इस दौर-ए-दर्द में शायद भवानी प्रसाद मिश्र की कविता हमारे कुछ काम आ जाए

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By Ayushi JainPublished On: April 26, 2021

भवानी प्रसाद मिश्र

गुनगुनाइए आप भी…..!

दर्द जब घिरे बहाना करो
न, ना ना, ना ना, ना ना करो

दर्द जो दिल से बाहिर हो
तो दुनियाभर में जाहिर हो
दर्द जाहिर, करना बेकार
हमारा यह नुस्खा है यार
दर्द को दरी बनाओ, हाँ
नहीं उसका सिरहाना करो।
दर्द जब घिरे बहाना करो
न, ना ना, ना ना, ना ना करो

दरी पर तोषक अच्छी एक
और उसपर बढ़िया चादर
कोई आ जाए ऐसे में
तो उसको बैठाओ सादर
जिसे सादर बैठाया है
दर्द उससे ही पाया है
मगर यह खबर न दो, उसको
दर्द जाना-अनजाना करो।
दर्द जब घिरे बहाना करो
न, ना ना, ना ना, ना ना करो

हँसो बोलो मस्ती के संग
दर्द को लगे कि ये क्या ढंग
दर्द भीतर हैरान रहे
ओठ पर अपने गान रहे
मजा आ जाए अतिथि को ठीक
कि उसका ठौर-ठिकाना करो।
दर्द जब घिरे बहाना करो
न, ना ना, ना ना, ना ना करो

दर्द का क्या है वह अपना
और सुख नन्हा सा सपना
अभी आया है जाएगा
न जाने फिर कब आएगा
हँसाओ उसे कुदाओ उसे
लाड़ उसका मनमाना करो।
दर्द जब घिरे बहाना करो
न, ना ना, ना ना, ना ना करो।