रामचरितमानस जैसे पावन और पवित्र ग्रन्थ के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम के परम भक्त थे. हिंदू धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था तो वह रोये नहीं थे, बल्कि उनके मुंह से पहला शब्द राम निकलाकी निकली थी। इसलिए तुलसीदास जी को रामबोला भी कहा गया. हिन्दू पौराणिक कथाओं में गोस्वामी तुलसीदास जी के अनेकों प्रसंग मिलते हैं. तुलसीदास जी को हनुमान जी का स्थान एक प्रेत ने बताया था, जिसकी रोचक और महत्वपूर्ण कथा बेहद प्रचलित है.
श्रीराम की खोज में निकल पड़े तुलसीदास
हिंदी ग्रंथों के अनुसार तुलसीदास जी की धरम पत्नी का नाम रत्नावली था. जब तुलसीदास जी का ब्याह रत्नावली से हुआ तो वह उसके मोहकता में इतना गुम हो गए थे कि उन्होंने बाहर की दुनिया को भूला दिया. जिससे चिंतित होकर रत्नावली अपने मायके चली गई. लेकिन तुलसीदास जी भी पीछे-पीछे वहां पहुंच गए. तब तुलसीदास जी की धरम पत्नी ने ऐसे शब्द बोले कि उनकी तपस्या जाग उठी और वो श्रीराम की तलाश में निकल पड़े.
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प्रेत ने बताया हनुमान जी का पता
संत तुलसीदास जी ने अपना घर छोड़ दिया और 14 वर्षों तक तीर्थ पारण किया. लेकिन तब भी उनको वास्तविकता का बोध नहीं हुआ और उन्होंने यात्राओं में एकत्र किए गए कमंडल में जल को सूखे पेड़ की जड़ों में फेंक दिया. उस पेड़ में एक आत्मा का निवास था. वह तुलसीदास जी से खुश हुई और कुछ मांगने को कहा. तब तुलसीदास जी ने प्रभु राम जी के दर्शन करने की लालसा जताई. इस पर आत्मा ने तुलसीदास जी को कहा कि तुम हनुमान जी के मंदिर जाओ, वहां रामायण का पाठ होता है, जिसे सुनने के लिए खुद हनुमान जी कोढ़ी के वेश में आते हैं. तुम उनके पावन चरणों में गिरकर सहायता मांगना. वो तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे.
तुलसीदास जी ने मांगी सहायता
तुलसीदास जी ने उस प्रेत के बताए नीतिपूर्वक हनुमान मंदिर में पहुंचे और रामायण का पाठ सुनने लगे. उन्होंने देखा कि एक कोढ़ी रामायण कथा सुनने में लीन है. तुलसीदास जी समझ गए और वह उनके पास पहुंच गए. तुलसीदास जी उस कथावाचक के चरणों में गिर गए और उनकी स्तुती करने लगे.
प्रभु श्रीराम ने दिए दर्शन
फिर हनुमान जी ने उनको असली रूप में दर्शन दिए और शीघ्र ही प्रभु श्रीराम से भेंट का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद तुलसीदास जी चित्रकूट के घाट पर भगवान श्रीराम की मूति॔ के तिलक के लिए चंदन कूट रहे थे. तब खुद प्रभु श्रीराम ने उनको दर्शन दिए. इससे तुलसीदास जी काफी खुश हुए. तब प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद के बाद तुलसीदास जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई.