कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने एक बार फिर पार्टी के भीतर आत्मचिंतन की जरूरत को रेखांकित किया है। उन्होंने 1975 में लगी इमरजेंसी और उस दौर की जबरन नसबंदी नीति को लेकर सवाल उठाए हैं। थरूर का कहना है कि कांग्रेस को अपने अतीत की गलतियों से सबक लेना चाहिए और लोकतंत्र की रक्षा के लिए निरंतर सजग रहना होगा।
इमरजेंसी एक असहज सच है, कांग्रेस को स्वीकार करना होगा
थरूर ने कहा, “इमरजेंसी एक ऐसा अध्याय है जिससे कोई भी गर्व नहीं कर सकता। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक कठिन समय था। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि उस दौरान कुछ ऐसे कदम उठाए गए जो संविधान की भावना के विरुद्ध थे।” उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लगाए गए आपातकाल ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वायत्तता और नागरिक अधिकारों को प्रभावित किया। थरूर के अनुसार, “यह जरूरी है कि हम न केवल दूसरों की गलतियों की आलोचना करें, बल्कि अपने घर में झांककर आत्ममंथन भी करें।”

नसबंदी अभियान को बताया अमानवीय
थरूर ने संजय गांधी के नेतृत्व में 1975-77 के दौरान चलाए गए नसबंदी अभियान को भी कठोर और अमानवीय बताया। उन्होंने कहा कि इस नीति के तहत लोगों को डर और दबाव के जरिए उनकी इच्छा के खिलाफ सर्जरी के लिए मजबूर किया गया, जो आज भी भारतीय जनमानस में गहरे घाव की तरह मौजूद है। हमारे कुछ कार्यों ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया और आज भी हमारे विरोधी इसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ करते हैं।
थरूर के बयान का सियासी मतलब
शशि थरूर के इस बयान को कांग्रेस में आंतरिक सुधार की मांग और पारदर्शिता की पैरवी के रूप में देखा जा रहा है। थरूर लंबे समय से पार्टी के भीतर खुली बहस और लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया के हिमायती रहे हैं। उन्होंने पहले भी नेतृत्व और संगठनात्मक चुनावों को लेकर अपने विचार स्पष्ट किए थे। यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन के बाद आत्ममंथन की प्रक्रिया से गुजर रही है और नए राजनीतिक समीकरणों की तैयारी कर रही है।
बीजेपी के हमले तेज होने की आशंका
थरूर के इस बयान से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को भी कांग्रेस पर हमला करने का नया अवसर मिल सकता है। बीजेपी पहले से ही इमरजेंसी और नसबंदी को कांग्रेस की “तानाशाही मानसिकता” के प्रतीक के रूप में प्रचारित करती रही है। ऐसे में थरूर के बयान को लेकर सियासी हलचल और बढ़ सकती है। शशि थरूर का यह साहसिक बयान कांग्रेस के लिए एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी। यदि पार्टी इसे आत्ममंथन की दिशा में ले जाती है, तो यह लोकतंत्र के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को फिर से स्थापित कर सकता है। वरना यह भी एक राजनीतिक हथियार बनकर विरोधियों के हाथ में चला जाएगा।
ऑपरेशन सिंदूर के समय भी तंज
इससे पहले भी शशि थरूर ने अपने पार्टी और राहुल गांधी पर सवाल उठाए थे। ऑपरेशन सिंदूर पर डेलिगेशन में शशि थरूर कई देशों की यात्रा पर भी गए थे. इसके बाद वहां से पाकिस्तान को खूब खरी-खोटी सुनाई थी। इस के अलावा सेना पर राहुल और कांग्रेस की ओर से दिए गए बयानों का भी खंडन किया था।