राजेश ज्वेल
स्मृति ईरानी सहित भाजपा के तमाम दिग्गज मानते है कि राहुल गांधी उनकी पार्टी के लिए असेट हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की 7 घंटे चली फुस्सी बैठक में 6 माह के लिए फिर सोनिया ही अंतरिम अध्यक्ष बन गई, लेकिन सिब्बल, आजाद सहित 23 वरिष्ठ कांग्रेसी चिट्ठी के हवाले से कटघरे में खड़े कर दिए गए। इन नेताओं पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाने वाले राहुल को आइने के सामने खड़े हो कर खुद से ये सवाल पूछना चाहिए क्योंकि सबसे बड़े मददगार वे भाजपा के रहे हैं।
![राहुल खुद भाजपा के सबसे बड़े मददगार 4 narendra modi rahul gandhi](https://ghamasan.com/wp-content/uploads/2020/08/narendra-modi-rahul-gandhi.jpg)
अपने बेतुके बयानों से राफेल जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे वे नासमझी में गंवा चुके और सुप्रीम कोर्ट को भी मूर्खतापूर्वक घसीटने पर माफी मांगना पड़ी ,फलस्वरूप बोफोर्स की तरह राफेल भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने से रह गया। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे, जिसमें राहुल की अपरिपक्वता साफ़ नजर आई। दूसरी तरफ़ सोशल मीडिया के जरिए सुनियोजित तरीके से भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय पप्पू अलग साबित कर दिया, जिसके चलते वे कुछ ढंग की बात भी कहते है तो उसका जनता में मजाक बन जाता है। कोरोना से लेकर चीन जैसे मामले इसका उदाहरण है जिसे कांग्रेस नहीं भुना सकी।
वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किस्मत के धनी हैं। जिन्हें पप्पू विपक्ष मिला, वरना जब कांग्रेस सरकार में थी तब भाजपा ने दमदारी से विपक्ष की भूमिका निभाई। पेट्रोल-डीजल सहित तमाम घोटालों पर कांग्रेस को बेनकाब कर सत्ता पर काबिज हो गई। दूसरी तरफ राहुल ना तो संगठन मजबूत कर सके और ना ही सत्ता बचा सके। उल्टा जिन राज्यों में सरकारें बनी वहां भी नादानी के चलते सरकार गंवाते गए। मध्यप्रदेश जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां राहुल-प्रियंका चाहते तो सिंधिया को एक झटके में मना लेते। अब बेहतर तो यह होगा कि राहुल कुछ सालों के लिए राजनीति छोड़ दें और पक्की ट्रेनिंग लेकर लौटें। तब तक कांग्रेस की जिम्मेदारी शानदार हिंदी बोलने और मुद्दों को समझने वाले व्यक्ति को सौंपी जाए, हालांकि तब पार्टी में बिखराव होगा।
ऐसे में प्रियंका भी विकल्प हो सकती है। लेकिन ये अवश्य है कि राहुल के रहते कांग्रेस फिलहाल मोदी-शाह की भाजपा का किसी एंगल से मुकाबला नहीं कर सकती क्योंकि उनमें ना तो आलाकमान बनने की काबिलियत है और ना दमदार नेतृत्व की क्षमता। सोनिया ने ये सच्चाई अब भी नहीं समझी तो कांग्रेस का पूरा बंटाढार तय है। सत्ता में आने की बजाय कांग्रेस अगर सशक्त विपक्ष की भूमिका ही ढंग से अदा कर ले तो ये भी जनता पर उसका उपकार ही होगा जो कि एक सफल लोकतंत्र के लिए भी जरूरी है