे अपने समर्थकों को एडजस्ट कराने में उन्हें पसीना आ रहा है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह सबसे ज्यादा सिंधिया को ही घेर रही है। सिंधिया को ग्वालियर-चंबल अंचल के पिछले दौरे के दौरान काले झंडे दिखाए गए थे। 22 को उनका दौरा फिर होने वाला है। इस बार भाजपा और समर्थकों ने उनके स्वागत की जितनी तैयारी की है, उससे ज्यादा तैयारी कांग्रेस की है। सिंधिया के दौरे के दौरान कांग्रेस उनका जबरदस्त विरोध करेगी। अन्य कार्यक्रमों का आयोजन कर ताकत भी दिखाएगी। कांग्रेस अहसास कराने की कोशिश कर रही है कि सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बावजूद इस अंचल में कांग्रेस खत्म नहीं हुई है। उप चुनाव में इस अंचल की आधा दर्जन सीटें जीतकर इस बात का अहसास करा दिया था कि सिंधिया के न रहने के बाद भी यहां कांग्रेस ताकत बनी हुई है। कमलनाथ ने हाल में पार्टी कोषाध्यक्ष इस अंचल के अशोक सिंह को बनाया है और दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह यहां लगातार दौरा कर कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं।