Indore: विधानसभा चुनाव में 2 साल पहले इंदौर की विधानसभा नंबर 1 से संजय शुक्ला ने कांग्रेस की जीत का परचम लहराया था. पॉलिटिकल पिच पर पुष्यमित्र भार्गव भारी मतों से संजय शुक्ला को हराया है. जबकि बता देंगी भार्गव को महापौर पद पर उतारने का फैसला नगरी निकाय चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद किया गया था. यही वजह थी कि पुष्यमित्र भार्गव को कमजोर उम्मीदवार कहा जा रहा था. लेकिन शुक्ला चुनाव क्यों हारे हम आपको बताते हैं.
स्वच्छता का पंच
इंदौर लगातार पांचवीं बार स्वच्छता में नंबर वन बना हुआ है. यह अवार्ड भाजपा के शासनकाल में ही इंदौर को मिला है. यही वजह है कि भाजपा स्वच्छता के पंच के सहारे इंदौर यों के दिलों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही. इसके चलते भाजपा को डेवलपमेंट की राजनीति करने वाली पार्टी मांग कर मतदाताओं ने संजय शुक्ला को महापौर नहीं बनाया.
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नया चेहरा
भाजपा ने महापौर पद पर नए चेहरे को मैदान में उतार दिया जबकि संजय शुक्ला शहर का जाना माना नाम है. उनके काम और तौर-तरीकों से जनता भलीभांति परिचित है. यही वजह रही कि भार्गव इस बार महापौर चुने गए.
लोकल चेहरों की दूरी
कांग्रेस के बड़े नेताओं ने संजय शुक्ला के प्रचार प्रसार में बस औपचारिकता निभाई. शायद इन नेताओं को संजय शुक्ला के महापौर बनने पर शहर में अपना राजनीतिक कद छोटा होने का खतरा दिखाई दे रहा था.
शुक्ला का अहंकार
पार्टी से प्रत्याशी का टिकट मिलने के बाद शुक्ला ने बिना नतीजों के ही खुद को महापौर घोषित कर दिया था. अपने प्रचार प्रसार के दौरान उन्होंने खुद के बजट से पांच फ्लाईओवर बनाने की घोषणा की थी. जनता को शायद उनका यह रवैया अहंकार के रूप में दिखाई दिया और उन्होंने शुक्ला को नकार दिया.
लक्ष्मीपुत्र बनाम सरस्वतीपुत्र
भाजपा में पुष्यमित्र भार्गव की छवि पढ़े लिखे व्यक्ति की बनाई गई. वहीं संजय शुक्ला को उनकी संपत्ति के आधार पर लक्ष्मीपुत्र बता दिया गया. सरस्वती पुत्र और लक्ष्मीपुत्र का नैरेटिव सेट करने में भाजपा को सफलता मिली और कांग्रेस विधायक और नेता संजय शुक्ला महापौर पद का चुनाव नहीं जीता पाए.
फेल बूथ मैनेजमेंट
प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लड़ने की जगह पारंपरिक तरीका अपनाना और अपने वोटरों के बारे में जानकारी कम होना. वहीं प्रचार के दौरान जनता के मन को नहीं समझ पाना एक बड़ा कारण रहा. बूथ मैनेजमेंट का विफल हो जाना हार का एक बड़ा कारण बना.