आशुतोष दुबे
वही थाली है। वही कौर। झपटने के लिए हज़ारों हाथ। एक गाना है और उसे गाने वाले अनेक। एक रोल है और करने वाले बहुतेरे। जो मौका साध ले, पैमाना उसका। उसके बाद क़िस्मत। चल जाए तो फटीचर भी सिकन्दर। वरना सिकन्दर भी दरबदर।
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और असुरक्षाएँ सिकंदरों की भी। खुशकिस्मती की कोई आजीवन सदस्यता तो है नहीं। आज जिसे छौना समझ कर मौका दिलवा रहे हैं वह कल मौका पा कर शेर बन कर निगल नहीं जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं; बल्कि निगलेगा ही। तब कहीं कोई फरियाद नहीं। बस नज़दीकी कुछ तरस खा लेंगे, बैरी खुश होंगे।
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इसलिए जो लता मंगेशकर पर इल्ज़ाम लगाते हैं कि उन्होंने किसी गायिका को आगे बढ़ने नहीं दिया, जो अमिताभ का उपहास करते हैं कि वे तेल कंघी सब बेच रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यहाँ तक पहुँचने के लिए उनकी बहुत जद्दोजहद रही है। और वह भी उस इंडस्ट्री में जहाँ अपने कौर की हमेशा हिफाज़त करनी पड़ती है कि कोई झपट न ले।
‘ओ हंसिनी’ वाला गाना शैलेंद्र सिंह गाने वाले थे। रिहर्सल कर रहे थे। उधर किशोर कुमार पंचम से मिलने आए, धुन सुनी, रेकॉर्ड करवा कर चले गए। उषा टिमोथी ने ‘जा रे जा ओ हरजाई’ गाया था कल्याणजी आनन्द जी के लिए। रेकॉर्ड में लता जी की आवाज़ थी। पद्मा सचदेव ‘प्रेमपर्वत’ के गाने लिख रही थीं। दोपहर बाद आने के लिए कह कर गईं। लौटीं तो जां निसार अख़्तर ‘ ये दिल और उनकी निगाहों के साये’ लिख कर जा चुके थे। बेशुमार किस्से हैं।
लक्ष्मी प्यारे कल्याणजी आनन्द जी के असिस्टेंट थे। उन्होंने सबसे ज़्यादा इन्हीं से इनके ख़ास निर्माता निर्देशक तोड़े। मनोजकुमार , मनमोहन देसाई से सुभाष घई तक। उन्होंने शंकर जयकिशन के लिए भी बहुत बजाया था और फिर राज कपूर खेमे में उन्हें रिप्लेस भी किया; हालांकि वे न करते तो कोई और भी करता ही। फिर उनके साथ अन्नू मलिक ने यही किया, मनमोहन देसाई कैम्प में घुस कर।
आर डी बर्मन और लक्ष्मी प्यारे के भाईचारे और एक दूसरे के लिए माउथ ऑरगन और मैंडोलिन बजाने की कई कहानियाँ हैं। मगर इनमें प्रतिस्पर्धा और छीनझपट न रही हो, इस पर यक़ीन करना मुश्किल है। आर डी ने एल पी के ख़ास निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश की ‘आपकी क़सम’ में संगीत दिया था। खूब हिट भी हुआ, मगर जे ओमप्रकाश अपवाद की तरह फिर अपने पुराने संगीतकारों के पास लौट आए।
फ्रीलांसिंग की दुनिया बहुत सदाशयता से नहीं चलती। हिफाज़त और हड़पना साथ साथ चलता है।