इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन ने “फ्रॉम बोर्ड गेम्स टू द बोर्ड रूम, कॉलिंग ऑन अवर इनर चाइल्ड टू एक्सेल” सत्र का किया आयोजन

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इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन ने “फ्रॉम बोर्ड गेम्स टू द बोर्ड रूम: कॉलिंग ऑन अवर इनर चाइल्ड टू एक्सेल” सत्र का आयोजन किआ जिसका संचालन लोयोला यूनिवर्सिटी शिकागो, यूएसए के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और आईआईएम इंदौर के गेस्ट फैसिलिटेटर,डॉ. अरूप वार्मा,ने किया। यह कार्यक्रम 18 जुलाई, 2023 को होटल, द पार्क, इंदौर में हुआ। डॉ. अरूप वार्मा ने जिज्ञासा बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सत्र की शुरुआत की, एक ऐसा गुण जिसे हम अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में अक्सर अनदेखा कर देते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जैसे-जैसे व्यक्ति परिपक्व होते हैं, वे सामाजिक नॉर्म्स और पूर्व निर्धारित संरचनाओं (structures) के अनुरूप अपनी जिज्ञासु ( inquisitive) प्रकृति को दबा देते हैं।

डॉ.वार्मा के अनुसार, जिज्ञासा की यह कमी क्रिएटिव सोच में बाधा डालती है, इन्नोवशन को बाधित करती है, और व्यक्तियों द्वारा अपने संगठनों और समाज में किए जा सकने वाले योगदान को प्रतिबंधित करती है। एक्सटेंसिव रिसर्च द्वारा समर्थित, डॉ. वार्मा ने इस बात पर जोर दिया कि जिज्ञासा/ क्यूरोसिटी ही एक ड्राइविंग फाॅर्स है क्रिएटिव प्रॉब्लम -सॉल्विंग , बेहतर डिसिशन -मेकिंग , कंटीन्यूअस इम्प्रूवमेंट, कॉन्फ्लिक्ट रिडक्शन, एवं कॉस्ट ऑप्टिमाइजेशन के लिए। प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए, उन्होंने एक दिलचस्प उदाहरण दिया कि कैसे आकाश में पक्षियों को देखकर हवाई जहाज के आविष्कार की प्रेरणा मिली। उन्होंने उपस्थित लोगों से अपने आस-पास की प्राकृतिक घटनाओं को देखने और उनकी सराहना करने के लिए कुछ समय निकालने का आग्रह किया, क्योंकि ये ऐसे ही ऑब्सेर्वशन्स ग्राउंड ब्रेकिंग इनोवेशन को प्रेरित कर सकते हैं।

पूरे सत्र के दौरान, डॉ. वार्मा ने ग्लोबल अवेयरनेस और सांस्कृतिक और सामाजिक नॉर्म्स को समझने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने सम्मान ( respect) और एक्सेप्टेन्स की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया, यह मानते हुए कि डाइवर्सिटी (विविधता) को अपनाने से न केवल जिज्ञासा बढ़ती है बल्कि डाइवर्स /विविध दृष्टिकोण और विचारों के माध्यम से एक आर्गेनाइजेशन की बॉटम लाइन भी (संगठन की निचली रेखा ) भी समृद्ध होती है। जिज्ञासा को बढ़ावा देने के लिए, डॉ. वार्मा ने पढ़ने, यात्रा करने, प्रश्न पूछने और सामान्यीकरण से बचने जैसी व्यावहारिक सलाह दी। उन्होंने जिज्ञासा को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए लोगों के मूल्यों को समझने और व्यक्तिगत मतभेदों का सम्मान करने के महत्व पर प्रकाश डाला।

वास्तविक जीवन के उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए, उन्होंने ऐसे विजनरी लीडर्स की कहानियाँ साझा कीं जिन्होंने अपने हमेशा सिद्धांतों का उदाहरण (पालन किआ ) दिया और अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान किया एवं दूसरों को भी इसका पालन करने के लिए प्रेरित किया। एक टचिंग ट्रिब्यूट (मर्मस्पर्शी श्रद्धांजलि) में, डॉ. वार्मा ने अपनी प्रस्तुति अपनी दिवंगत मां को समर्पित की, और स्वयं में ज्ञान प्राप्त करने के लिए निरंतर जिज्ञासा और जुनून पैदा करने में उनकी मां की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया। सत्र का समापन उपस्थित लोगों द्वारा अपने भीतर की बच्चों जैसी जिज्ञासा को अपनाने और अपने पेशेवर प्रयासों को नए जोश और रचनात्मकता के साथ अपनाने के लिए प्रेरित और प्रेरित महसूस करने के साथ हुआ।