दिमाग़ी कचरे को भी साफ करना होगा -अन्ना दुराई

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By Mukti GuptaPublished On: November 26, 2022

नफरतों को जलाओ, मोहब्बत की रोशनी होगी, वरना इंसान जब भी जले हैं, ख़ाक ही हुए हैं।

नफ़रत, नज़रअंदाजी और ग़लतफ़हमी ये तीन शब्द हैं जिन पर मेरे लेख की यह दूसरी व अंतिम किश्त टिकी है। यह इसलिए भी ज़रूरी है कि आजकल अधिकांश इंसानों का जीवन इन पंक्तियों की तरह गुज़रता है कि सुबह होती है, शाम होती है, ज़िंदगी यूं तमाम होती है। वाक़ई इंसान के पास अब अपने लिए सोचने का कुछ रह ही नहीं गया है। सोचे तो वह देशद्रोही की श्रेणी में आ खड़ा होगा। बिना किसी क़सूर के वो स्वयं को क़सूरवार दिखाई देने लगेगा। ये भ्रम पैदा करने में उन नासमझ स्लीपर सेलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है जिन्होंने बिना किसी पड़ताल के सोशल मीडिया पर झूठे एवं नफ़रत भरे संदेशों को आगे बढ़ाकर विभिन्न वर्गों के बीच एक खाई पैदा की है।

ये वर्ग ख़ामोशी से नफ़रत फैलाने का कार्य करता है। आप और हम इनकी ग़लत हरकतों को भी नज़रअंदाज़ करते हैं और परिणाम यह निकलता है कि उसमें से कई तो झुठे संदेशों को भी सच मान लेने की ग़लतफ़हमी पाल लेते हैं। बस इन्हीं तीन शब्दों के इर्द गिर्द दिन गुज़र जाता है। एक ताक़त झूठ को सच साबित करने में लगती है तो इने गिने लोग झूठ को झूठ साबित करने में जुट जाते हैं। सभी अपना क़ीमती समय जाया करते हैं। रोज़ी रोटी की समस्या मानो छोटी नज़र आने लगती है।

देखा जाए तो आज आर्थिक स्तर पर आय घट रही है, ख़र्चे बढ़ रहे हैं। शारीरिक स्तर पर शक्ति घट रही है, रोग बढ़ रहे हैं। पारिवारिक स्तर पर सम्बन्ध घट रहे हैं, तनाव बढ़ रहा है। सामाजिक स्तर पर प्रतिष्ठा घट रही है, लोलुपता बढ़ रही है। नैतिक स्तर पर परमार्थ घट रहा है, स्वार्थ बढ़ रहा है। इसके बावजूद हम सीख नहीं ले पा रहे हैं। जीवन की दशा और दिशा बदलने के लिए दुर्गति से बचना बेहद ज़रूरी है।

सियासतदारों ने हमारे दिमाग़ में कचरे का एक बड़ा ढेर जमा कर दिया है। हमारा दिमाग़ भी ट्रेचिंग ग्राउंड की तरह बन गया है। स्लीपर सेलों की मदद से कचरा इंसानी दिमाग़ों में ढूल रहा है। बेक़सूर लोग इस दिमाग़ी कचरे के शिकार हो रहे हैं। हमारे शहर ने सफ़ाई में नंबर वन का ख़िताब तो हासिल कर लिया लेकिन वास्तविक धरातल पर अब इस दिमाग़ी कचरे की भी सफ़ाई बेहद ज़रूरी है। इसकी शुरुआत यहीं से करना होगी। दिमाग़ी कचरा फैलाने वालों की पहचान बेहद ज़रूरी है। कहते हैं, शासन प्रशासन की नज़रों से कुछ छुपा नहीं है तो फिर इसे नज़रअंदाज़ करना भी सही नहीं है। स्वच्छ वातावरण के लिए अब सड़क पर पड़े कचरे के साथ साथ झूठ और नफ़रत की बुनियाद पर ढोले गए दिमाग़ी कचरे को भी साफ़ करना होगा।

सोचिएगा ज़रूर जिस दिन हम दिमाग़ी कचरे से मुक्त होंगे, चारों और हँसी ख़ुशी, उल्लास उमंग का माहौल दिखाई देने लगेगा। मन स्वस्थ रहेगा और विकृतियाँ भी दूर होगी। स्नेह और प्यार की महक अपनी ख़ुशबू बिखेरेगी।

उड़ा दो रंजिशें अब हवा में मेरे यारों
दिल नहीं करता नफ़रत करने को….