यूक्रेन के साथ लंबे समय से चल रहे युद्ध और घटती आबादी के कारण रूस गंभीर श्रम संकट का सामना कर रहा है। इस संकट से उबरने के लिए रूस अब भारत की ओर देख रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस लगभग 10 लाख विदेशी कामगारों को भर्ती करने की योजना बना रहा है, जिसमें भारतीय श्रमिकों को प्राथमिकता दी जा सकती है। इस संबंध में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है।
यह पहली बार होगा जब यूक्रेन पर हमले के बाद पुतिन भारत का दौरा करेंगे। इससे पहले वह दिसंबर 2021 में दिल्ली आए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा दोनों देशों के बीच श्रम और सामाजिक सहयोग के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकती है, ठीक वैसे ही जैसे भारत ने इजरायल के साथ किया है।
क्यों पड़ी कामगारों की जरूरत?
रूस में मजदूरों की कमी के कई कारण हैं। यूक्रेन युद्ध में हजारों रूसी युवाओं की जान जा चुकी है, जिससे कार्यबल में भारी कमी आई है। इसके अलावा, देश के पुनर्निर्माण और औद्योगिक विकास के लिए लाखों अतिरिक्त हाथों की जरूरत है।
रूस के श्रम मंत्रालय का अनुमान है कि अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक देश में श्रमिकों की कमी 31 लाख तक पहुंच सकती है। घटती जन्म दर भी एक बड़ी चिंता है, जिसके लिए पुतिन सरकार ने बच्चे पैदा करने पर भारी आर्थिक सहायता देने की भी घोषणा की है।
निर्भरता कम करने की रणनीति
अब तक रूस अपनी श्रम जरूरतों के लिए मुख्य रूप से मध्य एशियाई देशों पर निर्भर रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में, विशेषकर मार्च 2024 में मॉस्को में हुए आतंकी हमले के बाद, सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं। इस हमले के बाद रूस अपनी प्रवासन नीति में बड़ा बदलाव कर रहा है।
नई नीति के तहत, रूस उन देशों के मजदूरों को प्राथमिकता देना चाहता है जो उसके “परंपरागत आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों” का सम्मान करते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि मॉस्को को कट्टरपंथी तत्वों से खतरा महसूस हो रहा है, और भारतीय समाज की सेकुलर प्रकृति और दशकों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण भारतीयों को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। रूस की योजना 7 लाख से अधिक मध्य एशियाई मजदूरों की जगह दूसरे देशों के श्रमिकों को लाने की है।
भारत को होगा फायदा?
यदि यह समझौता होता है, तो यह भारतीय श्रमिकों के लिए रोजगार के बड़े अवसर पैदा करेगा। हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि यह समझौता नागरिकता या स्थायी निवास का मार्ग नहीं खोलेगा। भारतीय श्रमिक एक निश्चित अवधि के लिए काम करने, पैसा कमाने और फिर भारत वापस लौटने के मॉडल पर जाएंगे। इस कदम से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।










