सरकार! खजाना गेरूआ कामनाओं पर लुटाने के लिए नहीं है..! – महेश दीक्षित

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महेश दीक्षित(Mahesh Dixit)

जिस तरह से कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा(Pt. Pradeep Mishra सीहोर वाला) के रूद्राक्ष महोत्सव(Rudraksh Mahotsav) में अव्यवस्थाएं फैलने का ठीकरा सीहोर जिला प्रशासन और उसके जिम्मेदारों पर फोड़ा गया। दो दिन तक शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया। प्रचारित किया गया कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में ही हिंदूधर्म का अपमान हो रहा है। रूद्राक्ष महोत्सव में फैली अव्यवस्थाओं को लेकर प्रदेश में राजनीति हुई।

भाजपा के ही कुंठित नेताओं ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल किए। कांग्रेस के लंबरदारों ने अपनी राजनीति चमकाई। उसने इन राजनेताओं की नीयत और समझ दोनों पर तो सवाल खड़े किए ही, यह भी साबित कर दिया कि, अपने राजनीतिक शुभ-लाभ (वोट बैंक) के लिए ये नेता किसी भी आसाराम, राम रहिम, कंप्यूटर और मिर्ची बाबा सरीखे के सामने भी किसी हद तक गिर सकते हैं। नतमस्तक हो सकते हैं। अपने हित साधने और धर्मान्धता को पोषित करने संवैधानिक धर्म को खूंटी पर टांग सकते हैं।

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हुआ भी वही। अचानक पं. प्रदीप मिश्रा के आंसुओं ने न जाने कौनसा मंतर-छूमंतर किया कि, शुद्ध धर्म और नियम-कानून खूंटी पर लटका दिए गए। पूरा जिला प्रशासन कथा वाचक पं. मिश्रा के सामने नतमस्तक हो गया। कलेक्टर-एसपी क्षमा याचना की मुद्रा में आ गए। पूरा सरकारी तंत्र आज्ञाकारी सेवक की तरह पं. मिश्रा के इशारों पर नाचने लग गया। रूद्राक्ष महोत्सव आयोजन स्थल पर पं. मिश्रा से पूछ-पूछकर, पैर छू-छूकर इंतजाम होने लगे।

हम बता दें कि रूद्राक्ष महोत्सव पूरी तरह से पं. मिश्रा का निजी धार्मिक आयोजन है। जिसमें उन्होंने भक्तों के कल्याण के लिए 11 लाख अभिमंत्रित रूद्राक्ष मुफ्त वितरित करने का दावा किया है। निश्चित रूप से रूद्राक्ष महोत्सव में रखी गई दान पेटी में करोड़ों रुपए का जो चढ़ावा चढ़ने वाला है, वो भी अपरिग्रह (संसार और धन मिथ्या है) का प्रवचन देने वाले पं. मिश्रा धर्म खाते में जाने वाला है। कहने का मतलब है रूद्राक्ष महोत्सव के आयोजन का खर्चा तो सरकार कर रही है और करोड़ों रुपए की कमाई सिर्फ पं. मिश्रा करेंगे।

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कथा वाचक पं. मिश्रा के मंतर-छूमंतर से शासन- प्रशासन इतने घबराए हुए हैं कि, पं. मिश्रा की सेवा में अब फिर कहीं कोई चूक न हो जाए, इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है। आयोजन स्थल पर भोजन-पानी और ठहरने से लेकर भक्तों के सारे जरूरी इंतजामात प्रशासन द्वारा किए जा रहे हैं। पानी टैंकर और चलित शौचालय भोपाल से बुलाए जा रहे हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी निजी धार्मिक आयोजन में सारे इंतजामात सरकारी खजाने (जनता के पैसे) से हो रहे हैं। वो भी सिर्फ इसलिए कि टोने-टोटके बेचने वाला एक कथा वाचक नाराज न हो जाए।

कथावाचक पं. मिश्रा और उसके भक्तों के नाराज होने से जिला प्रशासन का तो क्या बनता-बिगड़ता? लेकिन बताते हैं कि इस घटनाक्रम के बाद सीएम सचिवालय को ऐसा संदेश भेजा गया कि, पं. मिश्रा के आंसुओं से सरकार का जरूर नुकसान हो जाएगा। बस फिर क्या था, जिला प्रशासन के जिम्मेदारों को कह दिया गया कि, रूद्राक्ष महोत्सव में पूरा प्रशासन लगता है तो लगा दो। पं मिश्रा नाखुश नहीं रहने चाहिए।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि, चलो सरकार और प्रशासन ने तथाकथित एक कथावाची पंडित की गेरूआ आकांक्षाओं को साध लिया, और धर्मान्धता के नाम पर होने वाले एक बवंडर को मिट्टी डालकर शांत कर दिया। लेकिन क्या गारंटी है कि, फिर कोई तथाकथित पंडित, बाबा, पाखंडी इस तरह आंसू से बहाकर प्रशासन और सरकार को ब्लेकमैल नहीं करेगा…?

सरकार को यह समझना होगा कि, इस तरह की तथाकथित पंडित-बाबाओं की धर्मान्धता को पालने-पोसने की परंपरा चल पड़ी, तो राम, कृष्ण, बुद्ध-महावीर, कबीर, मीरा और आदी शंकराचार्य को कौन जानना चाहेगा? शुद्ध धर्म-आध्यात्म क्विदंती बन जाएगा। सरकारी खजाना जनता के कल्याण और उसके शुभ के लिए होता है। पंडित-बाबाओं की धर्मान्धता के पोषण और गेरुआ के भीतर दमित कामनाओं को शांत करने के लिए तो कतई नहीं…।