एमपी में फेल हुई मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना, युवाओं की उम्मीदों पर फिरा पानी, नहीं मिल रहा रोजगार

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By Abhishek SinghPublished On: May 24, 2025

मध्य प्रदेश की महत्वाकांक्षी योजना ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ’ (एमएमएसकेवाई), जिसका उद्देश्य हर युवा को रोजगार देना था, गंभीर रूप से पिछड़ रही है। योजना के तहत हर वर्ष एक लाख युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण के साथ 8 से 10 हजार रुपए मासिक स्टाइपेंड देने का लक्ष्य था, लेकिन इस साल 32 जिलों में कोई भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित नहीं हो सका।

यह तथ्य 16 मई को हुई प्रदेश स्तरीय समीक्षा बैठक में सामने आया। एमएमएसकेवाई पोर्टल पर अब तक 45,425 रिक्तियां प्रकाशित की गईं, जबकि ईपीएफओ पोर्टल पर 7,17,575 बेरोजगार उम्मीदवार दर्ज थे। इसके बावजूद मार्च तक मात्र 1,633 उम्मीदवारों को प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया, जिनमें से अप्रैल तक केवल 275 को रोजगार मिल पाया, जो कुल संख्या का मात्र 0.3 प्रतिशत है।

एमपी में फेल हुई मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना, युवाओं की उम्मीदों पर फिरा पानी, नहीं मिल रहा रोजगार

प्रदेश में प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान करने वाली योजना का प्रदर्शन समग्र रूप से निराशाजनक रहा है। इस संदर्भ में रायसेन जिला सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता हुआ प्रथम स्थान पर है, लेकिन वहां भी योजना का लाभ केवल 2 प्रतिशत युवाओं तक ही सीमित रहा। इसके बाद शिवपुरी, इंदौर, सागर और हरदा जिले भी लक्ष्यों के अनुरूप उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर पाए।

अप्रेंटिसशिप योजना में भी पीछे

केंद्र सरकार की नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (एनएपीएस) भी अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई है। 29 जिलों में किसी भी प्रशिक्षणार्थी को अप्रेंटिस बनने का अवसर नहीं मिला। योजना के तहत कुल 81,078 संभावित वैकेंसी के मुकाबले केवल 20,485 युवाओं को प्रशिक्षण मिला, जिनमें से मात्र 1,147 को रोजगार प्राप्त हुआ। योजना के क्रियान्वयन में संस्थागत कमजोरियां, स्टाइपेंड में देरी और प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी के दौर में यह योजना युवाओं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकी है।

सफल नहीं होने के कारण

प्रशिक्षण में भारी कमी- इस वर्ष प्रदेश के 32 जिलों में कोई भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित नहीं हो पाया है। एमएमएसकेवाई पोर्टल पर 45,425 रिक्तियों के उपलब्ध होने के बावजूद, केवल 1,633 युवाओं को ही प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया है।

रोजगार उपलब्धि में विफलता- अप्रैल तक मात्र 275 युवाओं को रोजगार मिल पाया, जो कुल लाभार्थियों का केवल 0.3 प्रतिशत है।

स्टाइपेंड भुगतान में देरी- प्रशिक्षण अवधि के दौरान कई महीनों तक स्टाइपेंड न मिलने की शिकायतें बढ़ रही हैं, जिससे युवाओं का उत्साह और मनोबल प्रभावित हो रहा है।

प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर सवाल- अधिकांश संस्थानों में प्रशिक्षण केवल औपचारिकता बनकर रह गया है, जिससे युवाओं को व्यावहारिक और आवश्यक अनुभव नहीं मिल पा रहा है।

बड़े शहरों में भी योजना का कमजोर प्रदर्शन

राजधानी के साथ ही इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में भी योजना का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। इंदौर में मात्र 1.1 प्रतिशत युवाओं को ही योजना का लाभ मिल सका, जबकि अन्य शहरों में यह आंकड़ा एक प्रतिशत से भी कम रहा।

युवाओं में बढ़ रही निराशा

युवा प्रशिक्षणार्थी रोजगार न मिलने के कारण निराश और असंतुष्ट हैं। उनका कहना है कि पोर्टल पर पंजीकरण के बावजूद किसी भी कंपनी की तरफ से कोई कॉल या आमंत्रण नहीं मिला। कई युवाओं ने तो निराश होकर पोर्टल का उपयोग करना ही बंद कर दिया है। स्टाइपेंड और रोजगार दोनों न मिलने से उनकी उम्मीदें टूट चुकी हैं और योजना पर उनका विश्वास पूरी तरह कमजोर हो गया है।