उप चुनाव: क्या हाथरस कांड से प्रभावित होगा प्रदेश का दलित वोट!

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By Ayushi JainPublished On: October 11, 2020

दिनेश निगम ‘त्यागी’

प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में दलित वोटों को अपने पाले में लाने की लड़ाई भाजपा और कांग्रेस में छिड़ गई है। इस वोट पर पकड़ बनाने के उद्देश्य से कांग्रेस ने दलित नेता फूल सिंह बरैया को पहले राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया। इसके बाद भांडेर विधानसभा सीट से टिकट देकर मैदान में उतार दिया। बरैया की चंबल-ग्वालियर अंचल के बड़े दलित वोट पर पकड़ मानी जाती है। बरैया को साधने के लिए कांग्रेस ने अपने पुराने दलित नेता महेंद्र बौद्ध की परवाह नहीं की। वे पार्टी छोड़ बसपा में चले गए। इधर दलित वोटों को लेकर भाजपा कम चिंतित नहीं है। पार्टी में इस अंचल के बड़े दलित नेता लाल सिंह आर्य हैं। उनकी परंपरागत विधानसभा सीट से कांग्रेस से आए बागी मैदान में है। आर्य के कारण दलित वोटों पर विपरीत मैसेज न जाए, इसलिए उन्हें भाजपा अजा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। लाल सिंह चंबल-ग्वालियर अंचल में डेरा डाल कर दलितों को भाजपा के पक्ष में लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच हाथरस कांड देश की सुर्खियों में आ गया। सवाल यह है कि क्या उप चुनाव में हाथरस कांड से प्रभावित होकर दलित वर्ग वोटिंग कर सकता है? कांग्रेस की कोशिश तो यही है।

एक दर्जन सीटों में बसपा मुख्य किरदार….

भाजपा-कांग्रेस की नजर उन एक दर्जन सीटों पर है, जहां दलित वर्ग के वोट सर्वाधिक और निर्णायक भूमिका में हैं। बहुजन समाज पार्टी पहली बार उप चुनाव में हिस्सा ले रही है। उसने सभी 28 सीटों में अपने प्रत्याशी उतारे हैं। दलित बाहुल्य सीटों में बसपा प्रमुख किरदार की भूमिका में आ सकती है। कुछ सीटें वह जीत सकती है, न जीते तब भी भाजपा-कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ सकती है। बसपा विधानसभा चुनाव में इन सीटों में निर्णायक वोट हासिल करती रही है।

हाथरस कांड को भुनाने की तैयारी…

प्रदेश में भाजपा की सरकार है और उसकी सरकार में ही उप्र में हाथरस कांड हुआ। मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में भी दलितों के साथ रेप व अन्य घटनाएं हुई हैं। कांग्रेस ने हाथरस कांड की आड़ में दलितों को रिझाने प्रदेश भर में अभियान चलाया है। पूरे प्रदेश में मौन धरना दिए गए। कई जगह पुलिस के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की झूमाझटकी हुई। कांग्रेस यह सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही कि भाजपा दलित विरोधी है। कांग्रेस इस अभियान में कितना कामयाब होती है, यह नतीजे बताएंगे।

भाजपा नहीं करना चाहती कोई चूक….

हाथरस कांड के बाद भाजपा खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दलित वर्ग के नाराज होने का अहसास है। यही वजह है कि वे कोई चूक नहीं कर रहे। प्रदेश में कहीं कोई घटना हो रही है तो मुख्यमंत्री कार्रवाई में देर नहीं कर रहे हैं। तत्काल आरोपी गिरफ्तार किए जा रहे हैं। लापरवाह पुलिस अफसरों पर भी कार्रवाई की जा रही है। मुख्यमंत्री की इस सतर्कता का नतीजा है कि कांग्रेस को दलितों को उकसाने का ज्यादा मौका नहीं मिल रहा। फिर भी कांग्रेस दलितों को रिझाने की हर कोशिश कर रही है। चुनाव के दौरान ही यह पता चलेगा कि दलित वर्ग का रुझान किस ओर है।

अजा कोटे की 9 सीटों पर ज्यादा फोकस….

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में अजा वर्ग के लिए आरक्षित 9 सीटों में भाजपा को मुश्किल आई थी। दरअसल, चार साल पहले एट्रोसिटी एक्ट का सबसे ज्यादा विरोध ग्वालियर चंबल संभाग में हुआ था। इसकी वजह से इस वर्ग के लिए आरक्षित सभी 9 सीटें भाजपा हार गई थी। भाजपा की कोशिश है कि कांग्रेस के बागियों का लाभ पार्टी को मिले और वह सभी सीटें जीते। लाल सिंह आर्य कह रहे हैं कि इस बार सभी सीटें भाजपा जीतेगी। पार्टी संबल योजना के जरिए दलित वर्ग को सरकार की योजनाओं से जोड़कर अच्छे दिनों का अहसास कराने की कोशिश में है। दूसरी तरफ कांग्रेस के भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि दलित भाजपा की मानसिकता समझ गए हैं। अब वे इनके झांसे में आने वाले नहीं हैं। इस तरह दलित वोटों को लेकर कांग्रेस-भाजपा में शह-मात का खेल जारी है।