कमलनाथ उपचुनावों को जनता बनाम दलबदलू बना पाएंगे?

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By Ayushi JainPublished On: September 20, 2020
kamalnath

– अरुण पटेल

ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ समझे जाने वाले ग्वालियर-चम्बल अंचल में एक जंगी रोड-शो कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस की ताकत का अहसास कराने में सफलता हासिल कर ली है। खासकर उन परिस्थितियों में जबकि भाजपा का दावा रहा है कि सिंधिया के साथ 76 हजार से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस के इस लगभग 12 किमी से लम्बे जंगी प्रदर्शन के बाद इस सवाल का उत्तर चुनाव नतीजों से ही मिल पायेगा कि क्या कमलनाथ उपचुनावों में चुनावी लड़ाई को जनता बनाम दलबदलू बना पायेंगे या नहीं। कांग्रेस की सफलता इस बात पर निर्भर है कि कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित समूची कांग्रेस दलबदल के मुद्दे को जनता की लड़ाई बना पाती है या नहीं। राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कमलनाथ के इस आग्रह को मंजूर कर लिया है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों वे कांग्रेस का चुनाव प्रचार करेंगे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट की दोस्ती चर्चित रही है, इसलिए देखने वाली बात यही होगी कि वे किस आक्रामक ढंग से प्रचार करते हैं। पायलट का प्रचार ग्वालियर-चंबल संभाग व राजस्थान की सीमा से लगे क्षेत्रों में कांग्रेस के लिए माहौल बनाने में सहायक होगा क्योंकि कई निर्वाचन क्षेत्रों में गुर्जर मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है। पायलट प्रदेश में 2018 के विधानसभा में भी चुनाव प्रचार के लिए आये थे। इस प्रकार उपचुनावों में पायलट की मौजूदगी कमलनाथ इसलिए दर्ज कराना चाहते हैं ताकि गुर्जर मतदाताओं पर इसका अच्छा प्रभाव पड़े। उल्लेखनीय है कि जो कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में गये उनमें भी कुछ गुर्जर विधायक थे और नये कांग्रेस उम्मीदवारों में भी इस समुदाय के नेता चुनाव लड़ेंगे।

अब विधानसभा के 28 उपचुनाव होना हैं क्योंकि इस बीच कांग्रेस के एक विधायक गोवर्धन सिंह दांगी का कोरोना की बीमारी से वेदान्ता अस्पताल में निधन हो गया और विधानसभा ने यह सीट रिक्त घोषित कर दी है। ग्वालियर-चम्बल संभाग में भाजपा-कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने चुनावी जमावट तेज कर दी है। भाजपा और कांग्रेस तो एक प्रकार से चुनावी शंखनॉद भी कर चुके हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने में ग्वालियर-चम्बल इलाके का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों के दलबदल करने से कांग्रेस की सरकार गिर गयी और भाजपा की सरकार बनी रहेगी या फिर से कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे यह बहुत कुछ इन्हीं अंचलों के 16 विधानसभा उपचुनावों के परिणाम से स्पष्ट हो जायेगा।

यहां असली प्रतिष्ठा ज्योतिरादित्य सिंधिया की दांव पर लगी है, क्योंकि यहां जो भी उपचुनाव लड़ रहे हैं वे उनके ही सिपहसालार हैं और उनके कहने पर ही उन्होंने अपनी विधायकी दांव पर लगाई है। अभी तक इलाके में कांग्रेस की सारी चुनावी जमावट पहले माधवराव सिंधिया और बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भरोसे होती थी, इस कारण कांग्रेस की चुनौती इस समय अधिक बढ़ी हुई और वह खुलकर सिंधिया के विरोध में आक्रामक हो गयी है। कमलनाथ ने सीधे-सीधे सिंधिया को ही चुनौती दी है और वहां रोड-शो में जो हुजूम उमड़ा उससे एक बात साफ हो गयी कि केवल सिंधिया ही कांग्रेस के पर्याय नहीं बल्कि जो कांग्रेसी सिंधिया के हस्तक्षेप के कारण कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर पड़े रहे वे अब पूरी ऊर्जा के साथ मैदान में उतर गये हैं। उन्हें अब सम्भावनायें दिखने लगी हैं और वे जोश-खरोश से भिड़ गए हैं। रोड-शो के दौरान कमलनाथ की बॉडी लैंग्वेज भी जोश व आत्मविश्‍वास से भरी हुई नजर आई। कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा का दावा है कि ग्वालियर के इतिहास में अभी तक इतना बड़ा कोई रोड-शो नहीं हुआ, जबकि भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर इस रोड-शो को फ्लाप-शो बता रहे हैं।

एक तरफ कमलनाथ पूरी ताकत से सिंधिया के गढ़ को ढहाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ सिंधिया अपने गढ़ को कितना सुरक्षित रख पाते हैं इस पर ही चुनाव नतीजे निर्भर करेंगे। फिलहाल तो कमलनाथ और सिंधिया के बीच अपना अस्तित्व बचाने और वर्चस्व स्थापित करने का संघर्ष तेज हो गया है जो चुनाव आते-आते अपनी चरम परिणति पर पहुंच जायेगा। ग्वालियर रवाना होने के पहले कमलनाथ ने सिंधिया के खास समर्थक गोविंद सिंह राजपूत की उपचुनाव में तगड़ी घेराबंदी करने के लिए सुरखी की पूर्व भाजपा विधायक पारुल साहू को कांग्रेस में शामिल करा लिया जो कि 2013 के विधानसभा चुनावों में राजपूत को पराजित कर चुकी हैं जबकि राजपूत उन्हें कोई चुनौती नहीं मान रहे। वहीं दूसरी ओर इस अंचल के एक बड़े दलित नेता रहे महेन्द्र बौद्ध ने कांग्रेस के अनुसूचित जाति वर्ग के विभागाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने उपचुनाव के लिए प्रत्याशी चयन में उनके या विभाग के पदाधिकारियों व सदस्यों की राय तक नहीं लिए जाने पर नाराजगी जताई है। हालांकि बौद्ध ने कहा है कि उन्होंने केवल पद से इस्तीफा दिया है लेकिन कांग्रेस में बने रहेंगे। फिलहाल नामांकन की अंतिम तिथि तक दोनों ही दलों में आयाराम-गयाराम का खेल देखने को मिलता रहेगा।

कमलनाथ ने सिंधिया पर साधा निशाना

भाजपा के इस प्रश्‍न का उत्तर देते हुए कि मुख्यमंत्री के रुप में उन्हें ग्वालियर-चम्बल की याद क्यों नहीं आई, कमलनाथ ने कहा कि मैंने इस अंचल की राजनीति नहीं की, लेकिन मैं युवावस्था से ही ग्वालियर आता रहा हूं और ग्वालियर के महत्व को समझता हूं। यहां की राजनीति देखने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया थे और मैंने उसमें हस्तक्षेप नहीं किया। सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनाने का सवाल भाजपा नेता जोरशोर से उठाते रहे हैं, उसका उत्तर देते हुए कमलनाथ ने कहा कि यह सभी जानते हैं कि विधायकों ने अपना नेता किसे चुना और सिंधिया को मात्र 18 वोट मिले, कौन सौदागर है और किसने सौदा किया यह सभी जानते हैं। उनका इशारा इस ओर था कि सिंधिया के साथ जो 22 विधायक गये उनमें से 18 उनके साथी हैं और चार अन्य कारणों से गए।

भाजपा को निशाने पर लेते हुए कमलनाथ ने कहा कि उसने संविधान व प्रजातंत्र को ही दांव पर लगा दिया, मैं जनता से अपील करता हूं कि वे संविधान और अपने भविष्य की रक्षा करें। इस प्रकार उन्होंने दलबदलू का मुद्दा सामने रखते हुए चुनावी लड़ाई को पूरी तरह जनता बनाम दलबदलू बनाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि हमने वोट से सरकार बनाई और भाजपा ने नोट से। बाबा साहब आम्बेडकर ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस प्रकार की राजनीति अपने देश में होगी। सांसद और विधायक के निधन पर उपचुनाव का प्रावधान तो किया गया है लेकिन सौदा हो जाए, बोली लग जाए और उपचुनाव होंगे यह तो भाजपा ही करेगी ? भाजपा ने संविधान और प्रजातंत्र को ही दांव पर लगा दिया है। भाजपा द्वारा 15 माह की सरकार का हिसाब मांगने पर पलटवार करते हुए कमलनाथ ने कहा कि भाजपा में हिम्मत कैसे हुई जो मुझसे 15 माह का हिसाब मांग रही है जबकि वह अपना 15 साल का हिसाब नहीं दे रही, उसे पहले दे।

और यह भी…

एक तरफ ग्वालियर में कमलनाथ का जंगी शक्ति प्रदर्शन हो रहा था वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए उनसे 15 माह का हिसाब मांगते हुए काले झंडे दिखाये। कांग्रेसियों और भाजपाइयों के बीच टकराहट की स्थिति ना आये इसलिए पुलिस ने हस्तक्षेप किया। बाद में उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाठियां भी भांजी। इस पर तंज करते हुए ग्वालियर-चम्बल के लिए नियुक्त कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने ट्वीट किया है, इसमें उन्होंने लिखा- भारतीय जनता युवा मोर्चे के कार्यकर्ता मित्रों आप आये थे कमलनाथ जी के 15 माह का हिसाब पूछने! आपका हिसाब तो शिवराज जी ने ही कर दिया! ज्यादा चोटें तो नहीं आईं, अब कभी मत पूछना हिसाब? जिनके लिए आपने हिसाब पूछा वे किसी के भी नहीं हैं, यारों।