राजेश ज्वेल
चुनाव लड़ना अत्यंत महंगा है और अब ये हर किसी के बूते की बात भी नहीं… इस बात को हर सामान्य मतदाता भी भली-भांति जानता है कि चुनाव में हजारों करोड़ का कालाधन खपता है। अभी ईडी सहित अन्य एजेंसियां रोजाना करोड़ों रुपए जब्त भी कर रही है। वैसे तो आज-कल निगम के अदने से पार्षद का ही चुनाव 4-5 करोड़ से कम में कई चुनौती वाले इंदौरी वार्डों में ही नहीं पड़ता। ऐसे में विधानसभा और लोकसभा के बड़े चुनाव तो कई गुना अधिक महंगे हो गए हैं। इंदौर की 9 विधानसभा सीटों की ही बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक 300 करोड़ या उससे भी अधिक खर्च हो जाएंगे।
एक प्रत्याशी का 10 से 20 करोड़ का खर्च इस महंगाई के जमाने में मामूली बात है। वहीं कई फंसी हुई और मालदार प्रत्याशियों की सीटें ऐसी हैं जहां 25 से 50 करोड़ या उससे भी अधिक खर्च किए जा रहे है , क्योंकि राजनीतिक भविष्य का सवाल है। उदाहरण के लिए विधानसभा 1 का चुनाव ही सबसे महंगा लड़ा जा रहा है, जहां पर 50 से 100 करोड़ खर्च होने की बात कही जा रही है। चुनाव आयोग लाख काले धन पर रोक लगाने के दावे करे मगर राजनीतिक दलों के साथ उनके उम्मीदवार पानी की तरह पैसा बहाते हैं, ताकि सत्ता हासिल की जा उससे कई गुना अधिक कमा सकें।
मध्यप्रदेश की 230 सीटों का चुनाव ही हजारों करोड़ का पड़ेगा। अकेले इंदौर की 9 विधानसभा सीटों पर ही 300 करोड़ से अधिक के खर्च का आंकलन है और यह राशि भी प्रत्याशियों द्वारा खर्च की जाने वाली ही है , जिसमें राजनीतिक दलों का खर्चा तो शामिल ही नहीं है जो कि स्टार प्रचारकों, हेलीकॉप्टरों, चुनावी सभाओं, रोड शो से लेकर प्रचार-प्रसार, विज्ञापन सहित अन्य तामझाम पर होता है। इंदौर की हर विधानसभा पर 10 से 20 करोड़ खर्च मामूली बात है। दोनों प्रमुख दलों के कुल प्रत्याशियों की संख्या 18 है और 10-10 करोड़ भी एक प्रत्याशी खर्च करता है तो 180 करोड़ तो वैसे ही हो जाते हैं। जबकि कुछ सीटें कांटापकड़ और चुनौती वाली हैं और यहां के प्रत्याशी मालदार भी हैं, जो कि 20-25 करोड़ से लेकर 50 करोड़ तक खर्च कर सकते हैं।
जैसे विधानसभा 1 का चुनाव सबसे महंगा बताया जा रहा है, क्योंकि यहां भाजपा के कद्दावर नेता यानी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला धनपति उम्मीदवार कांग्रेस के संजय शुक्ला से है। चूंकि राजनीतिक भविष्य के लिए यह चुनाव श्री विजयवर्गीय को जीतना अत्यंत आवश्यक है, लिहाजा सूत्रों का कहना है कि खर्च में किसी तरह की कोई कटौती या कमी नहीं की जा रही है। दोनों ही उम्मीदवार खर्च करने में पीछे नहीं रहेंगे और अकेला यह चुनाव ही 75 से 100 करोड़ का माना जा रहा है। उपहारों के बांटने का सिलसिला तो लगातार जारी है। साड़ी, मोबाइल से लेकर 5 हजार व 50 हजार से लेकर लाख-दो लाख तक के नकदी लिफाफे भी हैसियत के मुताबिक दिए जा रहे हैं, जिनमें कार्यकर्ताओं, बूथ संभालने वालों से लेकर समाज प्रमुखों के नाम भी शामिल हैं, जो थोक में वोट दिलवाने का दावा करते हैं। अब सेंव-परमल खाकर काम करने वाले कार्यकर्ता भी नहीं रहे। सबको लिफाफे और सुविधाएं लगती हैं।
नेताओं का जमा कालाधन भी आता है बाजार में
चुनाव के दौरान बाजार में कालाधन बड़ी मात्रा में आता है, क्योंकि दलों के साथ हर प्रत्याशी भारी-भरकम राशि खर्च करता है और यह पूरा पैसा दो नम्बर यानी कालाधन ही होता है। सामान्य पेंटर, फ्लेक्स छापने वाले से लेकर चुनावी प्रचार-प्रसार से जुड़ी एजेंसियों, मीडिया को भी खूब पैसा बंटता है। वहीं साड़ी, मोबाइल, वाहनों से लेकर कई उपहार थोक में खरीदे जाते हैं, जिससे व्यापारियों को भी फायदा होता है। हवाई हजार, हेलीकॉप्टर से लेकर केटरिंग यानी खान-पान का कामकाज करने वालों का भी धंधा चमक जाता है, जिसमें सभी वर्ग के छोटे-बड़े व्यापारी फायदेमंद रहते हैं।
दीपावली मनेगी जनता के साथ कार्यकर्ताओं की
इस बार तो चुनाव ठीक दीपावली पर ही आ रहे हैं। 12 नवम्बर को दीपावली और 17 नवम्बर को मतदान के चलते निचली बस्तियों की जनता से लेकर कार्यकर्ताओं की दीपावली अच्छी मनेगी। आयोग की आंखों में धुल झोंकने के तमाम रास्ते दलों और उम्मीदवारों द्वारा अपनाए जाते हैं और मालदार प्रत्याशियों के कार्यकर्ता भी बिना मोटी रकम लिए नेताजी के प्रचार-प्रसार में नहीं जुटते। लिहाजा इस बार दीपावली पर मोबाइल, कपड़ो, मिठाई, पटाखों से लेकर कई तरह की सामग्री भी जमकर बंट रही है। भोजन-भंडारे से लेकर विभिन्न क्लबों, समाजों के माध्यम से भी आयोजन किए जा रहे हैं, ताकि मतदाताओं को लुभाया जा सके।