देश भर जहाँ नवरात्रि के पर्व को बड़े ही धूम धाम से मनाया जा रहा है, हर तरफ मंदिरों में खास तरह की सजावट की गयी है. लेकिन बिहार के नालंदा जिले में एक ऐसा मंदिर है जहाँ देवी माँ के मंदिर में स्त्रीओं का आना पूरी तरह प्रतिबन्ध है. बताया जाता है कि घोसरावां गांव का यह मंदिर 350 साल पुराना है. कहा जाता है कि घोसरावां गांव में मां आशापुरी मंदिर में नवरात्र के दौरान तांत्रिक 9 दिनों तक सिद्धि पूजा करते हैं. इस दौरान मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह रोक रहता है. यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि तकरीबन साढ़े तीन सौ वर्ष पहले यहां पर माता की प्रतिमा अचानक प्रकट हुई थी. जब इस बात की जानकारी यहां के राजा घोष को मिली तो उन्होंने इसी स्थान पर माता का मंदिर का निर्माण कराया. राजा के द्वारा कराया गया मंदिर निर्माण के कारण इसका नाम घोसरावां गांव रख दिया गया. मंदिर के निर्माण के बाद लोगों ने पूजा पाठ करना शुरू कर दिया. राजा घोष तीन भाई थे जिसके नाम पर घोसरावां, दूसरा बड़गांव व तीसरा तेतरावां नाम पड़ा था.
मंदिर के पुजारी का कहना है कि मां आशापुरी के आर्शीवाद से घोसरावां, पावापुरी व आस-पास के सभी गांवों के लोगों के बीच कोई भी संकट आने से पहले ही टल जाता है. माता की महिमा की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. जब भी गांव व आसपास के इलाके में किसी तरह का संकट आता है तो माता के नाम मात्र से ही उसका संकट टल जाता है. नवरात्र के समय घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावा कोलकाता, ओडिशा, मध्यप्रदेश, आसाम, दिल्ली, झारखंड समेत अन्य जगहों से श्रद्धालु पहुंचकर दस दिनों तक पूजा-पाठ करते हैं.